जलवायु बदलावों का विपरीत असर कृषि पर देखा जा रहा है. अगले 25 साल में बारिश पर आधारित धान की पैदावार में 20 फीसदी तक गिरावट का अनुमान जताया गया है. जबकि, सिंचाई के जरिए होने वाली धान की पैदावार में करीब 4 फीसदी गिरावट की आशंका जताई गई है. यह चौंकाने वाले खुलासे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की स्टडी में सामने आए हैं. ऐसे में जलवायु अनुकूल धान किस्मों के विकास में संस्थान और वैज्ञानिक जुट गए हैं.
केंद्र सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के प्रमुख नेटवर्क प्रोजेक्ट ‘जलवायु अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार’ (NICRA) के जरिए से इंटीग्रेटेड सिमुलेशन मॉडलिंग स्टडी करके जलवायु परिवर्तन के प्रति विभिन्न धान उत्पादक क्षेत्रों की संवेदनशीलता का आकलन किया. अध्ययन से पता चला है कि अनुकूलन उपायों के अभाव में जलवायु परिवर्तन से 2050 में बारिश पर आधारित चावल पैदावार में 20 फीसदी और 2080 में 47 फीसदी की कमी आने की आशंका है. स्टडी में बताया गया कि सिंचाई पर आधारित चावल की पैदावार 2050 में 3.5 फीसदी और 2080 में 5 फीसदी कम हो सकती है.
10 साल में धान की 668 किस्में विकसित की गईं
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार जलवायु बदलावों के चलते धान की फसलों पर पड़ने वाले विपरीत असर से निपटने के लिए धान की किस्में विकसित कर ली गई हैं. जो अलग-अलग मौसम बदलावों, मिट्टी, पानी बदलावों को झेल सकती हैं. जबकि, धान की कुछ किस्मों पर काम भी चल रहा है. कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने लोकसभा में लिखित उत्तर में कहा है कि 2014 से 2024 तक चावल (धान) की कुल 668 किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें से 199 किस्में अत्यधिक जलवायु प्रतिरोधी हैं, जो मुश्किल मौसम की स्थिति का सामना कर सकती हैं.
जलवायु बदलाव झेल सकती हैं ये धान किस्में
बयान में कहा गया कि जलवायु अनुकूल 668 धान किस्मों में 103 धान किस्में ऐसी हैं जो सूखे और जल प्रभावों को झेलने में सक्षम हैं. जबकि, 50 धान की किस्में बाढ़, गहरे पानी, पानी डूबने के प्रति सहनशील हैं. इसके अलावा 34 चावल की किस्में नमकीन पानी और कटाव को झेलने में सक्षम हैं. 6 धान किस्में गर्मी के प्रति सहनशील हैं और 6 किस्में ठंड को झेल सकती हैं. इसके अलावा विकसित चावल की 668 किस्मों में से 579 किस्में कीटों और बीमारियों के प्रति सहनशील हैं.
151 संवेदनशील जिलों में ICAR ने किया आंकलन
आईसीएआर ने एनआईसीआरए के जरिए जलवायु अनुकूल अध्ययन के लिए 151 संवेदनशील जिलों के 448 जलवायु अनुकूल गांवों को शामिल किया गया है. देश में जलवायु बदलावों के विपरीत असर का सामना करने के लिए भारत सरकार राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) चला रही है. भारत सरकार जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए एनएमएसए के माध्यम से राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है.