बीजेपी के रास्ते में बाधा खड़ी कर सकते हैं प्याज क‍िसान

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने प्याज एक्सपोर्ट और किसानों को मिलने वाले दाम के आंकड़े जारी किए हैं. इसमें दावा किया गया है कि 2023 की तुलना में 2024 में किसानों को प्याज का अच्छा दाम मिल रहा है. हालांकि ‘आंकड़ेबाजी’ करने वालों से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या देश में प‍िछले साल किसी और पार्टी की सरकार थी?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को प्याज की टेंशन सताने लगी है. ऐसे में अब सरकार ने इस मामले को लेकर लीपापोती की कोशिश शुरू कर दी है. सरकारी हस्तक्षेप की वजह से महाराष्ट्र के किसान लंबे वक्त तक औने-पौने दाम पर प्याज बेचने के लिए मजबूर हुए थे, जिसका बदला उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को सीटों का झटका देकर ले लिया है. उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस खुद मान चुके हैं कि प्याज के एक्सपोर्ट बैन ने चुनाव में नुकसान किया. इन सब बातों के बीच अब विधानसभा चुनाव सिर पर आ चुका है, लेक‍िन ‘प्याज के दाम जान बूझकर गिराने’ के मुद्दे पर अब भी किसानों की नाराजगी सरकार से कम नहीं हुई है. ऐसे में केंद्र सरकार ने प्याज के दाम और एक्सपोर्ट को लेकर अब सफाई देनी शुरू कर दी है.

केंद्रीय खाद्य और उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष 2024-25 में 31 जुलाई, 2024 तक कुल 2.60 लाख टन प्याज एक्सपोर्ट किया जा चुका है. यही नहीं किसानों को पिछले साल के मुकाबले इस बार ज्यादा दाम मिल रहा है. हालांक‍ि सरकारी दावों से पहले यह जानना जरूरी है कि सरकार ने प्याज एक्सपोर्ट खोला तो जरूर है, लेकिन उस पर शर्तें भी थोप रखी हैं. केंद्र ने 7 दिसंबर 2023 को प्याज एक्सपोर्ट पर रोक लगाई थी. लेकिन, जब लोकसभा चुनाव के दौरान सबसे बड़े प्याज उत्पादक सूबे महाराष्ट्र में स‍ियासी नुकसान होने का अंदेशा हुआ तब आनन-फानन में 4 मई, 2024 से प्याज निर्यात पर लगी रोक हटा दी. 

शर्तों की वजह से नुकसान 

प्याज एक्सपोर्ट खोला गया, लेकिन 550 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) और 40 फीसदी निर्यात शुल्क की शर्त लगा दी गई. हॉर्ट‍िकल्चर प्रोड्यूज एक्सपोर्टर एसोस‍िएशन ऑफ इंड‍िया के वाइस प्रेसीडेंट व‍िकास स‍िंह का कहना है कि इन शर्तों की वजह से पाकिस्तान जैसे दूसरे देश भारत के पारंपरिक प्याज आयातक देशों के बाजार पर कब्जा कर रहे हैं. इसका भारतीय किसानों, निर्यातकों और देश सभी को नुकसान हो रहा है. क्योंक‍ि शर्तों की वजह से भारतीय प्याज का इंटरनेशनल मार्केट स‍िकुड़ गया है.  

प्याज पर सरकार की ‘सफाई

केंद्रीय खाद्य और उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष 2024-25 में 31 जुलाई, 2024 तक कुल 2.60 लाख टन प्याज एक्सपोर्ट किया जा चुका है. इसके अलावा, सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण बफर के लिए एनसीसीएफ और नेफेड के माध्यम से मुख्य रूप से महाराष्ट्र से 4.68 लाख टन प्याज खरीदा है. 

पिछले वर्ष (2023) की तुलना में, चालू वर्ष में प्याज किसानों को प्याज का अच्छा दाम मिल रहा है. अप्रैल से जुलाई, 2024 के बीच महाराष्ट्र में प्याज का औसत मासिक मंडी मॉडल भाव 1,230 रुपये से 2,578 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहा है. जबकि पिछले साल (2023) की इसी अवधि में किसानों को 693 से 1,205 रुपये प्रति क्विंटल तक का ही दाम मिला था.

इसी तरह चालू वित्त वर्ष में बफर के लिए प्याज का औसत खरीद मूल्य 2,833 रुपये प्रति क्विंटल था, जो पिछले साल के 1,724 रुपये प्रति क्विंटल के खरीद मूल्य से 64 फीसदी अधिक है. 

हालांकि, मंत्रालय से पूछा जाना चाहिए कि पिछले साल क्या कोई और सरकार थी? अगर नहीं तो फिर सवाल यह भी है कि पिछले वर्ष किसानों को प्याज का इतना कम दाम क्यों मिला?

प्याज एक्सपोर्ट से कमाई

  • 2021-22 में 3,326.99 करोड़ रुपये. 
  • 2022-23 में 4,525.91 करोड़ रुपये. 
  • 2023-24 में 3,513.22 करोड़ रुपये.
  • क्यों घटा प्याज उत्पादन?

सरकारी हस्तक्षेप की वजह से प्याज के दाम में लंबे वक्त तक गिरे रहे. किसानों को 1-2 से लेकर 10 रुपये किलो तक के ही दाम पर प्याज बेचने को मजबूर होना पड़ा था. जबक‍ि इससे काफी अध‍िक तो लागत आ रही है. कम दाम से नाराज किसानों ने प्याज की खेती कम कर दी. नतीजा यह हुआ कि प्याज का उत्पादन घट गया. 

सरकारी आंकड़े किसानों के इस गुस्से की गवाही दे रहे हैं. साल 2021-22 में देश में 316.87 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था जो 2022-23 में घटकर सिर्फ 302.08 लाख टन रह गया. जबकि 2023-24 में यह और घटकर मात्र 242.12 लाख टन ही रह गया है. 

महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि जब सही दाम मिलेगा तभी किसान खेती बढ़ाएंगे, वरना वो दूसरी फसलों पर शिफ्ट हो जाएंगे. फिर एक दिन ऐसी नौबत आ जाएगी कि खाद्य तेलों और दालों की तरह भारत प्याज आयातक भी बन जाएगा. सरकार क‍िसानों को आंसुओं को नहीं देखती, उसे तो स‍िर्फ कंज्यूमर की पड़ी रहती है. इसी सरकारी सोच ने खेती को तबाह कर द‍िया है.