अब धान रोपाई के लिए लौटेंगे प्रवासी, मतदान के लिए नहीं मिलेगी छुट्टी

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उत्तर प्रदेश में प्रवासी श्रमिकों का गढ़ माने जाने वाले तराई और पूर्वांचल के जिलों में गांव सूने होने लगे हैं। त्योहार में छुट्टी लेकर गांव लौटे श्रमिक अब धीरे-धीरे दूसरे राज्यों और महानगरों में अपने काम पर लौटने लगे हैं, जिनका अप्रैल से जून, 2024 के बीच सात चरण में होने वाले लोकसभा चुनाव में भागीदारी करना संभव नहीं होगा। उत्तर प्रदेश में करीब 15 करोड़ मतादाताओं में 35 से 40 लाख तक प्रवासी श्रमिकों की संख्या है, इनमें से अधिकांश इस चुनाव के दौरान अपने गांव से दूर होंगे। उत्तर प्रदेश के उन जिलों में यात्रा की जहां अधिकांश लोग काम करने के सिलसिले में दूसरे राज्यों में जाते हैं और साथ ही जहां 2019 लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत  60 फीसदी से कम रहा।

श्रावस्ती जिले में 4500 आबादी वाले थारू जनजाति बहुल मोतीपुर कलां गांव से भी श्रमिकों का पलायन जारी है। 35 वर्षीय रामसेवक अपने साथ सात श्रमिकों को लेकर 1 अप्रैल को उत्तराखंड के पीपलकोटी में एनटीपीसी के पावर प्लांट पर काम करने के लिए निकलेंगे। रामसेवक कहते हैं कि “ठेकेदार ने एक व्यक्ति के हिसाब से 2000 रुपए का किराया भेज दिया है। अब गांव में हमारी वापसी बरसात के दिनों में धान रोपाई के दौरान होगी। लोकसभा चुनाव में शामिल होना बहुत मुश्किल होगा।”

गांव के प्रधान राम सुंदर चौधरी चुनावी चर्चा करते हैं “मोतीपुर कलां में 2100 के करीब मतदाता हैं लेकिन मतदान 55 से 60 फीसदी तक होता है। खासतौर से प्रधान के चुनाव में जीत-हार के लिए एक-एक वोट बहुत कीमती हो जाता है, मैं खुद एक बार 13 वोट से हार गया था। प्रधानी के चुनाव में श्रमिकों को अपने खर्चे पर गांव बुलवाया जाता है ताकि अच्छा मतदान हो। हालांकि लोकसभा या विधानसभा चुनाव में यह संभव नहीं है। आर्थिक लाभ न मिलने या फिर आने की सुविधा न होने के कारणों से प्रवासी श्रमिक इसमें दिलचस्पी कम लेते हैं। ”

मोतीपुर कलां गांव के पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य विजय कुमार सोनी गांव में चुनावी मतदान का अपना अनुभव साझा करते हैं, “यहां से दिल्ली, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, भूटान, उत्तराखंड और हिमाचल तक लोग काम करने जाते हैं। उनका खेती के लिए गांव में आना-जाना लगा रहता है। हालांकि, जो लोग अभी होली त्योहार के बाद काम के ले निकल रहे हैं वह लोकसभा चुनावों में भागीदारी नहीं कर पाएंगे। यदि कोई त्योहार या फसल कटाई का समय होता तो वे गांव में होते और अपनी भागीदारी करते।

इस थारू बहुल गांव से ज्यादातर लोग पहाड़ों पर चलने वाली कठिन से कठिन परियोजनाओं में काम करने के लिए जाते हैं। 38 वर्षीय थारू जनजाति के राम मिलन इस वक्त गांव में ही हैं और वह मतदाता बनने के बाद दूसरी बार अपने मतदान का प्रयोग लोकसभा चुनाव में करेंगे। वह कहते हैं कि नवंबर, 2023 में हम गांव के सात लोग उत्तरकाशी के यमुनोत्री हाईवे पर सिलक्यारा में टनल हादसे के दौरान वहीं काम कर रहे थे। सभी सुरंग में फंस गए थे। हालांकि सभी लोग सुरक्षित बाहर निकाल लिए गए और तबसे यहीं गांव में हैं।

इसी टनल हादसे के शिकार हुए संतोष कुमार भी इस वक्त गांव में हैं वह बताते हैं कि अगर उन्हें काम के लिए जाना भी होगा तो वह 2025 में जाएंगे। हालांकि, कोशिश करेंगे कि उन्हें अपना गांव न छोड़ना पड़े। इस वक्त वह अपनी खेती-पाती देख रहे हैं।

रेलवे लाइन और सरकारी बस सुविधा दोनों सुविधाओं से वंचित श्रावस्ती का लोकसभा दायरा बलरामपुर जिले तक फैला हुआ है। साथ ही यह उन जिलों में शामिल है जहां 2019 लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत काफी कम महज 52.02 फीसदी था। 2008 में बलरामपुर लोकसभा सीट को समाप्त कर दिया गया था। 2019 लोकसभा में श्रावस्ती में कुल वोटर्स 19 लाख से ज्यादा थे जिसमें से 9 लाख से ज्याद लोगों ने मतदान किया था जो कि बहुत कम था।

वहीं, दो दशक तक मुंबई के कुर्ला में निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले बहराइच जिले के गुलरा गांव के मुन्नीलाल वर्मा 2020 में जब कोरोना की पहली लहर में गांव लौटे तबसे वह काम करने नहीं गए। वह कहते हैं कि पांच से छह बीघे खेती उनके पास है और अब वह खेती का काम कर रहे हैं। हालांकि, वह बताते हैं कि उनके गांव में घर के आस-पास के 12 लोग अभी बाहर मुंबई में हैं उनका लोकसभा चुनाव के लिए लौटना संभव नहीं होगा क्योंकि इस मतदान के लिए उनको किसी तरह की सुविधा सहायता नहीं मिलेगी। वह कहते हैं जिन लोगों के आधार कार्ड मुंबई के हो गए हैं वह अपना मतदान वहीं पर करेंगे।

इसी तरह 60 फीसदी से कम मतदान वाले जिले में शामिल बहराइच जिले के मुकेरिया गांव में प्रवासी श्रमिकों ने भी अपना अनुभव साझा किया। 32 वर्षीय रमेश गौतम ने कहा कि “मैं मुंबई के पनवेल में पत्थर तोड़ने का काम करता हूं। अभी 15 दिन छुट्टी लेकर घर आया था लेकिन 4 अप्रैल तक वापस काम पर लौट जाउंगा। हमारे साथ गांव और आस-पास के करीब 50 लोग भी जाएंगे। हमारी वापसी बरसात में होगी क्योंकि उस वक्त यूनिट बंद होती है। लोकसभा चुनाव में खुद पैसा-भाड़ा लगाकर आना संभव नहीं होगा। हम लोग चुनाव में नहीं आ पाएंगे।”

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 2019 लोकसभा में कुल 14.61 करोड़ मतदाता थे, जिसमें से कुल 8.65 करोड़ (59.21 फीसदी) मतदाताओं ने मतदान किया था। इस बार 2024 में करीब मतदाताओं की संख्या करीब 15.29 करोड़ होगी। इसमें से 15.57 लाख नए मतदाता 18-19 वर्ष आयु के होंगे।

ज्यादातर आर्थिक तंगी का सामना कर रहे प्रवासी श्रमिकों के लिए मार्च से जून का महीना कमाई का होता है। इनमें से ज्यादातर छोटी जोत वाले किसान भी हैं। बाहर की कमाई के अलावा इन्हें गांव लौटकर अपनी खेती-बाड़ी को भी देखना पड़ता है। ऐसे में ज्यादातर प्रवासी श्रमिक अब धान की रोपाई के वक्त लौटने की बात कह रहे हैं। इसका अर्थ हुआ कि वह अप्रैल से जून के बीच होने वाले मतदान में शामिल नहीं होंगे।