नैनो टेक्नोलॉजी से खरपतवार प्रबंधन में कई फायदे हैं तो कई जोखिम भी

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दुनिया भर में खाद्य उत्पादन के लिए सालाना लगभग 40 लाख टन कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से 40 फीसदी खरपतवारनाशी (हर्बिसाइड्स), 30 फीसदी कीटनाशक और 20 फीसदी कवकनाशी होते हैं. खरपतवारों के कारण उपज में होने वाली हानि फसल उत्पादन और किसानों की आर्थिक खुशहाली के लिए एक बड़ा खतरा है. अधिक फसल उपज और बेहतर गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए बेहतर खरपतवार प्रबंधन जरूरी है. यांत्रिक खरपतवार नियंत्रण के स्थान पर बड़े पैमाने पर रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के कारण मिट्टी के स्वास्थ्य में गिरावट आई है. कुछ उपलब्ध चुनिंदा खरपतवारनाशी दवाओं के निरंतर उपयोग से खरपतवारों में हर्बिसाइड्स प्रतिरोध विकसित हो रहा है. जिससे कई फसलों में खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण हासिल करना मुश्किल हो जाता है. सबसे प्रभावशाली खरपतवार नाशी दवाए वे हैं जो अधिक से अधिक खरपतवार को नष्ट कर पर्यावरण को बहुत कम हानि पहुंचाते हैं. इसमें नैनोटेक्नोलॉजी से खरपतवार प्रबंधन एक बेहतर विकल्प है.

खरपतवार से इन फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान 

खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के अनुसार भारत में अकेले 10 प्रमुख फसलों में खरपतवारों के कारण लगभग 70,000 करोड़ रुपये की कुल वास्तविक आर्थिक हानि का अनुमान लगाया गया था, जिसमें सबसे अधिक नुकसान धान, गेहूं और सोयाबीन का होता है. खरपतवारों के नियंत्रण के लिए हर्बिसाइड्स, यानि खरपतवारनाशी दवाओं का उपयोग करना सबसे प्रभावी और आसान तरीका लगता है, लेकिन अत्यधिक खरपतवारनाशी दवाओं पर निर्भरता से पर्यावरण, जीव-जंतु, मिट्टी और जल निकायों के प्रदूषण और खरपतवारनाशी दवाओं के प्रति प्रतिरोधी खरपतवारों का होना एक नई समस्या खड़ी कर रहा है.

नैनोटेक्नोलॉजी से खरपतवार प्रबंधन

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी क्षेत्र यानि आईसीएआऱ – आरसीएआर पटना के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार आजकल खरपतवार नियंत्रण के लिए नैनोटेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जा रहा है. इस तकनीक में खरपतवार के अंकुर को नष्ट करने के बजाय, कार्बन नैनोट्यूब (CNT) खरपतवार के बीजों को मार देते हैं. एक आंकलन के मुताबिक गैर-नैनो फॉर्मूलेशन की तुलना में बेहतर खरपतवार प्रबंधन प्रदान करने के लिए नैनो हर्बिसाइड्स से खरपतवार नियंत्रण बेहतर होता है. नैनो हर्बिसाइड्स का उपयोग बारहमासी खरपतवारों को खत्म करने के लिए किया जाता है. बारहमासी खरपतवारों को नियंत्रण के लिए खरपतवारों के प्रकंद और कंद या उनके भूमिगत अंगों को नैनो टेक्नोलॉजी से मार दिया जाता है, जो उन खरपतवारों के तेजी से फैलने में मदद करते हैं.

ZnO नैनो कणों के उपयोग से मोथा खरपतवार के अंकुरण काफी प्रभावित होते हैं. मोथा के कंदों में खाद्य भंडार सिल्वर के नैनो कणों से समाप्त हो जाते हैं. नैनो-एनकैप्सुलेटेड हर्बिसाइड्स वर्षा आधारित खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए किया जा सकता है. इसके नैनो-एनकैप्सुलेटेड हर्बिसाइड्स के इस्तेमाल से नमी मिलने के बावजूद भी खरपतवार का फैलाव नहीं हो पाता है, क्योंकि बारिश होने पर नैनो-एनकैप्सुलेटेड हर्बिसाइड्स के अणुओं के तुरंत निकलने से खरपतवार के बीज मर जाते हैं. परजीवी खरपतवारों के विरुद्ध नैनो कैप्सूल के रूप में प्रणालीगत शाकनाशियों का उपयोग करने से फसल पर फाइटोटॉक्सिसिटी से बचने में मदद मिलती है.

खरपतवार प्रबंधन में नैनोटेक्नोलॉजी प्रयोग से लाभ

आईसीएआऱ – आरसीएआर पटना के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यह फसल के नुकसान को कम करने, लागत कम करने, उपज बढ़ाने, इनपुट उपयोग दक्षता और फसल उपज की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है. यह प्रति हेक्टेयर हर्बिसाइड्स की प्रयोग दर को कम करने और पर्यावरण प्रदूषण और CO₂ उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है. बायोपॉलिमर से संश्लेषित नैनोमटेरियल सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल हैं. फाइटोटॉक्सिसिटी को कम करता है और खरपतवार में प्रतिरोध रोकने में मदद करता है.

खरपतवार प्रबंधन में नैनोटेक्नोलॉजी के जोखिम

आईसीएआऱ – आरसीएआर पटना के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार नैनोटेक्नोलॉजी से खरपतवार नियंत्रण करने जोखिम की संभावना है. इसके प्रयोग से खाद्य उत्पादों में नैनोमटेरियल का संचय हो सकता है. Ag, TiO₂ और अन्य नैनोकणों द्वारा गेहूं, जौ और प्याज जैसी फसलों के बीज के अंकुरण, अंकुर और जड़ के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है. ये स्वस्थ मानव त्वचा को छेदने की क्षमता रखते हैं, जिससे पर्यावरणीय चिंताएं पैदा हो सकती हैं, क्योंकि नैनोकण मिट्टी, पानी और पौधों में बने रह सकते हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो सकता है. नैनोकण पौधों में संवहनी बंडल को अवरुद्ध कर सकते हैं और परागण को कम कर सकते हैं. फाइटोटॉक्सिसिटी, साइटोटॉक्सिसिटी और जेनेटॉक्सिसिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए अभी और अनुसंधान की जरूरत है.नैनोटेक्नोलॉजी का उपयोग खरपतवार प्रबंधन में कई लाभ प्रदान करता है, लेकिन इसके साथ जुड़े जोखिमों को ध्यान में रखते हुए इसका सावधानीपूर्वक और संतुलित उपयोग जरूरी है.