उद्यानी फसलों में कम वर्षा की परिस्थिति में प्रबंधन

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अनिश्चित मानसून से नमी में कमी आ जाने कुछ राज्यों में बागवानी फसलें भी प्रभावित हो सकती हैं। तैयारी के लिए एक कदम के रूप में बागवानी फसलोंं के लिए उत्पादकों द्वारा अपनाये जाने वाली सामान्य और फसल विशिष्ट सिफारिशों के रूप में परामर्शी योजना तैयार की गई है।

१.उचित फसलोंं और किस्मों का चयन

सब्जी फसलोंं में डोलिकोस बिन, लोबिया, कलस्टर बिन, लिमा बिन, मिर्च, ड्रमस्टिक, भिंडी, जैसी फसलें वर्षा सिंचित खेती के लिए उपयुक्त हैं। देरी से आने वाली मानसूनी वर्षा की स्थिति में आकस्मिकता फसल/नियोजन के लिए इनमें से फली वाली सब्जियों की सिफारिश की जा सकती है। दवाब को समाप्त किये जाने के पश्चात स्थिति से निपटने के लिए अच्छी जड़ प्रणाली और क्षमता वाली किस्मों के चयन किये जाने की जरूरत है। स्थिति के अनुसार अल्पकालिक किस्मों का उपयोग किये जाने की सिफारिश की जाती है।

२.पौधा उत्पादन की उन्नत पद्धति

नर्सरी चरण पर कोकोपीट, नायलोन, जाल संरक्षण एवं जैव उर्वरकों/जैव कीटनाशक उपचार का उपयोग करके प्रोट्रे में पौध उत्पादन की उन्नत पद्धति में मजबूत,एक-समान तथा स्वस्थ्य पौधा प्राप्त करने की अच्छी संभावना है। इन पौधों को जब मुख्य खेत में रोपित किया जाता है तो इससे विशेषकर जल दवाब स्थितियों के दौरान जैविक और अजैविक दवाबों से उभरने में मदद मिलेगी तथा जड़ को होने वाली क्षति कम होगी ।

३.मृदा एवं आर्द्रता संरक्षण तकनीक को अपनाना

कंटूर खेती, कंटूर पट्टी फसलन, मिश्रित फसल, टिलेज, मल्चिंग, जीरो टिलेज ऐसे कुछ कृषि संबंधी उपाय हैं जो इन सिटू मृदा आर्द्रता संरक्षण में सहायक होते हैं। शुष्क भूमि में प्रभावी मृदा एवं आर्द्रता संरक्षण के लिए कंटूर बंडिंग, बैंच टैरेसिंग, वर्टिकल मल्चिंग आदि को भी अपनाए जाने की जरुरत है। जल के कुशल उपयोग के लिए दूसरी प्रौद्योगिकी जल संचयन रिसाईकिलिंग है। वर्षा जल संचयन में अप्रवाह जल को खोदे गये पोखरों या छोटे गड्ढों, तालाबों, नालों में इकठ्ठा किया जाना तथा भूमि के बांधों अथवा चिनी हुई संरचनाओ में एकत्रित किया जाना शामिल है। कम अर्थात 500 से 800 एमएम  वर्षा जल संचयन संभव है। वर्षा तथा मृदा विशिष्टताओं पर निर्भर रहते हुए, अप्रवाह का 10-50 प्रतिशत भाग फार्म तालाब में एकत्रित किया जा सकता है। इस तरह से अप्रवाह को फार्म तालाब में एकत्रित किये गये जल का उपयोग लम्बी अवधि के सूखे के दौरान अथवा लघु सिंचाई तकनीकों के माध्यम से संरक्षित सिंचाई मुहैया कराए जाने में किया जा सकता है।

४.मृदा कार्बनिक पदार्थ में वृद्धि करना

मृदा आर्गेनिक कार्बन में सुधार किये जाने के लिए निरंतर प्रयास किये जाने चाहिए। मिट्टी में फसल अवशिष्टों तथा फार्म यार्ड खाद मिलाने से कार्बनिक पदार्थ की स्थिति में सुधार होता है, मृदा संरचना और मृदा आर्द्रता भंडारण समक्षता में सुधार होता है। खूड फसलन, हरी खाद देकर, फसल चक्रं तथा कृषि वानिकी को अपनाकर भी मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ में सुधार किया जा सकता है। सब्जियां कम अवधि और तेजी से बढ़ने वाली फसल होने के कारण उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ में उचित रूप से कम्पोस्ट खाद मिलाये जाने की जरूरत है। मिट्टी में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ के शीघ्र उपयोग के लिए तथा मृदा आर्द्रता संरक्षण क्षमता में सुधार किये जाने के लिए वर्मी कम्पोस्टिंग को भी अपनाया जा सकता है ।

५.पर्ण-पोषण का अनुप्रयोग

जल दवाब की स्थितियों के दौरान पोषक तत्वों का पर्ण-अनुप्रयोग पोषक तत्वों के शीघ्र अवशोषण के द्वारा बेहतर वृद्धि में मदद करता है। पोटाश एवं कैल्शियम का छिड़काव सब्जी फसलोंं में सूखा सहिष्णुता प्रदान करता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों और गौण पोषक तत्वों के छिड़काव से फसल पैदावार और गुणवत्ता में सुधार होता है।

६.ड्रिप-सिंचाई का प्रयोग

बागवानी फसलों में जड़ के भागो में सही और सीधे प्रयोग के कारण ड्रिप-सिंचाई की अन्य परम्परागत प्रणालियों के ऊपर अपनी श्रेष्ठता को प्रमाणित किया है। ड्रिप-सिंचाई में जो अलग से लाभ प्राप्त होते हैं, वे हैं जल में महत्वपूर्ण बचत, फलों एवं सब्जियों की पैदावार में वृद्धि तथा खरपतवारों का नियन्त्रण एवं श्रम में बचत। ड्रिप-सिंची को फल फसलोंं तथा साथ ही कम अंतर वाली फसलोंं जैसे प्याज और फली सहित अन्य सभी सब्जी फसलोंं में भी अपनाया जा सकता है। जल में फसल और मौसम के आधार पर 30-50 प्रतिशत की तर्ज पर बचत होती है। आमतौर पर सब्जी फसलोंं के लिए 2एलपीएच की उत्सर्जन दर पर 30 सें.मी. दूरी के उत्सर्जन बिंदु स्थान वाले इन लाईन ड्रिप लेटरल्स का चयन किया जाता है। मिर्च, बैंगन, फूलगोभी तथा भिण्डी जैसी फसलोंं में जोड़ा पंक्ति पौधा रोपण की प्रणाली अपनाई जाती है तथा दो फसल पंक्तियों के लिए एक ड्रिप लेटरल का उपयोग किया जाता है।

७.सूक्ष्म स्प्रिंकलर सिंचाई का प्रयोग

स्थिति तथा जल की उपलब्धता पर निर्भर रहते हुए, इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग फल एवं सब्जी फसलों के लिए किया जा सकता है। प्रारम्भिक संस्थापन की लगत ड्रिप प्रणाली की तुलना में कम है। आगे ग्रीष्मकाल में जल का छिड़काव सूक्ष्म जलवायु तापमान को कम करने में तथा आर्द्रता में वृद्धि किए जाने में मदद करता है, इससे फसल की वृद्धि व पैदावार में सुधार होता है । बचाया गया जल 20 से 30 प्रतिशत तक होता है ।

८.सीमित जल संसाधन स्थितियों में नमी बचत पद्धतियां

जल की बचत करने के लिए सीमित जल स्थितियों में निम्नलिखित प्रणालियां अपनाई जाएं :

क) जल बचत सिचाई प्रणाली

सीमित जल स्थितियों में, वैकल्पिक फरो सिंचाई अथवा बड़े अन्तराल की फरो सिंचाई और डरियो सिंचाई प्रणालियां अपनाई जा सकती हैं । पहाड़ी मिर्च, टमाटर, भिण्डी तथा फूल गोभी में सिंचाई प्रणालियों पर किए गए अध्ययनों ने दर्शाया है कि वैकल्पिक फरो सिंचाई तथा बड़े अन्तराल की खुड सिंचाई को अपनाए जाने से पैदावार को बिना प्रतिकूल रूप से प्रभावित किए 35 से 40 प्रतिशत तक सिंचाई जल बचाया गया ।

ख) सब्जी उत्पादन में मल्चिंग प्रणालियां

मृदा और जल संरक्षण के लिए मृदा को प्राकृतिक फसल अवशेषों या प्लास्टिक फिल्म्स से कवर किए जाने की तकनीक को मल्चिंग कहा जाता है । मल्चिंग का इस्तेमाल फार्म में उपलब्ध फसल अवशेषों और अन्य कार्बनिक सामग्री का प्रयोग करके फलों व सब्जी की फसलोंं में किया जा सकता है। हाल ही में कुशल आर्द्रता संरक्षण, खरपतवार उपशमन तथा मृदा संरचना के अनुरक्षण के निहित लाभों के कारण प्लास्टिक मल्च प्रयोग में आए हैं । मल्चेज का प्रयोग करके सब्जियों की कई किस्में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं । मृदा एवं जल संरक्षण, उन्नत उपज व गुणवत्ता, खरपतवार वृद्धि को रोकने के अतिरिक्त, मल्चेज प्रयुक्त उवर्रक पोषक तत्वों का प्रयोग कुशलता में सुधार कर सकता है तथा प्रतिबिम्बित मल्चेज के प्रयोग से वायरस रोगों की घटना भी संभवतया न्यूनतम होगी। सब्जी उत्पादन के लिए आमतौर पर 30 माइक्रोन मोटी और 1-1.2 मि० चौड़ी पोलीथिलीन मल्च फिल्म जा प्रयोग किया जाता है। मल्च फिल्म बिछते समय आमतौर पर ड्रिप सिंचाई प्रणाली के साथ उथली क्यारी का उपयोग किया जाता है ।

९.बाड़े और अंतफसलन

अधिक तापमान तथा गर्म हवाओं से निपटने के लिए फार्म के चारों तरफ लम्बे वृक्ष लगाए जाने की जरुरत है। गर्मी के महीनों में फलोद्यानों के क्षेत्र में सब्जी फसलों की अंतफसलन प्रणाली अपनाई जा सकती है। शुष्क हवाओं के प्रभाव को कम करने के लिए प्लाट के चारों तरफ मक्का/ज्वार उगाई जा सकती है ।

१०.सब्जियों की संरक्षण खेती का प्रयोग

परि-नगरीय क्षेत्रों, जहाँ की जलवायु खुले खेत में फसलोंं के वर्ष भर उत्पादन के अनुकूल नहीं होती है, पाली हाउस में संरक्षित पर्यावरण में सब्जी उत्पादन किया जा सकता है । पाली हाउस फसल को जैविक और अजैविक बाधाओं से बचाने के लिए एक सुविधा है। संरक्षित खेती के लिए संरचनाओ में ग्रीन हाउसेज, प्लास्टिक/नेट हाउसेज तथा “सुरंगें “ शामिल हैं। सामान्य तौर पर संरक्षित संरचनाएं पोलिहाउसेज और नेट या शेड हाउसेज़ हैं। रेन-शेल्टर एक साधारण संरचना है जो पोलिथिलिन से ढ़का होता है और अधिक वर्षा से प्रभावित फसलोंं को उगने में मदद करता है। टमाटर, प्याज और खरबूजे की उत्पादकता,पर्ण रोगों के प्रबंधन, उचित मृदा वातन व निकासी की कमी में कठिनाई के कारण अधिक वर्षा की स्थिति में प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है तथा पर्णसमूह व पुष्प भी गिर सकते हैं। नेट हाउस खेती तथा शेड़ नेट खेती विशेषकर ग्रीष्मकाल के दौरान अधिक तापमान प्रभाव को न्यूनतम करने तथा सापेक्ष आर्द्रता में सुधार करने के लिए बेहतर सूक्ष्म जलवायु मुहैया कराती है ।

अधिक तापमान की अवधि के दौरान नेट/ऊपरी शेड़ नेट का उपयोग करके टमाटर, फ्रेंच चीन तथा पहाड़ी मिर्च की उत्पादकता को सुधारा जा सकता है।

११.अधिक तापमान दवाब के दौरान लीफ मायनर तथा कुटकी का नियत्रण

लीफ मायनर के प्रबंधक के लिए नीम साबुन 4 ग्राम/लीटर या ट्रायजोफोस 1.5 ग्राम मी०ली०/ली० का छिड़काव करें। कुटकी को मैनेज करने के लिए 0.5  मी०ली०/ली० का छिडकाव करें। नीम साबुन (1.0%) या नीम गिरी का अर्क (4.0%) का छिड़काव करके माहू को रोका जा सकता है ।

सब्जी की फसलों के लिए क्या करें और क्या न करें

  1. वृक्षों में बढ़ोतरी होने से पहले वृक्षों के नीचे तथा वृक्षों की कतारों के बीच खुली जगह को खरपतवार रहित रखना।
  2. प्याज जैसी फसलों में सीधी बुवाई के लिए ड्रम सीडर का प्रयोग करें ।
  3. अनुकूल मृदा आर्द्रता होम तक मुख्य खेत में पौधों के प्रतिरोपण और उर्वरक उपयोग को टाल दें।
  4. आर्द्रता स्थिति अनुकूल होते ही पौधा का रोपण करें ।
  5. मुख्य पोषक तत्वों (जल घुलनशील) के पर्ण अनुप्रयोग करना चाहिए ।
  6. आंशिक शेड से नए पौधे का संरक्षण ।
  7. फसलोंं के बीच दूरियों में निराई तथा इंटर-कल्चर पद्धतियाँ अपनाई जाएं।
  8. पौधों की संख्या को कम करने के लिए विरलन किया जाए।
  9. जल की उपलब्धता के आधार पर वैकल्पिक फरो सिंचाई की जाए।
  10. ड्रिप सिंचाई अपनाई जाए। संरक्षी अनुरक्षण के लिए जहाँ ड्रिप उपलब्ध न हो वहां घड़ा सिंचाई पद्धति अपनाएं।
  11. बेहतर मृदा एवं आर्द्रता संरक्षण तथा खरपतवार नियंत्रण के लिए प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई अपनाई जाए।
  12. सतही और भू- जल का संयुक्त उपयोग और साथ ही गैर-परम्परागत स्रोतों जैसे खारे जल के उपयोग को अपनाना ।
  13. बिना पूर्व उपचार के बेकार जल का उपयोग नहीं किया जाना तथा सुरक्षित जल का पुन: उपयोग सुनिश्चित किया जाए।
  14. उन उर्वरकों का उपयोग कम करें जो पौधो की वनस्पतिक वृद्धि को बढ़ाते हैं जैसे नाइट्रोजन, पौधों की वृद्धि को बनाए रखने के लिए पर्ण छि़ड़काव के रूप में पोटाश और बोरोन का प्रयोग करें ।
  15. जल प्रवाह और वितरण के दौरान जल हानियों को कम करना।
  16. जल अवशोषण और धीमे निर्गमन के लिए सुपर एबजोब्रेट पोलीमर्स जैसे ल्युक्यसोर्ब का उपयोग करें।
  17. फल सब्जियों के लिए क्या करें और क्या न करें
  18. ट्रेचिंग, कंटूर/फिल्ड बन्डिंग, गुली प्लगिंग, लूज बाउल्डर चेक डेम द्वारा स्व-स्थाने आर्द्रता संरक्षण किया जाए ।
  19. बेसिन में स्व-स्थाने आर्द्रता संरक्षण के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध कार्बनिक मल्चेज का प्रयोग करें। जल के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए ड्रिप/बूंद-बूंद सिंचाई को अपनाएं।
  20. पौधों की बेहतर स्थापना हेतु सुखारोधक जड़ भंडारों पर स्वस्थाने संशोधन। रुपांतरण बागवानी जैसे अंतर फसलें एवं मृदा नमी रूपांतरण कार्य प्रणालियां अपनाएं।
  21. जब तक पर्याप्त मृदा नमी उपलब्ध है उर्वरकों के मृदा अनुप्रयोग पर रोक।
  22. पोषक तत्व अन्तर ग्रहण तथा उपयोग दक्षता वृद्धि करते हुए जल सहय स्थितियों के तहत प्रमुख पोषक तत्वों के पणीय पोषक तत्वों का प्रयोग करना ।
  23. उच्च वाष्पीकृत मांग का कम करने के लिए नए पौधों को मिट्टी के पत्रों एवं संरक्षित शेड के माध्यम से संरक्षित सिंचाई प्रदान करना ।
  24. जल सीमित स्थितियों के अंतर्गत फल फसलोंं के उत्पादन के लिए ड्रिप सिंचाई एवं मल्चिंग के अलावा, मविन सिंचाई पद्धतियों जैसे आंशिक रूट जोन ड्राईग (पीआरडी) को अंगूर, आम तथा निम्बू में अपनाया जा सकता है।आंशिक रुट जोन ड्राईंग पद्धति डिपर रुट प्रणाली को विकसित करने में मदद करती है
  25. सभी फल फसलोंं के लिए, स्थानीय उपलब्ध पौधा सामग्रियों के साथ बेसिन मल्चिंग तथा प्लास्टिक मल्च अपनाये जा सकते हैं ।
  26. सभी उपलब्ध पौध अपशिष्ट सामग्रियों को वनस्पतिक खाद में बदलने की कोशिश की जानी चाहिए तथा फल एवं सब्जी फसल के लिए जैविक खाद के रूप में इसका उपयोग करना चाहिए।

स्त्रोत: राष्ट्रीय बागवानी मिशन