पांच सालों में एक तिहाई घट गई भूमि जोत: नाबार्ड सर्वेक्षण

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एक ओर जहां किसानों की मासिक घरेलू आय बढ़ रही है, वहीं उन पर व्यय और कर्ज का बोझ भी बढ़ रहा है। बढ़ी हुई कमाई के साथ किसान परिवार गैर खाद्य खर्चों की तरफ बढ़ रहे हैं और सबसे ज्यादा चिंताजनक यह है कि उनके पास खेती के लिए मौजूद भूमि जोत भी सिकुड़ती जा रही है।

नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) के ताजा सर्वे अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (एनएएफआईएस) 2021-22 आंकड़ों में यह बात सामने आई है। यह नाबार्ड का 2016-17 के बाद किया गया दूसरा सर्वेक्षण है। नाबार्ड का यह सर्वे कोविड-19 के बाद की अवधि के लिए कई आर्थिक और वित्तीय संकेतकों पर 1 लाख ग्रामीण परिवारों से संबंधित प्राथमिक सर्वेक्षण-आधारित जानकारी देता है।

सर्वेक्षण के मुताबिक देश में किसानों के पास 2016-17 में जहां औसत खेती के लिए भूमि जोत 1.08 हेक्टेयर थी वहीं, यह 2021-22 में घटकर 0.74 हेक्टेयर ही रह गई है। यानी करीब एक तिहाई (31 फीसदी) की कमी आई है।

ताजा सर्वेक्षण में किसानों के लिए एक उत्साहजनक खबर भी मौजूद है। सर्वेक्षण के मुताबिक 2016-17 में किसानों की औसत मासिक घरेलू आय जहां 8,059 रुपए थी, वहीं अब 2021-22 में यह 57.6 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 12,698 रुपए तक हो गई है। हालांकि ग्रामीण आय की 9.5 फीसदी कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (सीएजीआर) की वृद्धि सुखद है लेकिन औसत मासिक व्यय में वृद्धि भी दर्ज की की है।

सर्वेक्षण के मुताबिक 2016-17 में ग्रामीण परिवार जहां महीने में 6,646 औसतन खर्च कर रहे थे वहीं यह अब बढ़कर 11,262 रुपए हो गया है। यानी 2016-17 के बाद मासिक खर्च में 69.4 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसका साधारण अर्थ है कि लोग ज्यादा कमा रहे हैं, लेकिन साथ ही वे ज्यादा खर्च भी कर रहे हैं।

इस व्यय में भोजन के लिए खर्च का हिस्सा 51 से घटकर 47 फीसदी हो गया है, जो यह बताता है कि ग्रामीण परिवार गैर-खाद्य खर्चों की ओर बढ़ रहे हैं। इससे खर्च करने की प्रवृत्ति और खाद्य सुरक्षा पर भी सवाल उठता है।

आय और व्यय के इस गणित के अलावा किसान परिवारों पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण लेने वाले परिवारों की संख्या 47.4 प्रतिशत से बढ़कर 52 प्रतिशत हो गई है, जो वित्तीय दबाव का संकेत है।

इसका अर्थ हुआ कि 2016-17 में यदि हर 100 घरों में से लगभग 47 ( 47.4%) पर किसी न किसी तरह का कर्ज था, यानी उन पर पैसे बकाया थे तो 2021-22 तक यह संख्या बढ़कर हर 100 घरों में से 52 ( 52.0 फीसदी) हो गई।

सर्वेक्षण बताता है कि इन पांच वर्षों में बकाया कर्ज वाले परिवारों का प्रतिशत बढ़ा है जो बताता है कि ज्यादा से ज्यादा परिवार अपने खर्चों को पूरा करने या जरूरतें पूरी करने के लिए ऋण पर निर्भर हैं। यह वृद्धि परिवारों पर वित्तीय दबाव और उधार पैसे की ज्यादा जरूरत का संकेत देती है।

हालांकि, सर्वेक्षण में ग्रामीण परिवारों के बीच संस्थागत उधार में 60.5 फीसदी से 75.5 फीसदी तक की वृद्धि का आंकड़ा एक सकारात्मक विकास की तरफ इशारा कर रहा है, जो यह बताता है कि किसान औपचारिक वित्तीय चैनलों तक पहुंच रहे हैं।

किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना का काफी विस्तार हुआ है। केसीसी की कवरेज 10.5 फीसदी से बढ़कर 44.1 फीसदी हो गई है। यह किसानों के बीच वित्तीय समावेशन में सुधार की दिशा में प्रयासों को उजागर करता है।

किसान परिवारों की पेंशन तक पहुंच में भी सुधार हुआ है। सर्वेक्षण के मुताबिक 23.5 प्रतिशत परिवारों में कम से कम एक सदस्य पेंशन प्राप्त कर रहा है, जो पहले 18.9 प्रतिशत था। इसके अलावा बीमा कवरेज में भी सुधार देखा गया है। 80.3 प्रतिशत परिवारों के पास अब कम से कम एक बीमाधारक है, जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा सिर्फ 25.5 प्रतिशत था।

वित्तीय साक्षरता और वित्तीय व्यवहार में भी सुधार हुआ है। 51.3 प्रतिशत परिवारों ने बेहतर वित्तीय जानकारी की सूचना दी, जबकि पहले यह आंकड़ा 33.9 प्रतिशत था। साथ ही, 72.8 प्रतिशत परिवारों ने पैसे का बेहतर प्रबंधन और समय पर बिलों का भुगतान किया, जो पहले 56.4 प्रतिशत था।

इस वृद्धि से यह पता चलता है कि कुछ परिवार आर्थिक दबावों के लिए बेहतर तरीके से अनुकूलन कर रहे हैं। हालांकि, यह कह पाना मुश्किल होगा कि ग्रामीण परिवारों का यह व्यवहार उनकी आर्थिक स्थिति को अच्छा करने के लिए है या फिर वे लगातार प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं और अपने वित्तीय व्यवहार से उसका सामना कर रहे हैं।

वहीं, सर्वेक्षण में एक अच्छी खबर यह है कि ग्रामीण परिवारों के बीच वित्तीय बचत में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो 9,104 रुपये से बढ़कर 13,209 रुपये हो गई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि करीब 66 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों ने 2021-22 में बचत की, जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 50.6 प्रतिशत था।