कम दूध और दालें खा रहे हैं भारतीय

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भारतीय दाल और अनाज संघ के मुताबिक़ पिछले कुछ समय में भारत में दालों की खपत घट रही है.

अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक़, पुणे में हुए वैश्विक दाल सम्मेलन के दौरान प्रत्येक दाल की ख़पत का आकलन लगाया गया था.

अनुभवी कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी का मानना ​​है कि दूध और दालों दोनों में स्थिर खपत की प्रवृत्ति काफी हद तक आय के कारण है, जो पहले की तरह नहीं बढ़ रही है। यह विशेष रूप से गरीब वर्गों के लिए है, जिनका प्रोटीन युक्त "उत्कृष्ट" खाद्य पदार्थों पर खर्च उच्च आय के साथ और भी अधिक बढ़ जाता है।क्या भारत में दालों, दूध और अन्य प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की मांग में स्थिरता है? राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने 2017-18 के लिए अपनी घरेलू खपत व्यय सर्वेक्षण रिपोर्ट को रोक दिया, लेकिन वैकल्पिक डेटा स्रोत मंदी का सुझाव देते हैं - कम से कम सर्वव्यापी दाल और दूध के संबंध में।

इस आकलन में ये सामने आया है कि साल 2013-14 में दालों की खपत 18.6 मिलियन टन से बढ़कर 22.5 मिलियन टन हो गई थी.

लेकिन 2018-19 में ये गिरकर 22.1 मिलियन टन पर सिमट गई.इसके बाद इस साल दाल की खपत 20.7 मिलियन रहने की आशंका जताई जा रही है.

इस आकलन को लगाने के लिए हर साल के ओपनिंग स्टॉक को भारत में पैदा होने वाली और आयात की जाने वाली दाल की मात्रा से जोड़ा गया. इसके बाद निर्यात, बीज और चारे में लगने वाली दाल की मात्रा समेत क्लोज़िंग स्टॉक से घटाया गया.

इस तरह जो आंकड़े सामने आए हैं वो बताते हैं कि भारत में दालों की खपत घट रही है. यही नहीं, दूध की खपत के मामले में भी यही संकेत मिल रहे हैं.

प्रख्यात कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी मानते हैं कि आमदनी में अपेक्षाकृत कम बढ़त की वजह से दूध और दालों की खपत में लगातार गिरावट सामने आ रही है.

लेकिन इस गिरावट को आमदनी से तब तक नहीं जोड़ा जा सकता है जब तक सरकार एनएसएसओ के आंकड़ों को जारी न करे.