स्ट्रॉबेरी और पपीता से बढ़ी भोपाल के सोदान सिंह की आमदनी

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 हम आपको मध्‍य प्रदेश के एक ऐसे किसान की सफलता के बारे में बताते हैं जिसने स्‍ट्रॉबेरी और पपीते की खेती में सफलता हासिल की है. राज्‍य के किसान ने न केवल स्‍ट्रॉबेरी और पपीते की खेती में लाखों कमाए हैं बल्कि दूसरे किसानों को भी इस तरफ प्रेरित किया है. इस किसान की कहानी को राज्‍य के कृषि व‍िभाग की तरफ से भी साझा किया गया है. किसान सोदान सिंह जो भोपाल के करीब गांव बोरखेड़ी बजायफ्ता में खेती करते हैं, उन्‍होंने बहुत कम लागत में ज्‍यादा आय कमाई है. सोदान सिंह ने ऐसी जमीन पर खेती की है जो किसी काम में नहीं आ पा रही थी. 

बेकार पड़ी जमीन भी आई काम 

सोदान सिंह के पास चार एकड़ की भूमि थी और ऐसे ही बेकार पड़ी थी. उन्‍होंने परंपरागत खेती की जगह स्‍ट्रॉबेरी और पपीते की खेती को चुना. सोदान सिंह के पिता गोरेलाल कुशवाहा की मानें तो वह हमेशा से ही परंपरागत खेती में यकीन करते थे. लेकिन फिर उन्‍होंने कृषि विभाग के अधिकारियों से बात की और ड्रिप माल्चिंग टेक्निक को अपनाया. उनकी मानें तो जब उन्‍होंने खेती शुरू की तो पहले साल में ज्‍यादा लागत आई और एक लाख रुपये खर्च हुए. इस रकम में उन्‍होंने अपने खेत को ठीक किया और माल्चिंग को अंजाम दिया. 

दूसरे साल से मिला फायदा  

एक एकड़ के खेत में उन्‍होंने 24000 पौधे लगाए थे. एक पौधे की कीमत 10 रुपये थी और करीब 2 लाख 40 हजार की लागत से उन्‍होंने ये पौधे खरीदे थे. सोदान सिंह की मानें तो एक एकड़ में पहले साल दो से ढाई लाख रुपये तक की आमदनी हुई. इसके बाद अगले साल यानी दूसरे वर्ष से उन्‍हें सात से आठ लाख रुपये तक की आमदनी होने लगी. सोदान सिंह ने बताया कि स्‍ट्रॉबेरी की फसल 4 से 5 महीने तक होती है. इसकी फसल के बाद पपीता की फसल से उन्‍हें तीन से साढ़े तीन लाख रुपये प्रति एकड़ तक की आमदनी होती है. 

दूर हुई सारी चिंताएं 

सोदान सिंह की मानें तो वह पहले परेशान रहते थे कि उनके खेती की मिट्टी में इतनी क्षमता नहीं है कि वह पानी को सोख सके और उन्‍हें परंपरागत फसलों में कुछ ज्‍यादा फायदा नहीं हुआ है. लेकिन अब उनकी यह चिंता भी दूर हो गई. ड्रिप सिंचाई तकनीक की मदद से वह बेहतर खेती कर पा रहे हैं. अब वह अपनी उस भूमि से भी ज्‍यादा से ज्‍यादा फायदा उठा रहे हैं, जो किसी भी काम नहीं आ पा रही थी.