आज के दौर में पारंपरिक खेती से इतनी आमदनी नहीं हो पा रही है जिससे किसान खुशहाल बन सके. लेकिन जो किसान समय के साथ चल रहे हैं और नए-नए प्रयोग कर रहे हैं. वहीं आज मालामाल बन रहे हैं. अब बिहार के गया में किसान पारंपरिक फसलों को छोड़ कर मेंथा की फसल की खेती कर रहे हैं. गयाजी के किसान इसे हरा सोना भी कहते हैं क्योंकि इससे गेहूं फसल के मुकाबले तीन गुना ज्यादा मुनाफा होता है.
गयाजी में मेंथा की खेती: पहली बार गयाजी में इसकी खेती की जा रही है. बांकेबाजार प्रखंड के विशुनपुर गांव मेंथा की खेती करने वाले किसान सुदामा कुशवाहा कहते हैं कि इसकी फसल तीन महीनों में तैयार हो जाती है. ऐसे में अगर आप लगभग दस एकड़ में इस फसल की खेती करें तो महज तीन महीनों में आप लखपति हो जाएंगे. दरअसल, मेंथा हर्बल प्रोडक्ट में आता है. इसके तेल का इस्तेमाल कई तरह की दवाओं में होता है.
“6 एकड़ जमीन पर खेती की है.फसल अच्छी रही तो रकबा अगले साल से 20 एकड़ का होगा. मेंथा की खेती में थोड़ा देख भाल कर लें तो अच्छे मुनाफे की खेती है. एक बार जिस किसान को इसकी खेती करने की लत लग गई तो फिर वो नहीं छोड़ेगा.” – सुदामा कुशवाहा, विशुनपुर गांव

दवाईयों में होता है इस्तेमाल: मेंथा की खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं क्योंकि मेंथा की फसल अन्य फसलों की तुलना में अधिक मुनाफे वाली होती है. इससे निकलने वाले तेल की देश-विदेशों में भी खूब मांग रहती है. जिससे इसका तेल 2 हजार से 3 हजार रुपये तक बिकता है. मेंथा की खेती करने का सबसे उपयुक्त समय फरवरी से मार्च का है. बता दें कि मेंथा में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसका इस्तेमाल कई तरह की दवाइयों को बनाने में किया जाता है.

“मेंथा का वैज्ञानिक नाम मेंथा पिपेरिटा है जबकि आम भाषा में इसे पुदीना मिंट भी कहा जाता है. इसकी खेती के बाद पत्तों से तेल निकाला जाता है और तेल की कीमत मार्केट में 1200 से लेकर 2500 रुपए तक होती है.” – डॉ हेमंत कुमार सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, केंद्रीय विश्वविद्यालय गया
भारत में कहां कहां होती है इसकी खेती?: भारत में इस वक्त मेंथा की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब में होती है. इन राज्यों में कई बड़े किसान मेंथा का उत्पादन बड़े स्तर पर करते हैं और इससे हर साल मोटा मुनाफा कमाते हैं. भारत के अलावे अमेरिका, ब्राजील और चीन में भी मेंथा की खेती की जाती है.

कब होती है मेंथा की खेती?: मेंथा की खेती के लिए फरवरी का महीना सबसे बेहतर होता है. वहीं मई में इस फसल की कटाई हो जाती है. यानी तीन महीनों में ये फसल तैयार हो जाती है. सबसे अच्छी बात ये है कि इस फसल को पारंपरिक फसलों की तरह ज्यादा सिंचाई और देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती. यही वजह है कि उत्तर भारत के ज्यादातर किसान इस फसल की ओर बढ़ रहे हैं.
कैसे निकलता है तेल?: मेंथा के पत्तों से तेल निकालने के लिए टंकी का उपयोग किया जाता है. तेल निकालने के लिए दो बड़ी टंकी होती हैं. जिसमें एक में पिपरमेंट मेंथा के पौधे भर दिए जाता है तो दूसरे में पानी. फिर इन टंकियों के नीचे आग लगाई जाती है. इसे खूब उबाला जाता है. लगभग 3 से 4 घंटे तक की प्रक्रिया चलती है. पौधे वाली टंकी की भाप और पानी दूसरी टंकी की सपरेटा में जाती है. उसको फिर दूसरे बर्तन में निकाल लिया जाता है और ठंडा होने पर तेल ऊपर आ जाता है और पानी नीचे बैठ जाता है.

खेती में कितना है फायदा?: किसान सुदामा कुशवाहा कहते हैं कि एक कट्ठा में खेती करने पर 3 से 5 लीटर तक तेल निकलता है. अगर 2 हजार हजार रुपये भी तेल बिकता है तो एक कट्ठा में तीन लीटर की कीमत छह हजार होगी जबकि एक कट्ठा में खेती की लागत एक हजार से 13 सौ रुपये तक आएगी. प्रति कट्ठा 4700 के लगभग मुनाफा होगा. इस तरह से एक एकड़ में लगभग 1.5 लाख की आमदनी होगी. हम ने अगर 6 एकड़ में खेती की है और फसल अच्छी रही तो इस में 10 लाख तक की आमदनी हो सकती है.

त्वचा और बाल रक्षक: डॉ हेमंत कुमार सिंह कहते हैं कि त्वचा संबंधित चमक के लिए भी मेंथा मुफीद है. आज के समय में काफी प्रदूषण फैल रहा है. प्रदूषण के कारण त्वचा के साथ बाल, चेहरे की चमक खत्म होती जा रही है. बाल भी इसके कारण झड़ने लगते हैं लेकिन ऐसी समस्याओं में भी मेंथा का तेल उपयोगी है. ये उपयोग में लाया जा रहा है. रेगुलर अगर इसका उपयोग करते हैं तो पाचन शक्ति भी बढ़ती है. सांस की भी समस्या होती है तो उसमें भी यह काफी फायदेमंद होता है. इससे सिर दर्द के लिए विक्स, ठंडा तेल और आदि चीज होती हैं उसमें भी इसका इस्तेमाल होता है.

मेंथा का पौधा
औषधीय खेती पर सरकार दे रही अनुदान: गयाजी में डिस्टिलेशन मशीन पर राज्य सरकार 50 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है. गयाजी जिला को 100 हेक्टेयर में मेंथा की खेती के लिए किसानों को अनुदान दिए जाने का लक्ष्य मिला है. बहुत से किसान लाभान्वित होंगे. एक हेक्टेयर मेंथा की खेती करने पर किसान को 20 हजार रुपये सरकार से सहायता के रूप में मिलती है. एक एकड़ फसल से किसान मार्च से जून-जुलाई तक दो से तीन बार कटाई कर लेते हैं. इनसे 50-60 लीटर तेल प्राप्त होता है.