बटाई या किराये पर दे रहे हैं खेत तो अवश्य करें यह काम

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सरकार की ओर से किसानों को कई तरह की योजनाओं का लाभ दिया जाता है। इसमें पीएम किसान योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, कृषि यंत्र अनुदान योजना, फसल नुकसान मुआवजा जैसी आदि कई ऐसी योजनाएं हैं जिसके तहत किसानों को आर्थिक सहायता या सब्सिडी का पैसा सीधा उनके खातों में ट्रांसफर किया जाता है। लेकिन अब राज्य सरकार ने खेत बटाई या किराये पर देने पर नियमानुसार अनुबंध अनिवार्य कर दिया है। इसके लिए यह तय किया गया है कि यदि कोई किसान बिना अनुबंध के अपनी भूमि किसी अन्य व्यक्ति को बटाई या किराये पर देता है तो उसे कुछ सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित किया जा सकता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वे अपनी खेत की जमीन बटाई या किराये पर देने से पहले नियमानुसार अनुबंध करें उसके बाद ही अपनी भूमि किसी अन्य को बटाई या किराये पर दें। इससे दोनों पक्षों को लाभ होगा।

क्या होता है बटाई पर भूमि देना

बटाई पर भूमि देने का मतलब है कि भूमि का वास्तविक मालिक या किसान अपनी भूमि किसी अन्य किसान को खेती करने के लिए देता है और उसके बदले में फसल हिस्सा लेता है। ऐसे में भूमि देने वाले किसान को कोई काम नहीं करना होता है। सारा खेती का काम बटाईदार किसान करता है। इस तरह दी गई भूमि को बटाई पर भूमि देना कहते हैं और जो किसान बटाई पर भूमि लेता है उसे बटाईदार किसान कहा जाता है। सरकार की योजनाओं में बटाईदार किसान को भी सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने का प्रावधान है। वहीं सिकमी किसान वह होते हैं जो किसान मालिक की भूमि को खेती के लिए लेते हैं और इसके बदले में लगान या निर्धारित अंश धन राशि देते हैं। ऐसी दी गई भूमि को सिकमी भूमि कहा जाता है।

भूमि का अनुबंध कराने से क्या होगा लाभ

कुछ सरकारी योजनाओं का लाभ बटाईदार किसान को भी दिया जाता है। बशर्ते है कि उसके पास अनुबंध का प्रमाण हो, क्योंकि सरकार का उद्देश्य है कि सरकारी योजना का लाभ वास्तविक किसान को मिलना चाहिए। ऐसे में यदि आपने अनुबंध किया है तो आपको सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने में आसानी होगी। इसके विपरित यदि आपने बिना अनुबंध के बटाई पर भूमि ले रखी है तो आपको सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा। इस तरह खेती की भूमि का अनुबंध बटाईदार किसानों के हित में है।

भूमि अनुबंध के लिए क्या है राज्य सरकार के नियम

मध्यप्रदेश में भूमि स्वामी एवं बटाईदारों के हित में बनाए गए संरक्षण अधिनियम 2016 के अनुरूप भूमि बटाई पर दिए जाने की मान्यता प्रदान की गई है। यह अधिनियम भूमि स्वामी व बटाईदार किसान दोनों के हित का संरक्षण करता है। अब कोई भी भूमि स्वामी अपनी भूमि बटाई पर देने अथवा किसी व्यक्ति द्वारा बटाई पर लेने की वैधानिकता तभी मानी जाएगी जब दोनों पक्षों द्वारा मध्यप्रदेश भूमि स्वामी बटाईदारों के हित संरक्षण अधिनियम 2016 के नियम चार के तहत अनुबंध निष्पादित किया हो और एक प्रति संबंधित क्षेत्र के तहसीलदार को उपलब्ध कराई हो।

अधिनियम का पालन नहीं करने पर क्या हो सकता है नुकसान

यदि कोई भूमि स्वामी मालिक या बटाईदार किसान भूमि का अनुबंध किए बिना ही आपसी मौखिक तौर पर भूमि किराये या बटाई पर दे देता है तो इसका नुकसान बटाईदार किसान को होगा। उसे क्षति होने पर दी जाने वाली राहत राशि यानी मुआवजा, बीमा राशि, कृषि उपज समर्थन मूल्य यानी एमएसपी आदि योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा। इन योजनाओं लाभ उसे उसी अवस्था में ही मिल सकेगा जब भूमि स्वामी और बटाईदार के बीच उपरोक्त अधिनियम के तहत अनुबंध किया गया होगा। अनुबंध के अभाव में योजनाओं का लाभ मिलना संभव नहीं हो पाएगा।

बटाईदार किसान के लिए अनुबंध क्यों है जरूरी

मध्यप्रदेश सरकार ने बटाईदारों के लिए अनुबंध कराना अनिवार्य किया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर उपज बेचने के लिए किसानों द्वारा जो पंजीयन कराया जाता है उसमें फर्जीवाड़ा नहीं हो, इसके लिए राज्य सरकार ने सख्त कदम उठाए हैं। कई बार देखने में आया है कि दूसरों की भूमि को बटाईदार व सिकमी अपनी बताकर पंजीयन करा कर बड़ी संख्या में गरीबों से कम कीमत पर उपज खरीद कर उसे एमएसपी पर बेच देते हैं और लाभ कमाते हैं। इससे वास्तविक किसान को एमएसपी का लाभ नहीं मिल पाता है। पर अब ऐसा नहीं होगा। अनुबंध होने पर बटाईदार या सिकमी किसान भी अनुबंध के आधार पर पंजीयन करवा कर अपनी उपज एमएसपी पर बेच सकेंगे।

कैसे होता है भू स्वामी व बटाईदारों का अनुबंध

मध्यप्रदेश भू स्वामी एवं बटाईदार के हितों का संरक्षण विधेयक 2016 की धारा (4)(2) में सिकमी व बटाईदार रखने की सीमा का कोई बंधन नहीं है। अनुबंध की एक प्रति तहसीलदार को प्रस्तुत की जाती है। लेकिन ऐसे अनुबंध के आधार पर राजस्व अभिलेखों में प्रगति किए जाने का प्रावधान नहीं है। सिकमी बटाई व्यवस्था भूमिहीन या छोटे किसानों को दूसरे की भूमि पर खेती करने की एक व्यवस्था है। इसका लाभ ऐसे किसान ही ले सकें, इसके लिए बटाईदार के पंजीयन पर सील लगाना आवश्यक है। राजस्व विभाग की स्वीकृति के बाद ही अनुबंध मान्य माना जाता है।