मंडियों की कमी से जूझ रहे क‍िसान, कैसे म‍िलेगा कृष‍ि उपज का अच्छा दाम? 

0
16

देश में हाइवे बन रहे हैं, शहरों का व‍िस्तार हो रहा है, मॉल बन रहे हैं, अस्पताल और स्कूल बन रहे हैं, गांव भी व‍िकास यात्रा के साक्षी बन रहे हैं, लेक‍िन एक चीज ज‍िस पर बहुत कम काम हो रहा है वो है कृष‍ि उपज के ल‍िए बाजार यानी मंडी बनाने का काम. आजादी के बाद से अब तक सभी सरकारें यह कहती रही हैं क‍ि वो क‍िसानों के ल‍िए काम करेंगी, लेक‍िन आज तक पर्याप्त बाजार की सुव‍िधा तक नहीं द‍िला सकीं हैं. जब कृष‍ि उपज बेचने के ल‍िए बाजार ही नहीं म‍िलेगा तो फ‍िर उन्हें दाम कैसे अच्छा म‍िलेगा? साल 2006 में आई राष्ट्रीय किसान आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 80 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सरकार द्वारा रेगुलेटेड एक मंडी यानी एपीएमसी होनी चाह‍िए, लेक‍िन इस वक्त 406 वर्ग क‍िलोमीटर क्षेत्र में क‍िसानों को एक मंडी की सुव‍िधा म‍िल पा रही है.  

ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है क‍ि क्या मंड‍ियों की कमी के कारण ही क‍िसान अपनी कृष‍ि उपज औने-पौने दाम पर व्यापार‍ियों को बेचने पर मजबूर हैं? कृष‍ि व‍िशेषज्ञ कुछ ऐसा ही मानते हैं. इस बात की तस्दीक आप आंकड़ों की कसौटी पर भी कर सकते हैं. आज भी उन सूबों के क‍िसानों की आय अच्छी है, जहां पर मंड‍ियों का पर्याप्त जाल ब‍िछा हुआ है. बड़े राज्यों में बात की जाए तो पंजाब में 116 और हर‍ियाणा में 155 वर्ग क‍िलोमीटर में एक मंडी की सुव‍िधा उपलब्ध है. 

यह उस मानक के काफी नजदीक है जो राष्ट्रीय कृष‍ि आयोग ने बताया है. इसील‍िए ये दोनों सूबे क‍िसानों की आय के मामले में सबसे ऊपर द‍िखाई देते हैं. बेश‍क दोनों राज्यों में क‍िसानों की आय अन्य सूबों से अध‍िक होने के पीछे यहां एमएसपी पर अच्छी खरीद है, लेक‍िन ये दोनों राज्य इसल‍िए ऐसा कर पा रहे हैं क्योंक‍ि उनके पास मंड‍ियों का अच्छा नेटवर्क है.

मंड‍ियां न होने से क्या है नुकसान

ब‍िहार के पूर्व कृष‍ि मंत्री और वर्तमान में बक्सर से सांसद चुने गए सुधाकर स‍िंह का कहना है क‍ि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)की गारंटी के साथ ही क‍िसानों को मंडी की भी गारंटी मांगनी पड़ेगी, क्योंक‍ि पर्याप्त मंड‍ियों के ब‍िना क‍िसानों को उनकी उपज का सही दाम म‍िलना आसान नहीं होगा. ब‍िहार में क‍िसानों की आय कम होने के पीछे एक बड़ी वजह मंडी न होना भी है.

मंड‍ियों की जरूरत इसल‍िए है ताक‍ि क‍िसान जो कुछ भी अपने खेत में पैदा कर रहे हैं, उसे बेचने के ल‍िए उन्हें बाजार म‍िले. वरना स्थ‍िति ब‍िहार जैसी हो जाएगी, ज‍िसका नाम क‍िसानों की आय वाली ल‍िस्ट में सबसे नीचे के सूबों में आता है. दरअसल, साल 2006 में नीतीश सरकार ने एपीएमसी को खत्म कर द‍िया था. 

जुलाई 2018 से जून 2019 तक के बीच क‍िसानों की आय के ल‍िए हुए सरकारी सर्वे के अनुसार देश में प्रत‍ि क‍िसान पर‍िवार औसत आय 10,218 रुपये महीना है. जबक‍ि, पंजाब में प्रत‍ि क‍िसान पर‍िवार आय 26,701 और हर‍ियाणा में 22,841 रुपये है. जबक‍ि ब‍िहार में स‍िर्फ 7,542 रुपये है, जो राष्ट्रीय औसत से भी कम है. उत्तर प्रदेश में 384 वर्ग क‍िलोमीटर पर एक एपीएमसी मंडी है. यहां भी क‍िसान पर‍िवारों की आय राष्ट्रीय औसत से काफी कम स‍िर्फ 8,061 रुपये है.

क‍ितनी मंड‍ियों की जरूरत 

क‍िसानों की आय बढ़ाने के ल‍िए अप्रैल 2016 में गठ‍ित डॉ. अशोक दलवाई कमेटी की र‍िपोर्ट के अनुसार देश को कुल 30,000 बाजारों की जरूरत है. सरकार को यह र‍िपोर्ट सितंबर 2018 में सौंपी गई थी. इसी र‍िपोर्ट में एक जगह कहा गया है क‍ि राष्ट्रीय कृषि आयोग (1976) द्वारा सिफारिश की गई थी क‍ि खेतों से 5 किलोमीटर की सीमा के भीतर एक बाजार उपलब्ध कराया जाना चाहिए. एक ऐसी दूरी जो एक घंटे के भीतर पैदल या गाड़ी से तय की जा सके. 

बाद में नए क‍िसान आयोग ने 2006 में इसका मानक बदल द‍िया. इसमें बताया गया क‍ि 80 वर्ग किलोमीटर में एक मंडी की जरूरत है. हालांकि, मूल सिफारिश उस समय की गई थी जब सड़क संपर्क बहुत कम था और किसान अपनी उपज को सिर पर लादकर या ऊंट या बैलगाड़ी पर लादकर लाते थे.

 

उधर, जानेमाने कृष‍ि अर्थशास्त्री देव‍िंदर शर्मा का कहना है कायदे से 5 वर्ग क‍िलोमीटर पर ही एक मंडी होनी चाह‍िए, ताक‍ि क‍िसानों को अपनी उपज बेचने बहुत दूर न जाना पड़े और माल ढुलाई कम लगे. देश में अभी स‍िर्फ सात हजार मंड‍ियां हैं, ज‍बक‍ि मौजूदा समय में 42000 मंडियों की जरूरत है. इस ह‍िसाब से मंड‍ियों की संख्या काफी कम है.

हैरान करने वाला है आंकड़ा 

वर्तमान में देश में एग्री प्रोड्यूज मार्केट‍िंग कमेटी (एपीएमसी) द्वारा रेगुलेटेड मंडियों की कुल संख्या का अगर राज्यवार ब्यौरा देखेंगे तो आपकी आंख खुल जाएगी क‍ि आजादी के बाद से अब तक बड़ी-बड़ी बातें करने वाले हमारे नेता क‍िसानों को अपनी उपज बेचने के ल‍िए बाजार तक नहीं उपलब्ध करवा पाए हैं. ज‍िसकी वजह से क‍िसान अपनी उपज को औने-पौने दाम पर बेचने पर मजबूर होते हैं. 

संसद में 31 मार्च 2023 तक की रखी गई एक र‍िपोर्ट के अनुसार देश में स‍िर्फ 7085 मंड‍ियां हैं. जबक‍ि अगर भौगोल‍िक क्षेत्र और राष्ट्रीय क‍िसान आयोग के मानक के ह‍िसाब से देखा जाए तो यह काफी कम है. हालांक‍ि, केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय ने कहा है क‍ि मंडी के अंतर को पाटने के लिए निजी मंडियों की स्थापना हो रही है. यही नहीं सरकार किसानों से सीधी थोक खरीद को बढ़ावा दे रही है.

सरकारी दावे और हकीकत 

कृषि मार्केट‍िंग राज्य का विषय है और एपीएमसी मंड‍ियां संबंधित राज्य के कृषि उपज बाजार समिति अधिनियम के तहत रेगुलेट होती हैं. सरकार एपीएमसी को मजबूत बनाने का दावा जरूर कर रही है, लेक‍िन धरातल पर ऐसे दावे क‍ितने खरे उतरते हैं यह क‍िसान अच्छी तरह से जानते हैं. फ‍िलहाल, क‍िसान अपनी उपज बेचने के ल‍िए बाजार की कमी से जूझ रहे हैं. उन्हें इंतजार उस वक्त का है जब सरकार इस बारे में कोई ठोस फैसला लेकर उन्हें व‍िश्वास द‍िलाएगी क‍ि वो वाकई मंड‍ियों की संख्या बढ़ाने के ल‍िए गंभीर है.