कैसे करें हाइब्रिड बोरो धान की खेती

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बरसात में निचले जलभराव के क्षेत्र सामान्य खरीफ एवं रबी फसलों के लिए अनुपयुक्त रहते है। ऐसे क्षेत्र लगभग 3000 हेक्टेयर पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया, देवरिया, गोरखपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, मिर्जापुर, वाराणसी एवं गाजीपुर जनपदों में आज भी उपलब्ध हैं पर इस भूभाग की समुचित शस्य प्रबन्धन प्रभावी अधिक उपजाऊ प्रजातियों एवं कृषकों को लाभकारी प्रोत्साहन के आभाव में उत्पादकता अत्यन्त कम है। जबकि बोरो प्रजातियों में अधिक अधिक उत्पादन की समता उपलब्ध है। साथ ही साथ प्रचुर नमी उपलब्धता, पूरे जीवन काल में प्रचुर तीव्र प्रकार की प्रचुरता, रोग, कीट एवं मौसमी खरपतवार की न्यून सम्भावनाओं के कारण सामान्य धान की तुलना में लगभग 30-50 प्रतिशत तक अधिक उपज, बोरोधान की खेती से प्राप्त किया जा सकता है जो कि एक अतिरिक्त उत्पादन के रूप में प्रदेश एवं किसानों के लिए एक वरदान सिद्ध हो सकता है। इस तरह निष्प्रयोज्य भूमि उपयोग से कुल फसल आच्छादन क्षेत्र में वृद्धि एवं कृषकों के बेकार समय का सदुपयोग होने से उत्पादकता एवं आय में बढ़ोत्तरी अवश्यंभावी है। आज भी साकेत-4 सरजू-52, जया, आई.आर.-8 की खेती किसानों द्वारा बोरोधान के रूप में की जा रही है। परीक्षणें में अन्य प्रदेशों द्वारा प्रतिपादित प्रजातियाँ जैसे – प्रभात, सरोज, गौतम आदि उत्पादन की दृष्टि से उत्तम पायी गयी है।

वानस्पतिक नाम – Oryza sativa

कुल – ग्रेमिनी व वर्तमान कुल Poaceae

गुणसूत्रों की संख्या – 24

उत्पत्ति स्थान – पूर्वी भारत, चीन,इंडोनेशिया

बोरोधान की उन्नत किस्में –

बोरोधान की संस्तुत अधिक उपजाऊ प्रजातियाँ

क्र. सं.     प्रजाति का नाम     अवधि दिनों में     उपज क्षमता कुन्तल/हे0

1     नरेन्द्र-97     145     35-45

2     बरानी दीप     140     30-40

3     रिछारिया     160     35-45

4     धनलक्ष्मी     170     45-55

5     प्रभात     160     50-60

6     सरोज     170     55-65

7     गौतम     175     60-70

8     मालवीय धान-105     150-155     65-70

9     आई०आर०-64     145-150     60-65

बोरो धान की खेती भूमि का चयन –

बरसात में अधिक जल भराव से आच्छादित विशेष रूप से तालाब, झील के किनारे क्षेत्रफल जिसका जल वर्षा ऋतु समाप्त होने के साथ-साथ घट कर अधिकतम 30 सेमी० रह जाता है, उपयोगी होता है। कहीं-कहीं जहाँ बड़ी नहरों के किनारों वाली भूमि जो सदैव जल रिसाव (सीपेज) के कारण जलाच्छादित रहती है, बोरो धान की खेती के लिए उपयोगी होती है।

बीज की बीज की मात्रा –

40-45 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से पौध डालना चहिए।

पौध हेतु नर्सरी डालने का समय-

मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर का समय उपयुक्त होता है।

रोपाई का समय-

एक माह से अधिक लेकिन दो माह से कम समय की पौध रोपाई करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है।

बोरो धान की खेती हेतु पौध प्रबन्धन –

उत्तम पौध प्रबन्धन बोरो धान की सफल खेती के लिए आवश्यक है | बोरोधान की पौध के लिए रोपाई किये जाने वाले प्रक्षेत्र के पास की निचली भूमि जो सिंचाई सुविधा युक्त हो, उपयुक्त होती है।पौधे के खेत में 1 से 1.5 किग्रा० सड़ी गोबर की खाद का कम्पोस्ट प्रति वर्ग मीटर की दर से प्रयोग करना चाहिए।एक हेक्टेयर रोपाई के लिए आवश्यक पौध क्षेत्रफल1/10 हेक्टेयर में 25 किग्रा० यूरिया, 25 किग्रा० सिंगल सुपर फास्फेट, 20 किग्रा०म्यूरेट आफ पोटाश एवं 2 किग्रा० जिंक सल्फेट का प्रयोग पौध के खेत तैयार करते समय डालना चाहिए। 2 ग्राम प्रति किग्रा० बीज की दर से बीज शोधन के लिए कार्बेन्डाजिम का प्रयोग करना चाहिए। 80-100 ग्राम अंकुरित बीज की बुआई प्रति वर्ग मीटर में करना चाहिए। बीज अंकुरण के लिए बीज को 24 घण्टे पानी में भिगोने के पश्चात 48 घंटे छाया में भीगे बोरो से ढकना आवश्यक है। किसान भाई बीजों की बुवाई के बाद नियमित रूप से सिंचाई करते रहें | ताकि नर्सरी में नमी पर्याप्त मात्रा में बनी रहे |

पौध को ठंडक से बचाने के उपाय-

v  पौध की सिंचाई समुचित रूप से करते रहना चाहिए।

v  लकड़ी/पुआल/गोबर की राख का छिड़काव सप्ताह में दो बार करते रहना चाहिए।

v  प्रातः पत्तियों पर एकत्र ओस को गिरा देना चाहिए।

v  पौध को सांय प्लास्टिक शीट से ढक देते है तथा प्रातः प्लास्टिक शीट हटा देते हैं।

v  कुछ सीमा तक खेत में धुआं करके भी ठंडक से बचाव किया जा सकता है।

डेपोग विधि से बोरो धान की पौध तैयार करना –

इस विधि से पौध कहीं भी छत या बड़ी आकार की लोहे या लकड़ी के बने पनारे (ट्रे) पर तैयार की जा सकती है। अंकुरित बीज को एक इन्च मोटी मिट्टी की सतह पर फैला देते है। इस सतह को हल्के हाथों से कुछ थपथपा देते है तथा इससें पानी छिड़क कर नमी बनाये रखते हैं इस विधि से पौध उगाने में ठंडक से हानि की सम्भवना कम रहती है।

बोरो धान रोपाई हेतु खेत की तैयारी-

जिस खेत में रोपाई करना है, गर्मी के मौसम में कम से कम दो जुताई तथा मजबूत मेड़ बनाना अति आवश्यक है। 10 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर बरसात आरम्भ होने से पूर्व खेत में बिखेर कर जुताई एवं पाटा लगा देते है।

खाव व उर्वरक की आवश्यकता एवं प्रयोग-

100 किग्रा० नत्रजन (220 किग्रा० यूरिया) 40 किग्रा० तथा फास्फोरस (250 किग्रा० सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 20 किग्रा० पोटाश (34 किग्रा०म्यूरेट आफ पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। पलेवा की जुताई के समय आधा नत्रजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए शेष जत्रजन की आधी मात्रा रोपाई के 30 दिन बाद तथा अधी बाली निकलते समय छिड़काव द्वारा प्रयोग करना चाहिए।

बोरो धान की रोपाई करना –

अनुकूल तापक्रम (13-14 से. औसत तापक्रम) पर 15 जनवरी से 15 फरवरी के बीच 60 से 70 दिन के 2-3 पौध (18-20 सेमी० लम्बे) प्रति पूंजा की रोपाई इस ढंग से करना चाहिए कि प्रति वर्ग मीटर 40-50 पूंजा अवश्य आये।

सिंचाई व जल प्रबन्धन –

आवश्यकतानुसार सिंचाई करते हैं। खेत में पानी की प्रचुर उपलब्धता से खरपतवार नियंन्त्रण में आसानी होती है। बोरोधान में रोपाई, ब्यांत, बाली निकलते समय तथा दाना भरते समय खेत में कम से कम 6 सेमी० पानी भरा होना चाहिए। कटाई से 15 दिन पहले सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है।

धान में फसल सुरक्षा प्रबन्धन-

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट व उनका नियंत्रण –

(क)     असिंचित दशा में     (ख)     सिंचित दशा में

1     दीमक     1     दीमक

2     जड़ की सूड़ी     2     जड़ की सूड़ी

3     पत्ती लपेटक     3     नरई कीट

4     गन्धी बग     4     पत्ती लपेटक

5     सैनिक कीट     5     हिस्पा

            6     बंका कीट

            7     तना बेधक

            8     हरा फुदका

            9     भूरा फुदका

            10     सफेद पीठ वाला फुदका

            11     गन्धी बग

            12     सैनिक कीट

 दीमकः यह एक सामाजिक कीट है तथा कालोनी बनाकर रहते हैं। यह कालोनी में लगभग 90 प्रतिशत श्रमिक, 2-3 प्रतिशत सैनिक, एक रानी व एक राजा होते हैं। श्रमिक पीलापन लिये हुए सफेद रंग के पंखहीन होते है जो उग रहे बीज, पौधों की जड़ों को खाकर क्षति पहुँचाते हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। दीमक बाहुल्य क्षेत्र में कच्चे गोबर एवं हरी खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए।   नीम की खली 10 कु०प्रति हे० की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में धीरे-धीरे कमी आती है। ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।

जड़ की सूड़ीः इस कीट की गिडार उबले हुए चावल के समान सफेद रंग की होती है। सूड़ियॉ जड़ के मध्य में रहकर हानि पहुँचाती है जिसके फलस्वरूप पौधे पीले पड़ जाते हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

 नरई कीट (गाल मिज): इस कीट की सूड़ी गोभ के अन्दर मुख्य तने को प्रभावित कर प्याज के तने के आकार की रचना बना देती है, जिसे सिल्वर शूट या ओनियन शूट कहते हैं। ऐसे ग्रसित पौधों में बाली नहीं बनती है।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।     नरई कीट के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

   कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० प्रति हे० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।

पत्ती लपेटक कीटः इस कीट की सूड़ियॉ प्रारम्भ में पीले रंग की तथा बाद में हरे रंग की हो जाती हैं, जो पत्तियों को लम्बाई में मोड़कर अन्दर से उसके हरे भाग को खुरच कर खाती हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। तना बेधक, पत्ती लपेटक, बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

        बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।

        कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।

        मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।

हिस्पाः इस कीट के गिडार पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाते हैं, जिससे पत्तियों पर फफोले जैसी आकृति बन जाती है।प्रौढ़ कीट पत्तियों के हरे भाग को खुरच कर खाते हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

बंका कीटः इस कीट की सूड़ियॉ पत्तियों को अपने शरीर के बराबर काटकर खोल बना लेती हैं तथा उसी के अन्दर रहकर दूसरे पत्तियों से चिपककर उसके हरे भाग को खुरचकर खाती हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। अच्छे जल निकास वाले खेत के दोनों सिरों पर रस्सी पकड़ कर पौधों के ऊपर से तेजी से गुजारने से बंका कीट की सूड़ियॉ पानी में गिर जाती हैं, जो खेत से पानी निकालने पर पानी के साथ बह जाती हैं। बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

        बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।

        कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।

        मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।

तना बेधकः इस कीट की मादा पत्तियों पर समूह में अंडा देती है।अंडों से सूड़ियां निकलकर तनों में घुसकर मुख्य सूट को क्षति पहुँचाती हैं, जिससे बढ़वार की स्थिति में मृतगोभ तथा बालियां आने पर सफेद बाली दिखाई देती हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।तना बेधक कीट के पूर्वानुमान एवं नियंत्रण हेतु 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हे० प्रयोग करना चाहिए। तना बेधक, पत्ती लपेटक, बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

        बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।

        कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।

        मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।

हरा फुदकाः इस कीट के प्रौढ़ हरे रंग के होते हैं तथा इनके ऊपरी पंखों के दोनों किनारों पर काले बिन्दु पाये जाते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं, जिससे प्रसित पत्तियां पहले पीली व बाद में कत्थई रंग की होकर नोक से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।     हरा, भूरा एवं सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

        एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।

        कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।

        मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।

        फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।

        थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।

        डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर।

भूरा फुदकाः इस कीट के प्रौढ भूरे रंग के पंखयुक्त तथा शिशु पंखहीन भूरे रंग के होते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनो ही पत्तियों एवं किल्लों के मध्य रस चूस कर छति पहॅुचाते हैं, जिससे प्रकोप के प्रारम्भ में गोलाई में पौधे काले होकर सूखने लगते हैं, जिसे ‘हापर बर्न’ भी कहते हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। भूरा फुदका एवं सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों में 20 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड़कर रोपाई करना चाहिए। भूरा एवं सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

        एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।

        कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।

        मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।

        फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।

        थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।

        डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर

सफेद पीठ वाला फुदकाः इस कीट के प्रौढ़ कालापन लिये हुए भूरे रंग के तथा पीले शरीर वाले होते हैं। इनके पंखों के जोड़कर सफेद पट्टी होती है। शिशु सफेद रंग के पंखहीन होते हैं तथा इनके उदर पर सफेद एवं काले धब्बे पाये जाते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनो ही पत्तियों एवं किल्लों के मध्य रस चूसते हैं, जिससे पौधे पीले पड़कर सूख जाते हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

        एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।

        कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।

        मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।

        फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।

        थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।

        डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर।

गन्धी बगः इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ लम्बी टांगो वाले भूरे रंग के विशेष गन्ध वाले होते हैं, जो बालियों की दुग्धावस्था में दानों में बन रहे दूध को चूसकर क्षति पहूँचाते हैं। प्रभावित दानों में चावल नहीं बनते हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।     गन्धी बग एवं सैनिक कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव करना चाहिए।

        मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।

        मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।

        फेनवैलरेट 0.04 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।

    गन्धी बग के नियंत्रण हेतु एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० की 2.50 लीटर मात्रा प्रति हे० 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना लाभप्रद होता है।

सैनिक कीटः इस कीट की सूड़ियाँ भूरे रंग की होती हैं, जो दिन के समय किल्लों के मध्य अथवा भूमि की दरारों में छिपी रहती हैं। सूड़ियाँ शाम को किल्लों अथवा दरारों से निकलकर पौधों पर चढ़ जाती हैं तथा बालियों को छोटे–छोटे टुकड़ों में काटकर नीचे गिरा देती हैं।

बचाव व रोकथाम – खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। सैनिक कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव करना चाहिए।

        मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।

        मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।

        फेनवैलरेट 0.04 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।

धान के पौधों में कीटों के प्रकोप का आर्थिक क्षति स्तर :

क्र०सं०     कीट का नाम     फसल की अवस्था     आर्थिक क्षति स्तर

1     जड़ की सूड़ी     वानस्पतिक अवस्था     5 प्रतिशत प्रकोपित पौधे

2     नरई कीट     वानस्पतिक अवस्था     5 प्रतिशत सिल्वर सूट

3     पत्ती लपेटक     वानस्पतिक अवस्था     2 ताजी प्रकोपित पत्ती प्रति पुंज

4     हिस्पा     वानस्पतिक अवस्था     2 प्रकोपित पत्ती या 2 प्रौढ़ प्रति पुंज

5     बंका कीट     वानस्पतिक अवस्था     2 ताजी प्रकोपित पत्ती प्रति पुंज

6     तना बेधक     बाली अवस्था     5 प्रतिशत मृत गोभ प्रति वर्ग मी०

7     हरा फुदका     वानस्पतिक एवं बाली अवस्था     1-2 कीट प्रति वर्ग मी० अथवा 10-20 कीट प्रति पुंज

8     भूरा फुदका     वानस्पतिक एवं बाली अवस्था     15-20 कीट प्रति पुंज

9     सफेद पीठ वाला फुदका     वानस्पतिक एवं बाली अवस्था     15-20 कीट प्रति पुंज

10     गन्ध बग     बाली की दुग्धावस्था     1-2 कीट प्रति पुंज

11     सैनिक कीट     बाली की परिपक्वता की अवस्था     4-5 सूड़ी प्रति वर्ग मी०

 धान की फसल में लगने वाले कीटों नियंत्रण के उपाय :

    खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना

  समय से रोपाई करना चाहिए।

    फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए।

    कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए।

    दीमक बाहुल्य क्षेत्र में कच्चे गोबर एवं हरी खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

    फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।

    उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए।

    जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

    भूरा फुदका एवं सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों में 20 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड़कर रोपाई करना चाहिए।

    अच्छे जल निकास वाले खेत के दोनों सिरों पर रस्सी पकड़ कर पौधों के ऊपर से तेजी से गुजारने से बंका कीट की सूड़ियॉ पानी में गिर जाती हैं, जो खेत से पानी निकालने पर पानी के साथ बह जाती हैं।

    तना बेधक कीट के पूर्वानुमान एवं नियंत्रण हेतु 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हे० प्रयोग करना चाहिए।

    नीम की खली 10 कु०प्रति हे० की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में धीरे-धीरे कमी आती है।

    ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।

    यदि कीट का प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर पार कर गया हो तो निम्नलिखित कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।

    दीमक एवं जड़ की सूड़ी के नियंत्रण हेतु क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 2.5 ली०प्रति हे० की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए। जड़ की सूड़ी के नियंत्रण के लिए फोरेट 10 जी 10 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में बुरकाव भी किया जा सकता है।

    नरई कीट के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

   कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० प्रति हे० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।

    हरा, भूरा एवं सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

        एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।

        कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।

        मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।

        फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।

        थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।

        डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर।

    तना बेधक, पत्ती लपेटक, बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

        बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।

        कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।

        क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।

        ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।

        मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।

    गन्धी बग एवं सैनिक कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव करना चाहिए।

        मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।

        मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।

        फेनवैलरेट 0.04 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।

    गन्धी बग के नियंत्रण हेतु एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० की 2.50 लीटर मात्रा प्रति हे० 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना लाभप्रद होता है।

धान की फसल पर चूहों का आतंक व उनका नियंत्रण :

धान की फसल चूहों द्वारा भी प्रभावित होती है, जिनमें खेत का चूहा (फिल्ड रैट), मुलायम बालों वाला खेत का चूहा (साफ्ट फर्ड फील्ड रैट) एवं खेत का चूहा (फील्ड माउस) आदि मुख्य चूहे की हानिकारक प्रजातियॉ हैं।

चूहों के नियंत्रण के उपायः

1- इनके नियंत्रण हेतु खेतों की निगरानी एवं जिंकफास्फाइड 80 प्रतिशत का प्रयोग करना चाहिए तथा नियंत्रण का साप्ताहिक कार्यक्रम निम्न प्रकार सामूहिक रूप से किया जाय तो अधिक सफलता मिलती है।

पहला दिन     खेत की निगरानी करें तथा जितने चूहे के बिल हो उसे बन्द करते हुए पहचान हेतु लकड़ी के डन्डे गाड़ दें।

दूसरा दिन-     खेत में जाकर बिल की निगरानी करें जो बिल बन्द हो वहॉ से गड़े हुए डन्डे हटा दें। जहॉ पर बिल खुल गये हों वहॉ पर डन्डे गड़े रहने दें। खुले बिल में एक ग्राम सरसों का तेल एवं 48 ग्राम भुने हुए दाने में जहर मिला कर रखें।

तीसरा दिन     बिल की पुनःनिगरानी करें तथा जहर मिला हुआ चारा पुनःबिल में रखें।

चौथा दिन     जिंक फास्फाइड 80 प्रतिशत की 1.0 ग्राम मात्रा को 1.0 ग्राम सरसों के तेल एवं 48 ग्राम भुने हुए दाने में बनाये गये जहरीले चारे का प्रयोग करना चाहिए।

पॉचवा दिन     बिल की निगरानी करें तथा मरे हुए चूहे को जमीन में खोद कर दबा दें।

छठा दिन     बिल को पुनः बन्द कर दें तथा अगले दिन यदि बिल खुल जाये तो इस साप्ताहिक कार्यक्रम को पुनः अपनायें।

2- ब्रोमडियोलोन 0.005 प्रतिशत के बने बनाये चोर की 10 ग्राम मात्रा प्रत्येक जिंदा बिल में रखना चाहिए। इस दवा को चूहा 3-4 बार खाने के बाद मरता है।

 धान की फसल में एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन

(अ) शस्य क्रियायेः

    गर्मी की मिट्टी पलट हल से गहरी जुताई करने से भूमि में कीटों की विभिन्न अवस्थायें जैसे- अण्डा, सूड़ी, शंखी एवं प्रौढ़ अवस्थायें नष्ट हो जाती हैं तथा चिडिया भी कीटों को चुगकर खा जाती हैं। इसके अतिरिक्त भूमि जनित रोगों यथा-उकठा, जड़ सड़न, डैम्पिंग आफ, कालर राट, आदि भी सूर्य के प्रकाश में नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार खरपतवारों के बीज भी मिट्टी में नीचे दब जाते हैं, जिससे खरपतवारों को जमाव बहुत ही कम हो जाता है।

स्वस्थ एवं रोगरोधी प्रजातियों की बुवाई/रोपाई करना चाहिए।

बीज शोधन कर समय से बुवाई/रोपाई के साथ-साथ फसल चक्र अपनाना चाहिए।

नर्सरी समय से उठी हुई क्यारियों पर लगाना चाहिए।

पौधों से पौधों और लाइन से लाइन के बीच वॉछित दूरी रखना चाहिए।

उर्वरकों की संस्तुत मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

खेत के मेड़ों को घासमुक्त एवं साफ सुथरा रखना चाहिए।

जल निकास का समुचित प्रबंध करना चाहिए।

कटाई जमीन की सतह से करना चाहिए।

फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।

(ब) यॉत्रिक नियंत्रणः

धान के पौधे की चोटी काटकर रोपाई करना चाहिए।

खेतों से अण्डों व सड़ियों को यथा सम्भव एकत्र करके नष्ट कर देना चाहिए।

कीट एवं रोग ग्रसित पौधों की पत्तियॉ अथवा आवश्यकतानुसार पूरा पौधा उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।

खरपतवारों को निराई-गुड़ाई द्वारा खेत से निकाल देना चाहिए।

हिस्पा ग्रसित पौधों की पत्तियों का उपरी हिस्सा काट देना चाहिए।

केसवर्म की सूड़ियों को रस्सी द्वारा पानी में गिरा देना चाहिए।

खेतों में प्रकाश-प्रपंच का प्रयोग कर हानिकारक कीटों को नष्ट कर देना चाहिए।

तना बेधक कीट के आंकलन एवं नियंत्रण हेतु फेरोमोन प्रपंच का प्रयोग करना चाहिए।

खेत में यथा सम्भव वर्ड पर्चर का प्रयोग करना चाहिए।

पत्ती लपेटक कीट के नियंत्रण हेतु बेर की झाडियों से फसल के उपरी भाग पर घुमा देने से पत्तियॉ खुल जाती हैं,जिससे सूड़ियॉ नीचे गिर जाती है।

(स) जैविक नियंत्रणः

खेत में मौजूद परभक्षी यथा मकड़ियॉ, वाटर वग, मिरिड वग, ड्रेगन फ्लाई,मिडो ग्रासहा पर आदि एवं परजीवी यथा ट्राइकोग्रामा (बायो एजेण्ट्स) कीटों का संरक्षण करना चाहिए।

परजीवी कीटों को प्रयोगशाला में सवंर्धित कर खेतों में छोड़ना चाहिए।

शत्रु एवं मित्र (2:1) कीटों का अनुपात बनाये रखना चाहिए।

आवश्यकतानुसार बायोपेस्टीसाइड्स का प्रयोग करना चाहिए।

(द) रासायनिक नियंत्रणः

कीट एवं रोग नियंत्रण हेतु कीटनाशी रसायनों का प्रयोग अंतिम उपाय के रूप में करना चाहिए।

सुरक्षित एवं संस्तुत रसायनों को उचित समय पर निर्धारित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।

रसायनों का प्रयोग करते समय सावधानियॉ अवश्य बरतनी चाहिए।

खरपतवार नाशकों का प्रयोग दिशा-निर्देशों के अनुसार ही करना चाहिए।

धान की फसल पर लगने वाले प्रमुख रोग :

क्र०सं०     रोग     क्र०सं०     रोग

1     1. सफेदा रोग     5     भूरा धब्बा

2     2. खैरा रोग     6     जीवाणु झुलसा

3     3. शीथ ब्लाइट     7     जीवाणु धारी

4     4. झोंका रोग     8     मिथ्य कण्डुआ

    सफेदा रोगः यह रोग लौह तत्व की कमी के कारण नर्सरी में अधिक लगता है। नई पत्ती कागज के समान सफेद रंग की निकलती है।

बचाव व रोकथाम –     सफेदा रोगः के नियंत्रण हेतु 5 किग्रा० फेरस सल्फेट को 20 किग्रा० यूरिया अथवा 2.50 किग्रा० बुझे हुए चूने को प्रति हे० लगभग 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

    खैरा रोगः यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग में पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं।

बचाव व रोकथाम –     खैरा रोगः के नियंत्रण हेतु जिंक सल्फेट 20-25 किग्रा० प्रति हे० की दर से बुवाई/रोपाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से खैरा रोग का प्रकोप नहीं होता है।

    जीवाणु झुलसा/जीवाणुधारी रोगः के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.50 किग्रा० प्रति हे० की दर से 10-20 किग्रा० बारीक बालू में मिलाकर बुवाई/रोपाई से पूर्व उर्वरकों की तरह से बुरकाव करना लाभप्रद होता है। उक्त बायो पेस्टीसाइड्स की 2.50 किग्रा० मात्रा को प्रति हे० 100 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर लगभग 5 दिन रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व भूमि में मिलाया जा सकता है।

    शीथ ब्लाइटः इस रोग में पत्र कंचुल (शीथ) पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं, जिसका किनारा गहरा भूरा तथा मध्य भाग हल्के रंग का होता है।

बचाव व रोकथाम – शीथ ब्लाइट रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए।     शीथ ब्लाइटः के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

ट्राइकोडर्मा विरडी 1 प्रतिशत डब्लू०पी० 5-10 ग्राम प्रति ली० पानी (2.5 कि०ग्रा०) 500 ली० पानी में घोलकर पर्णीय छिड़काव।

1     कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी०     500 ग्राम

2     थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी०     1.0 किग्रा०

3     हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी०     1.0 ली०

4     प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत र्इ०सी०     500 मिली०

5     कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी०     750 ग्राम

    झोंका रोगः इस रोग में पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं, जो मध्य में राख के रंग के तथा किनारे गहरे कत्थई रंग के होते हैं। पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डण्ठलों, पुष्प शाखाओं एवं गांठों पर काले भूरे धब्बे बनते हैं।

बचाव व रोकथाम – झोंका रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए। झोंका रोग के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

1     कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी०     500 ग्राम

2     एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी०     500 मिली०

3     हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी०     1.0 ली०

4     मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

5     जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

6     कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी०     750 ग्राम

7     आइसोप्रोथपलीन 40 प्रतिशत र्इ०सी०     750 मिली प्रति हे०

8     कासूगामाइसिन 3 प्रतिशत एम०एल०     1.15 ली० प्रति हे०

भूरा धब्बाः इस रोग में पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अथवा अण्डाकार धब्बे बन जाते हैं। इन धब्बों के चारों तरफ पीला घेरा बन जाता है तथा मध्य भाग पीलापन लिये हुए कत्थई रंग का होता है।

बचाव व रोकथाम –     भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा ट्राइकोडरमा की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये | भूरा धब्बा के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

1     एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी०     500 मिली०

2     मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

3     जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

4     जिरम 80 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

5     थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी०     1.0 किग्रा०

 जीवाणु झुलसाः इस रोग में पत्तियाँ नोंक अथवा किनारे से एकदम सूखने लगती हैं। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं।

बचाव व रोकथाम – जीवाणु झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति 25 किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये।जीवाणु झुलसा एवं जीवाणु धारीः के नियंत्रण हेतु 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू०पी० के साथ मिलाकर प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

जीवाणु धारीः इस रोग में पत्तियों पर नसों के बीच कत्थई रंग की लम्बी-लम्बी धारियॉ बन जाती हैं |

बचाव व रोकथाम – जीवाणु धारी रोग के नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति 25 किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये।

मिथ्या कण्डुआः इस रोग में बालियों के कुछ दाने पीले रंग के पाउडर में बदल जाते हैं, जो बाद में काले हो जाते हैं।

बचाव व रोकथाम – मिथ्य कण्डुआ रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए। मिथ्य कण्डुआ  के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।

1.       कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी०     500 ग्राम

2.       कापर हाइड्राक्साइड 77 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

धान की फसल पर लगने वाले रोगों के नियंत्रण के उपाय :

1. बीज उपचार

    बीज उपचारः जीवाणु झुलसा एवं जीवाणु धारी रोग के नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति 25 किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये।

    झोंका रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए।

    शीथ ब्लाइट रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए।

    भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा ट्राइकोडरमा की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए।

    मिथ्य कण्डुआ रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए।

2. भूमि उपचार

    खैरा रोगः के नियंत्रण हेतु जिंक सल्फेट 20-25 किग्रा० प्रति हे० की दर से बुवाई/रोपाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से खैरा रोग का प्रकोप नहीं होता है।

    जीवाणु झुलसा/जीवाणुधारी रोगः के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.50 किग्रा० प्रति हे० की दर से 10-20 किग्रा० बारीक बालू में मिलाकर बुवाई/रोपाई से पूर्व उर्वरकों की तरह से बुरकाव करना लाभप्रद होता है। उक्त बायो पेस्टीसाइड्स की 2.50 किग्रा० मात्रा को प्रति हे० 100 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर लगभग 5 दिन रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व भूमि में मिलाया जा सकता है।

    भूमि जनित रोगों: के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) ट्रीइकोडरमा बिरडी 1 प्रतिशत अथवा ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2 प्रतिशत की 2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० सड़ी हुए गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से शीथ ब्लाइट, मिथ कण्डुआ आदि रोगों के प्रबन्धन में सहायक होता है।

3.पर्णीय उपचार

    सफेदा रोगः के नियंत्रण हेतु 5 किग्रा० फेरस सल्फेट को 20 किग्रा० यूरिया अथवा 2.50 किग्रा० बुझे हुए चूने को प्रति हे० लगभग 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

    खैरा रोगः के नियंत्रण हेतु 5 किग्रा० जिंक सल्फेट को 20 किग्रा० यूरिया अथवा 2.50 किग्रा० बुझे हुए चूने को प्रति हे० लगभग 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

    शीथ ब्लाइटः के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

ट्राइकोडर्मा विरडी 1 प्रतिशत डब्लू०पी० 5-10 ग्राम प्रति ली० पानी (2.5 कि०ग्रा०) 500 ली० पानी में घोलकर पर्णीय छिड़काव।

1     कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी०     500 ग्राम

2     थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी०     1.0 किग्रा०

3     हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी०     1.0 ली०

4     प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत र्इ०सी०     500 मिली०

5     कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी०     750 ग्राम

झोंका रोगः के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

1     कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी०     500 ग्राम

2     एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी०     500 मिली०

3     हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी०     1.0 ली०

4     मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

5     जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

6     कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी०     750 ग्राम

7     आइसोप्रोथपलीन 40 प्रतिशत र्इ०सी०     750 मिली प्रति हे०

8     कासूगामाइसिन 3 प्रतिशत एम०एल०     1.15 ली० प्रति हे०

भूरा धब्बाः के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

1     एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी०     500 मिली०

2     मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

3     जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

4     जिरम 80 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

5     थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी०     1.0 किग्रा०

 जीवाणु झुलसा एवं जीवाणु धारीः के नियंत्रण हेतु 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू०पी० के साथ मिलाकर प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

मिथ्य कण्डुआः के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।

1.       कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी०     500 ग्राम

2.       कापर हाइड्राक्साइड 77 प्रतिशत डब्लू०पी०     2.0 किग्रा०

धन की फसल पर लगने वाले प्रमुख खरपतवार व नियंत्रण –

(क) जल भराव की दशा में: होरा घास, बुलरस, छतरीदार मोथा, गन्ध वाला मोथा, पानी की बरसीम आदि।

(ख) सिंचित दशा में:

1. सकरी पत्ती- सांवा, सांवकी, बूटी, मकरा, कांजी, बिलुआ कंजा आदि।

2. चौड़ी पत्ती- मिर्च बूटी, फूल बूटी, पान पत्ती, बोन झलोकिया, बमभोली, घारिला, दादमारी, साथिया, कुसल आदि।

खरपतवार नियंत्रण के उपाय- 

शस्य क्रियाओं द्वाराः शस्य क्रियाओं द्वारा खरपतवार नियंत्रण हेतु गर्मी में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई, फसल चक्र अपनाना, हरी खाद का प्रयोग, पडलिंग आदि करना चाहिए।

यॉत्रिक विधिः इसके अन्तर्गत खुरपी आदि से निराई-गुडाई कर भी खरपतवार नियंत्रित किया जा सकता है।

रासायनिक विधिः इसके अन्तर्गत विभिन्न खरपतवारनाशी रसायनों को फसल की बुवाई/रोपाई के पश्चात संस्तुत मात्रा में प्रयोग किया जाता है, जो तुलनात्मक दृष्टि से अल्पव्ययी होने के कारण अधिक लाभकारी व ग्राह्य है।

    1. नर्सरी में खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रेटिलाक्लोर 30.7 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली० प्रति एकड़ की दर से 5-7 किग्रा० बालू में मिला कर पर्याप्त नमी की स्थिति में नर्सरी डालने के 2-3 दिन के अन्दर प्रयोग करना चाहिए।

    2. सीधी बुवाई की स्थिति में प्रेटिलाक्लोर 30.7 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर बुवाई के 2-3 दिन के अन्दर अथवा बिसपाइरीबैक सोडियम 10 प्रतिशत एस०सी० 0.20 लीटर बुवाई के 15-20 दिन बाद प्रति हे० की दर से नमी की स्थिति में लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नॉजिल से छिड़काव करना चाहिए।

    3. रोपाई की स्थिति में- सकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को प्रति हे० लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नॉजिल से 2 इंच भरे पानी में रोपार्इ के 3-5 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।

    1.      ब्यूटाक्लोर 50 प्रतिशत ई०सी०     3-4 लीटर

    2.      एनीलोफास 30 प्रतिशत ई०सी०     1.25-1.50 लीटर

    3.      प्रेटिलाक्लोर 50 प्रतिशत ई०सी०     1.60 लीटर

    4.      पाइराजोसल्फ्यूरान इथाईल 10 प्रतिशत डब्लू०पी०     0.15 किग्रा०

    5.      बिसपाइरीबैक सोडियम 10 प्रतिशत एस०सी० 0.20 लीटर रोपाई के 15-20 दिन बाद नमी की स्थिति में

    4. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को प्रति हे० लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नॉजिल से बुवाई के 25-30 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए-

    1.      मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू०पी०     20 ग्राम

    2.      इथाक्सी सल्फ्यूरान 15 प्रतिशत डब्लू०डी०जी०     100 ग्राम

    3.      2,4-डी इथाइल ईस्टर 38 प्रतिशत ई०सी०     2.5 लीटर

कटाई एवं मड़ाई –

बाली के निचले दाने कड़े हो जाने पर सिंचाई बन्द करके सभी दानों के कड़े हो जाने पर (फूलने से 30-35 दिन बाद) कटाई करना चाहिए। कटाई के एक दिन बाद दानों की सफाई करके छाया में 13-14 प्रतिशत नमी तक सुखा देना चाहिए।

उपज : उन्नत शील प्रजातियों से 20 – 25 कुंतल बोरोधान की उपज प्राप्त हो जाती है |

भण्डारण-

किसी भी धात्विक अथवा अधात्विक पात्र में भण्डारण किया जा सकता है, जिसमें पारगम्यता सुगम न हो। भण्डारण पूर्व मैलाथियान 50 ई.सी. से इसे संक्रमणहीन करके लकड़ी के पटरों पर बोरों अथवा धात्विक पात्र दीवाल से 30 सेमी० दूरी बनाकर रखते है और भण्डारगृह बन्द कर देते है।