अश्वगंधा एक ऐसी फसल है जिसके पत्तों, जड़ो और फलों को भी बेचकर अच्छी कमाई की जा सकती है. यह एक औषधीय पौधा है. जो अपने गुणों के कारण हमेशा मांग में रहता है. कोरोना महामारी के बाद इसकी डिमांड इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए और ज्यादा बढ़ गई है.भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के साथ ही और यूनानी चिकित्सा पद्धति में भी अश्वगंधाके बारे में लिखा हुआ है. जिसे जड़ी-बूटी और सप्लीमेंट के तौर इस्तेमाल करने के बारे में बताया गया है.
कई प्रकार से होता है इस्तेमाल
अश्वगंधा का इस्तेमाल पाउडर के रूप, दवाओं के रूप में भी किया जाता है. इसके मार्केट में कैप्सूल भी बनाकर बेचा जाता है. जो भी किसान अश्वगंधा की खेती करते हैं वे इससे लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं. केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी काफी मांग रहती है.
अश्वगंधा की खेती के लिए क्या है जरूरी
· अश्वगंधा की खेती लाल मिट्टी या बलुई दोमट मिट्टी में बेहतर तरीके से की जाती है.
· मिट्टी का पीएच मान 7.5 से लेकर 8 के बीच होगा तो उत्पादन बेहतर मिलेगा.
· नजदीकी कृषि विभाग कार्यालय से संपर्क करके मिट्टी के पीएच मान की जांच की जा सकती है.
· पर्वतीय क्षेत्रों में यानी ऐसे इलाकों में भी इसकी खेती की जा सकती है जहां उपजाऊ भूमि कम है.
· खेती की शुरुआत में मिट्टी को बेहतर तरीके से तैयार करें. इसके लिए खेत की दो बार जुताई करनी जरूरी है.
· जब जुताई हो जाए उसके बाद खेतों में जैविक खाद डालें.
· पौधों के अच्छे विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तक तापमान की आवश्यकता होती है.
· ध्यान रहे की खेतों में नमी हमेशा बनी रहे.
· सिंचाई का ध्यान रखना भी जरूरी है. पहली सिंचाई करने के कम से कम 15 से 20 दिन बाद दूसरी सिंचाई करना जरूरी है. यदि बारिश होती है तो अतिरिक्त पानी देने की आवश्यकता नहीं होगी.
· बुवाई के बाद फसल के पैदावार में कम से कम 5 से 6 महीने का समय लग सकता है.
· अश्वगंधा की खेती से किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं. बाजार में इसकी कीमत 600 रुपए किलोग्राम के आसपास है.