नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले संपूर्ण बजट में देश में कृषि शोध व्यवस्था की विशेष समीक्षा करने और ग्रामीण सड़क कार्यक्रम का चौथा चरण शुरू करने का वादा किया गया है। इस ग्रामीण सड़क कार्यक्रम के तहत 25,000 नई बस्तियों को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।कृषि शोध की समीक्षा में उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु प्रतिरोधी बीज किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिसके लिए निजी क्षेत्र को भी वित्त पोषण उपलब्ध कराया जाएगा तथा विशेषज्ञ इस अनुसंधान के संचालन की देखरेख करेंगे।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खपत केंद्रों के नजदीक सब्जी उत्पादन के लिए व्यापक स्तर के क्लस्टर बनाने, कृषि क्षेत्र में डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर पर आधारित प्रायोगिक परियोजनाएं शुरू करने और इस क्षेत्र के लिए एक नई सहकारी नीति बनाने का भी वादा किया है।संपूर्ण रूप से, कृषि और उससे संबंधित गतिविधियों को 151,851 करोड़ रुपये मिले हैं जो आरई के मुकाबले 8.05 प्रतिशत ज्यादा और अंतरिम बजट के मुकाबले भी 3.5 प्रतिशत अधिक है।इसमें, कृषि शोध एवं शिक्षा विभाग (डीएआरई) का आवंटन 9,941 करोड़ रुपये पर बनाए रखा गया, जो अंतरिम बजट के समान है। डीएआरई कृषि मंत्रालय की शोध शाखा है।
हालांकि, भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने चेताया है कि डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना ढांचे की स्थापना के माध्यम से किसानों, उनकी भूमि और उनकी फसलों के डेटा तक पहुंचने के विचार से कॉरपोरेट क्षेत्र का उत्साह हास्यास्पद है, खासकर ऐसे समय में जब ज्यादातर राज्य विभागों के बीच संपर्क के लिए ई-डॉक्यूमेंट पर अमल नहीं करते हैं।
यूपी प्लानिंग कमीशन के पूर्व सदस्य सुधीर पंवर का मानना है कि कृषि शोध में क्लाइमेट रेजिलेंस टेक्नोलॉजी विकसित करने के नाम पर निजी क्षेत्र के प्रवेश से सार्वजनिक संस्थानों और किसानों की बीज संबंधी संप्रभुता प्रभावित हो सकती है।
इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्र के लिए, वित्त वर्ष 2025 के बजट में अगले पांच साल के दौरान 2 करोड़ नए मकान बनाने की अंतरिम बजट की घोषणा भी दोहराई गई है। इसमें आवंटन मौजूदा 120,000 रुपये प्रति मकान से बढ़ाकर 200,000 रुपये किया गया है, जो करीब 67 प्रतिशत की शानदार वृद्धि है।बजट दस्तावेज में कहा गया है, ‘2.05 लाख रुपये की औसत सहायता के साथ 2 करोड़ कमानों के निर्माण के लिए अनुमानित वित्तीय जरूरत 418,200 करोड़ रुपये (2 प्रतिशत प्रशासनिक फंड शामिल) है।’
इसमें केंद्र का हिस्सा 263,466 करोड़ रुपये (कुल लागत का 63 प्रतिशत) होने का अनुमान है, जबकि शेष राज्य का हिस्सा है। वित्त वर्ष 2025 के लिए ग्रामीण घरों के लिए बजट अनुमान लगभग 54500.14 करोड़ रुपये था, जो वित्त वर्ष 2024 के संशोधित अनुमान से लगभग 70 प्रतिशत अधिक है।मनरेगा आवंटन 86,000 करोड़ रुपये के अंतरिम बजट स्तर पर बरकरार रखा गया है, जो वित्त वर्ष 2024 के बजट अनुमान की तुलना में 43 प्रतिशत अधिक है।
कृषि क्षेत्र के लिए, पीएम-आशा (प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना) के लिए आवंटन में बड़ी बढ़ोतरी की गई है। वित्त वर्ष 2024 के संशोधित अनुमान में यह 2200 करोड़ रुपये था, जो वित्त वर्ष 2025 के बजट में बढ़कर 6437 करोड़ रुपये हो गया है, जो लगभग 192 प्रतिशत की वृद्धि है।
पीएम-आशा में खासकर तिलहन और दालें उगाने वाले किसानों को एमएसपी की गारंटी का वादा किया गया है।ग्रामीण भूमि के लिए, बजट में विशेष लैंड पार्सल पहचान संख्या, सभी भूमि के लिए भू-आधार, भू-कर संबंधित नक्शों के डिजिटलीकरण, लैंड रजिस्ट्री की स्थापना करने और सभी किसानों की भूमि इससे जोड़ने का वादा किया गया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को लगातार सातवीं बार केंद्र सरकार का बजट पेश किया। हालांकि पांच साल पहले जब उन्होंने अपना पहला बजट पेश किया था, तबसे राजनीतिक और आर्थिक हालात काफी बदल चुके हैं। पिछले 10 साल में ऐसा पहली बार हुआ है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को सरकार चलाने के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अपने सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ा है।
निर्मला सीतारमण के करीब 90 मिनट के भाषण में बदले राजनीतिक यथार्थ और लोक सभा की संरचना में बदलाव का असर साफ दिख रहा था। पहला, इस बार के बजट में बिहार और आंध्र प्रदेश पर काफी ध्यान दिया गया है। केंद्र सरकार बिहार के जनता दल (यू) और अन्य क्षेत्रीय दलों तथा आंध्र प्रदेश के तेलुगू देशम पार्टी के सहयोग से चल रही है।
दूसरा, इस बार बजट में रोजगार, कृषि और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है। तो एक तरह से यह मान लिया गया कि रोजगार और कृषि से जुड़े मसलों ने हाल के लोक सभा चुनावों के नतीजों को काफी प्रभावित किया है। वैसे तो चुनी हुई सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी गलती सुधारे, फिर भी ध्यान का यह जो केंद्र बदला है, वह आर्थिक रूप से भी समझदारी भरा है।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में बेरोजगारी दर में कमी आई है लेकिन रोजगार की गुणवत्ता अब भी चिंता की बात बनी हुई है। रोजगार का सृजन निजी क्षेत्र में किया जाना है। इसलिए वित्त मंत्री ने बजट में ऐसे कई ऐलान किए हैं जिनसे औपचारिक क्षेत्र में नौकरियों को प्रोत्साहन मिले।
उदाहरण के लिए, कार्यबल में पहली बार शामिल होने वाले लोगों को एक माह की पगार देना और विनिर्माण क्षेत्र में कर्मचारी भविष्य निधि में योगदान के लिए सहयोग करना। इसके अलावा सरकार, देश की टॉप500 कंपनियों में युवाओं की इंटर्नशिप कार्यकम के लिए मदद देगी जिससे अगले पांच साल में करीब एक करोड़ युवाओं को फायदा होगा।
कृषि क्षेत्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश की बहुसंख्यक आबादी की मदद करता है। सरकार ने इस पर नए सिरे से ध्यान दिया है जिससे कृषि उपज और उसकी बाजार पहुंच बढ़ेगी। कृषि क्षेत्र में इससे जो फायदा होगा उससे खाद्य महंगाई पर भी काबू पाने में मदद मिलेगी, जिसकी वजह से हाल के समय में कुल मिलाकर महंगाई ऊंची रही है।
राजनीतिक विवशताओं के बावजूद वित्त मंत्री ने विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन के सिद्धांतों के रास्ते से हटने से परहेज किया है। मौजूदा वर्ष में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 फीसदी रहने का अनुमान है जिसके अंतरिम बजट में 5.1 फीसदी रहने की बात कही गई थी।
राजस्व प्राप्तियों में अनुमानित बढ़त के मुकाबले कुल व्यय में बदलाव काफी कम है। नतीजा यह है कि बाजार से सकल और शुद्ध उधारी क्रमश: 14.01 लाख करोड़ रुपये और 11.63 लाख करोड़ रुपये रहेगी जो कि वित्त वर्ष 2023-24 के मुकाबले कम है। वित्त मंत्री ने फिर इस बात को दोहराया कि अगले साल तक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.5 फीसदी से नीचे लाया जाएगा। राजकोषीय घाटे का प्रबंधन इसलिए भी सहज है क्योंकि जीडीपी के फीसदी में देखें तो केंद्र सरकार का कर्ज कम होने की ओर अग्रसर है।
नई सरकार के पहले बजट से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मध्यम अवधि का एक खाका मिलने की उम्मीद भी की जा रही थी। वित्त मंत्री ने इस मामले में निराश नहीं किया है। बजट ने नौ अहम क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है जिनमें शहरी विकास, ऊर्जा सुरक्षा, बुनियादी ढांचा विकास, नवाचार आदि शामिल हैं। इन क्षेत्रों के लिए केंद्र सरकार अगले दिनों में विस्तार से ऐलान कर सकती है जिससे देश में तरक्की और विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
अहम बात यह भी है कि अब सरकार का जोर अगली पीढ़ी के सुधारों पर है। वित्त मंत्री ने कहा, ‘हम आर्थिक विकास के लिए समग्र दृष्टिकोण को रेखांकित करने हेतु आर्थिक नीति ढांचा तैयार करेंगे और अगली पीढ़ी के सुधारों के लिए गुंजाइश तैयार करेंगे ताकि रोजगार के अवसर बढ़ें और लगातार ऊंची बढ़त होती रहे।’
अगली पीढ़ी के सुधारों में उत्पादन के सभी कारकों को शामिल किया जाएगा। ऐसे कुछ सुधारों को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए केंद्र सरकार को राज्यों के सहयोग की जरूरत होगी। इस लिहाज से देखें तो सुधारों को लागू करने में राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए 50 साल के ब्याज मुक्त कर्ज देने की बात कही गई है। मौजूदा साल में ही केंद्र सरकार राज्यों को करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये के दीर्घकालिक ब्याज मुक्त कर्ज देगी। इसी तरह, भूमि और श्रम सुधारों से देश में कारोबारी सुगमता बढ़ेगी।
एक और अहम ऐलान करते हुए वित्त मंत्री ने अगले छह महीनों में सीमा शुल्क ढांचे की व्यापक समीक्षा का प्रस्ताव रखा है। इसके पीछे सोच यह है कि सीमा शुल्क का तर्कसंगत और सरल ढांचा हो, कारोबारी सुगमता बढ़े, विवाद कम हों और करों के उलटे ढांचे को दूर किया जाए। इस तरह की समीक्षा की लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। ऊंचे कर और जटिल शुल्क संरचना को व्यापार के लिए सबसे बड़ा अवरोध माना जाता है, जो सीधे भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करता है। इस तरह की व्यापक समीक्षा से भारत के शुल्क ढांचे को बदलती वैश्विक आर्थिक हकीकत के अनुरूप बनाया जा सकेगा। मोबाइल फोन जैसे कई सामान पर सीमा शुल्क में कटौती कर इसकी शुरुआत कर दी गई है।
इसी तरह, आयकर अधिनियम 1961 की समीक्षा का भी ऐलान किया गया है। इसके पीछे सोच यह है कि कर कानूनों को सरल बनाया जाए, जिससे मुकदमेबाजी कम हो और करदाता निश्चिंत रह सकें। वित्त मंत्री ने पूंजीगत लाभ कर ढांचे में भी बदलाव की घोषण की और प्रतिभूति लेनदेन कर (STT) बढ़ा दिया जिससे शेयर बाजार में हड़कंप मच गया।
हालांकि कारोबार के अंत में बाजार संभल गया। प्रस्ताव के मुताबिक दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर (LTCGT) को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया है और अल्पकालिक पूंजीगत लाभ कर (STCGT) को 15 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी किया गया है। पूंजी बाजार में सट्टेबाजी को रोकने के लिहाज से यह कदम उठाया गया है।
वित्त मंत्री ने नई कर व्यवस्था को भी ज्यादा आकर्षक बनाने की कोशिश की है। वेतनभोगी करदाताओं की अब आयकर में हर साल 17,500 रुपये तक की बचत हो सकेगी। वित्त मंत्री ने कहा कि इन कर प्रस्तावों से सरकार खजाने पर हर साल करीब 7,000 करोड़ रुपये की चोट पड़ेगी। एक और अहम ऐलान यह है कि सरकार ने एंजेल टैक्स को खत्म करने का फैसला किया है। इससे स्टार्टअप सेक्टर को काफी मदद मिलेगी। कर बचत के अलावा विवाद कम होंगे और निवेशकों में बना भय भी दूर होगा।