चने से इंपोर्ट ड्यूटी हटाए जाने किसानों को होगा नुकसान

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चने को लेकर हालिया हुए एक फैसले से किसानों में बैचेनी है. केंद्रीय वाणिज्‍य मंत्रालय की तरफ से बीते दिनों लिए गए आदेश के बाद किसानों के लिए चना जोर गरम नहीं रहा है. मसलन, जो चना, बीते दिनों किसानों की जेब गरम कर रहा था. सीधे शब्‍दों में कहें तो किसानों को चने के दाम MSP से अधिक मिल रहे थे. केंद्रीय वाणिज्‍य मंंत्रालय के हालिया आदेश के बाद चने के दामों में गिरावट होने की आशंका है, इससे चना किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. आइए इसी कड़ी में चने पर चर्चा करते हैं, जिसमें चने के उत्‍पादन से लेकर चने को लेकर केंद्रीय वाणिज्‍य मंत्रालय के हालिया आदेश और उससे किसानों को होने वाले नुकसान की बात करते हैं. ध्‍यान रहे हम बात देश चने यानी बंगाली चने की कर रहे हैं, इसे काबुली चने ना समझा जाए.

चने की खेती पर एक नजर 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा चना उत्‍पादक देश है.मसलन, भारत दुनिया का अकेले 75 फीसदी से अधिक चने का उत्‍पादन करता है. भारत में दालों की खेती में चने की हिस्‍सेदारी बात करें तो कुल उत्‍पादित दालों में 50 फीसदी चने की हिस्‍सेदारी है. दुनिया में भारत के बाद ऑस्‍ट्रेलिया में 6 फीसदी, टर्की,इथोपिया, म्‍यामांर में  3-3 फीसदी चने का उत्‍पादन होता है. देश में चने की पैदावार की बात करें तो मध्‍य प्रदेश में सबसे अधिक 28 फीसदी चने का उत्‍पादन होता है. दूसरे नंबर पर महाराष्‍ट्र 19 फीसदी, तीसरे पर राजस्‍थान 18 फीसदी, चौथे नंबर पर कर्नाटक 9 फीसदी और यूपी में देश में कुल उत्‍पादित चने का 5 फीसदी चने की पैदावार होती है. 

वहीं देश में ग्‍लोबली सबसे अधिक चने की पैदावार होती है, लेकिन चने की खपत में भी भारत अव्‍वल है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में सालाना चने की खपत 90 लाख टन तक है, जबकि इसके बाद चने का प्रयाेग बेसन बनाने में होता है, जिसका देश से एक्‍सपोर्ट भी किया जाता है. 

कम पैदावार ने बढ़ाए दाम, MSP से अधिक भाव

भारत में चने का प्रयोग प्रत्‍येक घर में होता है. मसलन, भारत में चना प्रोटीन का मुख्‍य स्‍त्रोत है, लेकिन दो साल से लगातार कम पैदावार ने चने के दामों में बढ़ोतरी की है. केंद्रीय कृषि व किसान कल्‍याण मंत्रालय की तरफ से साझा किए आंकड़ों के अनुसार साल 2021-22 में 137 लाख टन चने का उत्‍पादन हुआ था, लेकिन 2022-23 में चने की पैदावार घट कर 122 लाख टन दर्ज की गई, तो इसी तरह 2023-24 में चने की पैदावार 121 लाख टन होने का अनुमान है. चने की पैदावार में आई इस गिरावट का असर बाजार में दिख रहा है. मसलन, चने के दाम MSP से अधिक चले रहे हैं. इस साल चने का MSP 5440 रुपये क्‍विंटल घोषित है, लेकिन देश के कई राज्‍यों में चने के दाम 5900 से लेकर 6200 रुपये क्‍विंटल तक चल रहे हैं, जो किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है. 

चने से हटाई गई इंपोर्ट ड्यूटी 

चने के दाम MSP से अधिक चल रहे हैं. इस बीच 4 मई को केंद्रीय वाणिज्‍य मंत्रालय ने चने से इंपोर्ट ड्यूटी हटा दी है, जिसे नए आदेश के तहत शून्‍य कर दिया गया है. मतलब अब विदेश से चना इंपोर्ट करने पर कोई भी फीस नहीं लगेगी. इससे पहले चने पर 66 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी थी, जिसमें 60 फीसदी कस्‍टम फीस, 6 फीसदी एग्री सेस था, लेकिन अब चने से सभी तरह की इंपोर्ट ड्यूटी हटा दी गई है. 

चने के दामों में गिरावट का आशंका

केंद्रीय वाणिज्‍य मंत्रालय के इस फैसले से चने के दामों में गिरावट की आशंका है. विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि विदेशों से ड्यूटी फ्री चना इंपोर्ट होने से भारतीय चने को नुकसान पहुंचेगा. मसलन, चने के दाम MSP से नीचे पहुंच सकते हैं. किसानों को चना 5000 से 5200 रुपये क्‍विंटल तक बेचना पड़ सकता है, जो मौजूदा बाजार भाव से 800 से 1000 रुपये प्रति क्‍विंटल कम होगा. हालांकि फैसले के दो दिन बीतने यानी 6 मई तक बाजार पर इसका असर नहीं दिखाई दिया, लेकिन इस सप्‍ताह के अंत तक दामों पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.

किसानों का नुकसान, 6 महीने बाद लेना चाहिए था फैसला

चने से इंपोर्ट ड्यूटी हटाए जाने के फैसले का किसान महापंचायत के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष रामपाल जाट ने विरोध किया है. जाट ने कहा है कि चने पर इंपोर्ट ड्यूटी हटाने का फैसला किसानों को उचित मूल्य से वंचित करने वाला अन्यायकारी कदम है. उन्‍होंने कहा कि चने का घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 5440 रुपए है, जबकि मौजूदा भाव 5800 रुपए प्रति क्विंटल तक है, किसानों को लंबे समय बाद चने के दाम MSP से अधिक मिल रहे हैं. इस बीच सरकार ने चने से इंपोर्ट ड्यूटी हटाने के फैसला, उस समय लिया है, जब किसानों अपने घर से मंंडी चना बेचने के लिए ला रहा है. जाट ने कहा कि सरकार को ये फैसला 6 महीने बाद लेना चाहिए था, जिससे किसानों को उचित कीमत मिल जाती. उन्‍होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से चना उत्‍पादक प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान के किसानों को सर्वाधिक घाटा उठाना पड़ेगा.