कपास को अक्सर ‘सफेद सोना’ भी कहा जाता है, शायद अपनी चमक खोता जा रहा है. कहा जा रहा हे कि पंजाब में पिछले साल किसानों को इसकी अच्छी कीमत नहीं मिल पाई है. साल 2023 में कपास के तहत 2.14 लाख हेक्टेयर की तुलना में अब यह क्षेत्र घटकर केवल 99,601.5 हेक्टेयर रह गया है. शायद इस वजह से ही अब किसान दूसरी फसलों जैसे मूंग और बासमती की तरफ मुड़ रहे हैं.
कपास को अक्सर ‘सफेद सोना’ भी कहा जाता है, शायद अपनी चमक खोता जा रहा है. कहा जा रहा हे कि पंजाब में पिछले साल किसानों को इसकी अच्छी कीमत नहीं मिल पाई है. साल 2023 में कपास के तहत 2.14 लाख हेक्टेयर की तुलना में अब यह क्षेत्र घटकर केवल 99,601.5 हेक्टेयर रह गया है. शायद इस वजह से ही अब किसान दूसरी फसलों जैसे मूंग और बासमती की तरफ मुड़ रहे हैं. खुद राज्य के कृषि विभाग की तरफ से आए आंकड़ें इस बात की पुष्टि करते हैं.
बासमती की खेती से मुनाफा
अखबार ट्रिब्यून इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि विभाग के मुताबिक पिछले साल कपास की खेती करने वाले किसानों ने प्रति एकड़ 15,000 से 20,000 रुपये का मुनाफा कमाया. वहीं गैर-बासमती और बासमती की खेती करने वालों ने प्रति एकड़ 40,000 से 45,000 रुपये का मुनाफा कमाया. ऐसे में कपास की फसल के रकबे में इस गिरावट से सत्ता के गलियारों में खतरे की घंटी बजनी चाहिए थी. खासकर तब जब फसल विविधीकरण और खेती को टिकाऊ बनाने पर बहुत जोर दिया जा रहा है.
बासमती की किस्मों के इजाफा!
कृषि विभाग की तरफ से दिए गए आंकड़ों के अनुसार, फाजिल्का, बठिंडा, मानसा, मुक्तसर, संगरूर, बरनाला, फरीदकोट और मोगा में कपास बेल्ट के तहत कुल 45,000 हेक्टेयर भूमि पर मूंग की खेती की गई है. कृषि विभाग के निदेशक जसवंत सिंह के हवाले से अखबार ने लिखा है, ‘अगले महीने मूंग की कटाई होने के बाद किसान बासमती की किस्मों की रोपाई करेंगे, जो बहुत कम पानी की खपत करती हैं.’ इसका नतीजा है कि राज्य सरकार बासमती किस्मों के तहत आने वाले क्षेत्र में 40 फीसदी की वृद्धि की उम्मीद कर रही है, जो कि साल 2023 में 5.96 लाख हेक्टेयर था.
हाइब्रिड किस्में बनी पहली पसंद
इस साल बासमती की खेती का लक्ष्य 10 लाख हेक्टेयर रखा गया है. द ट्रिब्यून की मानें तो दक्षिण मालवा और यहां तक कि माझा में भी बड़ी संख्या में किसान गैर-बासमती धान की हाइब्रिड किस्मों – SAWA 7501, 27P51, 27P22 और 28P67 को चुन रहे हैं. माझा में तैनात एक कृषि अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि ये हाइब्रिड किस्में बहुत तेजी से बिक रही हैं. उन्होंने कहा, ‘1,700 रुपये या तीन किलो का बैग के बजाय, हाइब्रिड किस्में 3,000 से 3,200 रुपये प्रति पैकेट बिक रही हैं. उन्होंने बताया कि ये किस्में 30 से 32 क्विंटल फसल देती हैं.
तो होगा किसानों का नुकसान
एक और अधिकारी ने सरकार की तरफ से मंजूरी पाईं कुछ हाइब्रिड किस्मों की किसानों को बिक्री के बारे में अपनी आशंका जताई. उन्होंने कहा, ‘किसान इन किस्मों की अधिक पैदावार से आकर्षित होते हैं. हालांकि फील्ड अधिकारी उन्हें गैर-मंजूरी वाली किस्मों को न उगाने के लिए कह रहे हैं. लेकिन उन्हें सिर्फ ज्यादा से ज्यादा फसल हासिल करनी है. ऐसे में अगर कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो उन्हें नुकसान की भरपाई नहीं की जाएगी.
इस साल राज्य सरकार ने धान की खेती के तहत 30. 57 लाख हेक्टेयर लाने का लक्ष्य रखा है. इसमें बासमती किस्मों के तहत 10 लाख हेक्टेयर और गैर-बासमती किस्मों के तहत 20. 57 लाख हेक्टेयर शामिल हैं. पिछले साल, धान (बासमती और गैर-बासमती) के तहत कुल क्षेत्रफल 31.87 लाख हेक्टेयर था.