बांस की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है.
भारत में बांस की मांग में लगातार इजाफा हो रहा है. यही कारण है कि सरकार भी अब देश में बांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. कई राज्य सरकारें किसानों को बांस की खेती करने पर सब्सिडी उपलब्ध करा रही हैं. इसलिए अगर आप भी खेती को अपना प्रोफेशन बनाना चाहते हैं, तो आप बांस की खेती कर सकते हैं.
बांस की खेती के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि इसे बंजर जमीन पर भी किया जा सकता है. साथ ही इसे पानी की भी कम आवश्यकता होती है. एक बार लगाने के बाद बांस के पौधे से 50 साल तक उत्पादन लिया जा सकता है. बांस की खेती में मेहनत भी ज्यादा नहीं करनी होती है. इन सब कारणों से किसानों का रुझान भी बांस की खेती की ओर बढ़ा है.
ऐसे करें बांस की खेती
कश्मीर की घाटियों के अलावा कहीं भी बांस की खेती (Bans Ki Kheti) की जा सकती है. भारत का पूर्वी भाग आज बांस का सबसे बड़ा उत्पादक है. एक हेक्टेयर जमीन पर बांस के 1500 पौधे लगते हैं. पौधे से पौधे की दूरी ढाई मीटर और लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखी जाती है. बांस की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए.
इसे एक बार लगाने में मेहनत लगती है और फिर आराम में मुनाफा मिलता रहता है.सबसे अच्छी बात यह है कि बांस को किसी भी तरह की जमीन में उगाया जा सकता है.वहीं, बांस की खेती पर सरकार की ओर से 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी भी दी जाती है.
सरकार देती है 50 फीसदी तक सब्सिडी
देश की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर रहती है. ऐसे में किसान परंपरागत खेती से इतर अन्य फसलें उगाकर इच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.इन्हीं में से एक है बांस की खेती. जिसे ग्रीन गोल्ड यानी हरा सोना भी कहा जाता है. बाजार में इसकी डिमांड भी खूब रहती है.वहीं, सरकार द्वारा इसपर सब्सिडी भी दी जाती है. आइए जानते हैं कैसे की जाती है बांस की खेती?
बांस को लगाना काफी आसान है. सबसे पहले इसके पौधे को नर्सरी से लाएं. इसके बाद इसकी रोपाई कर दें.इसमें यह ध्यान दें कि रोपाई के लिए गड्ढा 2 फीट गहरा और 2 फीट चौड़ा हो.वहीं, इसके लिए जमीन तैयार करने की जरूरत नहीं होती है. बस ध्यान रहे कि मिट्टी बहुत अधिक रेतीली न हो.रोपाई के बाद अब इसमें गोबर से तैयार खाद का इस्तेमाल करें. पौधे लगाने के बाद एक महीने तक हर रोज पानी दें.
बंजर जमीन में भी लगा सकते हैं बांस का पौधा
बांस का पौधा बंजर जमीन में भी लगा सकते हैं. इसकी खेती में ज्यादा खर्च करने की जरूरत भी नहीं है.इसके पौधे लगाने के तीन महीने बाद पौधे की ग्रोथ होने लगती है. वही, 4 साल में यह पूरी तरह तैयार हो जाती है.भारत सरकार ने भी बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए 2006 में बांस मिशन शुरू किया था.इसकी खेती पर सरकार द्वारा 50 प्रतिशत तक सब्सिडी भी दी जाती है. सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन की आधिकारिक वेबसाइट nbm.nic.in पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं.
कटाई के बाद भी दोबारा बढ़ जाता है
बाजारों में बांस की डिमांड भी खूब रहती है. इस वजह से इसकी अच्छी कीमत भी मिलती है.दरअसल, बांस को कई तरह के कामों में उपयोग किया जाता है.सजावटी वस्तुओं से लेकर कार्बनिक कपड़े बनाने तक के लिए बांस का इस्तेमाल किया जाता है.इसकी खेती करने की सबसे अच्छी बात यह है कि कटाई के बाद भी यह दोबारा बढ़ जाता है.
भारत में बांस की कुल 136 किस्में हैं. इनमें से सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रजातियां बम्बूसा ऑरनदिनेसी, बम्बूसा पॉलीमोरफा, किमोनोबेम्बूसा फलकेटा, डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्स, डेंड्रोकैलेमस हैमिलटन और मेलोकाना बेक्किफेरा हैं. बांस के पौधे की रोपाई के लिए जुलाई महीना सबसे उपयुक्त है. बांस का पौधा 3 से 4 साल में कटाई लायक हो जाता है.
सरकार देती है सहायता
राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत अगर बांस की खेती में ज्यादा खर्च हो रहा है, तो केंद्र और राज्य सरकार किसानों को आर्थिक राहत प्रदान करेंगी. बांस की खेती के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि की बात करें तो इसमें 50 प्रतिशत खर्च किसानों द्वारा और 50 प्रतिशत लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी.
मध्य प्रदेश सरकार बांस के प्रति पौधे पर किसान को 120 रुपये की सहायता प्रदान कर रही है. यह राशि तीन साल में किस्तों में मिलती है. राष्ट्रीय बांस मिशन की आधिकारिक वेबसाइट nbm.nic.in पर जाकर आप सब्सिडी के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत हर जिले में नोडल अधिकारी बनाया गया है. आप अपने नोडल अधिकारी से भी योजना से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
बांस की खेती से कमाई
रोपाई के चार साल बाद बांस की पहली कटाई होती है. एक अनुमान के अनुसार, बांस की खेती से 4 साल में ₹40 लाख की एक हेक्टेयर में हो जाती है. इसके अलावा बांस की लाइनों के बीच में खाली पड़ी जमीन पर भी अन्य फसलें लगाकर किसान आसानी से बांस की खेती पर लगने वाला खर्च निकाल सकते हैं. बांस की कटाई-छंटाई भी साल में दो-तीन बार करनी पड़ती है. कटाई में निकली छोटी टहनियां हरे चारे के रूप में काम ली जा सकती है.