राजस्थान में श्रीगंगानगर जिले के गांव नेतेवाला के किसान दलीप गोदारा ने बड़े अरमानों के साथ अपने खेत मेंं एक बीघा जमीन पर अंजीर का बाग लगाया था। उन्हे उम्मीद थी कि अंजीर का उत्पादन उनके लिए फायदेमंद साबित होगा, मगर हाल मेंं उन्होंने अंजीर के पौधे उखाड़ दिए हैं।एक कंपनी ने साल 2018 में अपने खेतों में अंजीर की खेती करने को कहा और समझौता किया कि वह ऊंची कीमत पर सारा अंजीर खरीदेंगे
हनुमानगढ़ जिले के फेफाना गांव के जेपी सुथार ने दो बीघा जमीन पर अंजीर के पौधे लगाए। वह एक नई खेती शुरू करके उत्साहित थे मगर उन्होंने भी इसे उखाड़ फेंका है।
सुथार कहते हैं कि जिस कंपनी के कहने पर अंजीर लगाई थी, वह अपने वादों पर खरा नहीं उतरी। पता नहीं कंपनी कहां चली गई। कोई अंजीर खरीदने वाला ही नहीं तो आखिर कब तक पौधों को जमीन पर लगाए रखते?
दलीप गोदारा और जेपी सुथार जैसे किसानों की तादाद इस इलाके में सैकड़ों में है, जिन्होंने एक कंपनी के कहने से अंजीर की खेती के रास्ते पर कदम तो बढ़ा लिए मगर मंजिल पर नहीं पहुंच पाए। कंपनी ने उनके साथ दस वर्षीय अनुबंध किए, लेकिन कंपनी अपने किसी करार पर कायम न रही। एक-दो साल तो अंजीर खरीदी मगर फिर कंपनी ने रुख बदल लिया।
इनमें राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर और चूरू के किसान तो थे ही, पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा के राजस्थान से सटे इलाकों के किसानों ने भी अंजीर से फायदे की उम्मीदें पाल लीं। किसान दलीप गोदारा कहते हैं कि अंजीर का उत्पादन अच्छा हुआ लेकिन कंपनी वादों से मुकर गई।
श्रीगंगानगर के सुशील बोरड़ ने बताया कि वर्ष 2018 के शुरू में एक कंपनी के लोग इलाके के किसानों से संपर्क साधने मेंं जुट गए थे। जिसका नाम ‘कृषि मार्केटिंग कंपनी झोटवाड़ा जयपुर’ बताया गया। इस कंपनी ने जगह-जगह किसान सम्मेलन किए। किसानों को अंजीर की खेती के फायदे गिनाकर इस दिशा में आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। कंपनी ने शुरुआत में 280 रुपए में अंजीर का एक पौधा बेचना शुरू किया, जिसकी कीमत को वह कुछ ही महीनों बाद 300 रुपए तक ले गए। कंपनी ने पौधे बेचकर करोड़ों रुपए कमाए।
कंपनी का अनुबंध और मनमानी
डाउन टू अर्थ ने कंपनी के अनुबंध शर्तों को जांचा और पाया कि कंपनी और किसान दोनों पक्षों के बीच फसल को लेकर दिसंबर, 2017 में समझौता किया गया था। कंपनी ने वादा किया कि पौधों की देखरेख, बीमारी, कीट प्रकोप, फसल कटाई, छंटाई और विपणन तक की जिम्मेदारी वह उठाएगी। पौधों को लगाने, खेत को साथ-सुथरा रखने, पौधों की सुरक्षा और उनमेंं सिंचाई का दायित्व किसानों को दिया गया।
किसान दलीप गोदारा कहते हैं कि वर्ष 2019 में कंपनी के लोगों की बातों से प्रभावित होकर अपने एक बीघा खेत में अंजीर की खेती शुरू कर दी। उन्होंने खेत मेंं 300 पौधे लगाए। 2020 में पौधों पर छह क्विंटल फल लग गए, जिन्हें कंपनी ने तीन सौ रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर खरीद कर उन्हें भुगतान कर दिया। अगले साल 2021 में दस क्विंटल अंजीर लगी, जिसे कंपनी ने खरीदा तो जरूर लेकिन भाव घटा कर 150 रुपये प्रति किलो कर दिया। 2022 में 12-13 क्विंटल उत्पादन हुआ, पर कंपनी ने उसका भाव मात्र एक सौ रुपए प्रति किलोग्राम ही लगाया। इसके बाद कंपनी वह बहानेबाजी करने लग गए। पहले परिपक्व अंजीर खरीदते थे, जिसका वजन ज्यादा होता था मगर फिर कच्ची अंजीर खरीदने पर जोर देने लगे। उसके बाद वह भी नहीं खरीदी। हमसे संपर्क ही बंद कर दिया।
नेतेवाला के किसान हरबंस सिंह कहते हैं कि मैंने पौने सात बीघा जमीन में से दो बी्रघा में अंजीर के पौधे लगाए थे। कंपनी ने पहले जो कुछ कहा, बाद में उसके विपरीत आचरण किया। आखिर में जब कंपनी ने अंजीर खरीदने ही बंद कर दिए तो मैंने पौधे उखाडऩा ही उचित समझा।
अब कुछ किसानों ने कंपनी के खिलाफ मुकदमे दर्ज करा दिए हैं। इन सभी मामलों की तफ्तीश पुलिस कर रही है। सबसे पहला मुकदमा श्रीगंगानगर के सुशील बोरड़ ने कोतवाली थाने मेंं 12 सितंबर 2023 को दर्ज कराया था।
बोरड़ का कहना है कि उन्होंने व उनके भाई विजय बोरड़ ने तीन लाख साठ हजार रुपये का भुगतान बारह सौ पौधे खरीद लिए और अपनी पंजाब के फाजिल्का जिले के कलरखेड़ा गांव में स्थित कृषि भूमि पर लगाए। कंपनी ने उनके साथ फसल खरीदने का अनुबंध किया। उनके खेत मेंं वर्ष 2018 से वर्ष 2022 तक खेत में एक करोड़ 17 लाख 93 हजार रुपये की अंजीर का उत्पादन हुआ जिसमें से उन्हें कंपनी ने 27 लाख 71 हजार 750 रुपये का भुगतान किया। शेष रकम का भुगतान नहीं किया। वर्ष 2022 के उपरांत तो फसल को खरीदा ही नहीं गया।
श्रीगंगानगर जिले के चक 4 सी छोटी के किसान रामकुमार भुंवाल ने 3 सितंबर 2024 को श्रीगंगानगर के सदर थाने मेंं कृषि मार्केटिंग कंपनी जयपुर के प्रबंध निदेशक समेत पांच व्यक्तियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है।
कंपनी ने श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर एवं सिरसा जिलों और पंजाब के इलाके के किसानों को अंजीर लगाने के लिए प्रेरित किया। कंपनी ने इन क्षेत्रों के करीब तीन सौ किसानों को चार सौ रुपये प्रति पौधा विक्रय कर करीब छह करोड़ रुपये एकत्रित कर लिए तथा उन किसानों की लगभग आठ सौ बीघा भूमि पर अंजीर लगवा दी।
किसान भुंवाल ने एफआइआर में कहा है कि कंपनी वालों ने उसे कमीशन व मासिक वेतन देने का झांस देकर उसके खेत में अंजीर की नर्सरी भी लगवा दी। नर्सरी पर उसका बारह-तेरह लाख रुपये का खर्चा हुआ। कंपनी ने पर्ल फार्मिंग व अनार की खेती व वर्ष 2021 में काली हल्दी की फसल भी लांच कर दी। काली हल्दी के अनुबंध से उन्होंने 27 करोड़ की मार्केटिंग कर ली। बाद में उन्होंने कोई फसल नहीं खरीदी। वहीं, भुंवाल ने कहा कि मैं इस धोखाधड़ी के खिलाफ कानूनी लड़ाई जारी रखूंगा।
श्रीगंगानगर के चक 3 सी छोटी के किसान कृष्ण कुमार सहू ने भी श्रीगंगानगर के सदर थाने में 7 अगस्त 2024 को दर्ज कराई है।
कृषि विभाग बेखबर
श्रीगंगानगर स्थित उद्यान विभाग के उप निदेशक कार्यालय में कृषि अधिकारी (उद्यान) राजेन्द्र नैण कहते हैं कि बड़ी तादाद में किसानों ने अंजीर लगाई लेकिन यह सब एक कंपनी और किसानों के बीच की ही बात रही। हमारे विभाग का इससे कोई संबंध नहीं रहा] क्योंकि क्षेत्र में अंजीर की खेती की संभावनाओं के बारे में हमारे पास कोई रिसर्च नहीं थी।
पसोपेश में किसान
इस बीच, अनेक किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने खरीद की वैकल्पिक व्यवस्था होने की उम्मीद मेंं अंजीर के बागों को अभी तक बनाए रखा है। सुशील बोरड़ और रामकुमार भुंवाल ने अंजीर को उखाड़ा नहीं है। वह कहते हैं कि अंजीर हमारे इलाके की जलवायु के लिए अनुकूल है। जिस किसान ने भी मेहनत की, उसके यहां अच्छा उत्पादन हुआ है। अगर निकट भविष्य में अंजीर की खरीद का कोई जरिया निकल जाता है तो यह किसान के लिए फायदेमंद है।
अंजीर प्रोसेसिंग यूनिट लगेगी या नहीं, यह अभी तय नहीं है। बहरहाल, अंजीर लगाकर लुट-पिट चुके किसान परेशान हैं, हताश हैं। कंपनी का कोई प्रतिनिधि उनके संपर्क में नहीं है। इस संबंध में कंपनी के प्रबंध निदेशक के नंबर पर उनका पक्ष जानने के लिए कॉल की लेकिन फोन स्विच ऑफ आया। किसान दलीप गोदारा कहते हैं कि किसानों के साथ जो फरेब हुआ है, वह तो है ही। किसानों का भरोसा टूटा है, यह सबसे महत्वपूर्ण बात है। अब अगर कोई ईमानदारी से किसानों के हित मेंं नई ऑफर लेकर आएगा तो किसान उस पर भरोसा कैसे कर पाएगा?