सम्पादकीय:धनवान बनने की जुगत में किसान

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खेती किसानी से लाख जतन के बाद भी किसान धनवान नहीं बन पा रहे हैं, लगातार जरूरतें बेल पातीं, यही कारण है कि तेल या तिलहरी फसलों का हमें देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात करना पडता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गर्मी वाले धान की नर्सरी तैयार हो चुकी है, चंद रोज में उसकी रोपाई शुरू होने वाली है, पानी को ओक लगाकर पीने वाली धान की फसल उन सूखे इलाकों में भी लगाई जा रही है जहां भूमिगत जल खारा है, ऐसे इलाकों में धान की खेती जमीन की उपजाऊ क्षमता को बिगाड रही है, धान गेहूं फसल चक्र वाले इलाकों में जमीन में लवणीयता एवं क्षार बढने से मिट्टी की सेहत खराब हो रही है, जब जमीन ही उूसर होजाएगी तो धनवान तो दूर खेती से दो समय की रोटी के लिए अन्न उपजाने के भी लाले पड जाएंगे, सरकारीनीतियों ने खेती को बिगाड दिया है, खेती के चक्र को गडबडा दिया है, ऐसे में किसान करे तो क्या करे, सरकारएमएसपी घोषित तो करती है लेकिन उस रेट पर फसलों की खरीद की गारंटी नहीं दे पाती, जब प्राईवेट कंपनियाहर चीज को पूरे देश में रीद सकती हैं तो फिर सरकार क्यों नहीं, आईटीसी जैसी कंपनियां इसका जीता जागताउदाहरण हैं जो दशकों से सीधे किसानों से माल खरीदती हैं और प्रसंस्करण कर विभिन्नं उत्पाादों को बाजार मेंबेचकर मुनाफा कमा रही है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गर्मी वाले धान की नर्सरी तैयार हो चुकी है, चंद रोज में उसकी रोपाई शुरू होने वालीहै, पानी को ओक लगाकर पीने वाली धान की फसल उन सूखे इलाकों में भी लगाई जा रही है जहां भूमिगतजल खारा है, ऐसे इलाकों में धान की खेती जमीन की उपजाऊ क्षमता को बिगाड रही है, धान गेहूं फसल चक्रवाले इलाकों में जमीन में लवणीयता एवं क्षार बढने से मिट्टी की सेहत खराब हो रही है, जब जमीन ही उूसर होजाएगी तो धनवान तो दूर खेती से दो समय की रोटी के लिए अन्न उपजाने के भी लाले पड जाएंगे, सरकारीनीतियों ने खेती को बिगाड दिया है, खेती के चक्र को गडबडा दिया है, ऐसे में किसान करे तो क्या करे, सरकारएमएसपी घोषित तो करती है लेकिन उस रेट पर फसलों की खरीद की गारंटी नहीं दे पाती, जब प्राईवेट पनियाहर चीज को पूरे देश में खरीद सकती हैं तो फिर सरकार क्यों नहीं, आईटीसी जैसी कंपनियां इसका जीता जागताउदाहरण हैं जो दशकों से सीधे किसानों से माल खरीदती हैं और प्रसंस्करण कर विभिन्नं उत्पाादों को बाजार मेंबेचकर मुनाफा कमा रही है।

किसान की मेहनत से अनेक उद्योग चल रहे हैं, अनेक लोगों को वहां खेती के बाहर काम मिल रहा है, किसानोंकल्यासण की दुहाई देकर सरकारें बन बिगडती रही हैं, सरकारों के बनने बिगडने की तरह ही खेती किसानी कीसेहत भी बिगड रही है, यही कारण है कि किसान अपने बच्चों को खेती नहीं कराना चाहते, अब किसान के बेटोंने भी खेती को छोडकर दूसरे कामों से आजीविका कमाना शुरू कर दिया है, धनवान बनने की जुगत में किसानन किसान रहा न ही अन्य कारोबारों में महारथी बन पाए हैं, किसान जमीनों की कीमतें बढने से जमीनें भी बेचनेलगे हैं, इसके बाद भी जमीनों की मोटी कीमत पाकर भी आजीविका चलाने का काम भी नहीं चला पा रहे हैं,किसान की मालीहालत को सुधारने को जब तक ठोस सरकारी नीति नहीं बनेगी तब तक साल में दो से तीनबार धान लगाने से भी किसानों का कल्यारण नहीं होगा