वह किसान जो इस समय खेतों में फसल के अवशेष पराली जला रहे हैं, उनको इस कार्य की सजा मिलेगी। चलिए आपको बताते हैं किन 27 किसानों को नोटिस जारी हुआ है-
पराली जलाने से रोक रही सरकार
कटाई के बाद अधिकतर किसान फसल का अवशेष पराली जला रहे हैं। जिससे कई तरह के नुकसान होते हैं। इसी कारण सरकार प्रणाली जलने पर लोग रोक लगा रही है। कुछ जगह पर इसके लिए तो जुर्माना भी लगता है। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की, आपको बता दे की 27 किसानों को इसके लिए नोटिस जारी कर दिया गया है तो चलिए सबसे पहले हम यह जानते हैं कि पराली जलाने के नुकसान क्या है, क्यों सरकार किसानों को इसके लिए रोक रही है, और फिर उन किसानों के नाम भी जानेंगे।

पराली जलाने के नुकसान
रबी सीजन की मुख्य फसले गेहूं और सरसों इस समय तैयार हो गई है। किसान कटाई करके अनाज को घर लेकर जा रहे हैं /लेकिन अनाज की कटाई-मिजाई के बाद खेतों में जो अवशेष पड़ा है। उसे किसान अगर खेत में जला देते हैं तो इससे कई तरह के नुकसान होंगे। पहला नुकसान पर्यावरण में प्रदूषण फैलेगा, दूसरा खेत की मिट्टी खराब होगी, तीसरा धुएं से किसान की सेहत पर भी बुरा असर पड़ेगा। पैदावार घटने से कमाई भी कम होगी।
दरअसल, पराली जलाने से खेत में जो किसान के मित्र कीट होते हैं वह भी मर जाते हैं। खेत की मिट्टी की उर्वरता भी कम होती है। इस पराली का किसान इस्तेमाल कर सकते हैं। उससे खाद बना सकते हैं।इसके अलावा जिले के कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट श्री अर्पित वर्मा का कहना है कि किसान कंबाइन हार्वेस्टर में स्ट्रा रीपर या फिर स्ट्रा मैनेजमेंट लगा लेंगे तो कटाई के साथ उन्हें भूसा भी मिल जाएगा। जिसका चारा की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं या उसकी बिक्री कर सकते हैं। यही वजह है कि जिले में पराली जलाने से रोकने के लिए हार्वेस्टर के साथ स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। ताकि खेतों में पराली ही ना रह जाए। नहीं उसे जलाने की समस्या फिर आएगी।

इन 27 किसानों को जारी हुआ नोटिस
जिले में पराली किसान ना जलाएं, इसके लिए कलेक्टर श्री अर्पित वर्मा लगातार किसानों को समझा रहे हैं उनसे निवेदन कर रहे हैं कि वह पराली ना जलाये और परली जलाने के बाद किसानों को नोटिस भी जारी किया जा रहा है। दरअसल, बड़ौदा की तहसीलदार श्रीमती मनीषा मिश्रा और राजस्व एवं कृषि विभाग की टीम ने जब खेतों का दौरा किया तो वहां पर लगभग 27 किसान नजर आये जो खेतों में पराली जला रहे थे ऐसे में उनके नाम पर नोटिस जारी किया गया है।
इस तरह जो किसान पराली जलाते हुए पकड़े गए हैं उनमें श्री महावीर धाकड़ निवासी बडौदा, श्री कन्हैया माली निवासी, श्री हनुमान मीणा निवासी कलोनी, श्रीमती सुमित्राबाई गुर्जर निवासी बडौदा,बलराम गुर्जर निवासी रतोदन, श्री रूपसिंह गुर्जर निवासी रतोदन, श्री गिर्राज जाट निवासी रतोदन, श्री मांगीलाल माली निवासी बडौदा, श्री हेमराज माली निवासी बडौदा, श्री रामनिवास कुम्हार निवासी इच्छापुरा, श्री बल्लभ धाकड़ निवासी बडौदा, श्रीमती जानकी माली निवासी बडौदा, श्री राधेश्याम धाकड़ निवासी बडौदा, श्री रामप्रसाद धाकड़ निवासी बडौदा को नोटिस जारी किया है।
इनके साथ-साथ श्री ओमप्रकाश मीणा निवासी कलोनी, श्री शभ्भु माली निवासी बडौदा, श्री रामनारायण धाकड़ निवासी बडौदा, श्री प्रहलाद निवासी बडौदा, श्री त्रिलोकचंद धाकड़ निवासी बडौदा, श्री ओमप्रकाश धाकड़ निवासी बडौदा, श्री दीपक वैश्य निवासी बडौदा, श्री सुग्रीव जाट निवासी बडौदा, श्री कल्याण गुर्जर निवासी बडौदा, बडौदा, श्री राधेश्याम माली निवासी बडौदा, श्री रमेश माली निवासी बडौदा, श्री हेमराज माली निवासी बडौदा को नोटिस जारी किया है।
जिसमें मुख्यतः बडौदा, कॉलोनी, रतोदन के रहने वाले हैं। इन सभी किसानों को तीन दिन का नोटिस जारी किया गया है। 3 दिन के भीतर ही इन्हें तहसीलदार को जवाब देना होगा कि आखिर उन्होंने ऐसा कदम क्यों उठाया। जबकि सरकार लगातार उनसे पराली ना जलाने के लिए अनुरोध कर रहे हैं और पराली से कैसे छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है इसके बारे में भी बताया जा रहा है कि पराली की खाद बना सकते हैं, पराली से पशुओं के लिए भूसा बना सकते हैं या कंपनियों को इसकी बिक्री कर सकते हैं।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने दावा किया है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में धान की पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल की तुलना में 57 प्रतिशत की कमी आई है। मंत्रालय के अनुसार, यह बदलाव 2018-19 से लागू फसल अवशेष प्रबंधन योजना का नतीजा है, जिसके तहत किसानों को मशीनरी खरीद और प्रबंधन के लिए वित्तीय मदद दी जा रही है। यह जानकारी लोकसभा में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने एक लिखित जवाब में दी।
मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, योजना के तहत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पराली के इन-सीटू (खेत में ही प्रबंधन) और एक्स-सीटू (खेत से बाहर उपयोग) प्रबंधन पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए किसानों को मशीनों की कीमत का 50 प्रतिशत और ग्रामीण उद्यमियों को 30 लाख रुपये तक की परियोजनाओं के लिए 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जा रही है। मशीनों में सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर और बेलर जैसी तकनीक शामिल हैं, जो पराली को जलाने की बजाय इसके दोबारा उपयोग को बढ़ावा देती हैं।
आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 से 2024-25 (28 फरवरी तक) के बीच इन राज्यों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को 3698.45 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इस दौरान 41,900 से ज्यादा कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) बनाए गए और 3.23 लाख से अधिक फसल अवशेष प्रबंधन मशीनें किसानों तक पहुंचाई गईं। मंत्रालय का कहना है कि इससे पराली की सप्लाई चेन को मजबूत करने में मदद मिली है, जिसका इस्तेमाल बायोमास बिजली और जैव ईंधन जैसे क्षेत्रों में हो रहा है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए मंत्रालय ने बताया कि 15 सितंबर से 30 नवंबर 2023 के बीच इन तीनों राज्यों में पराली जलाने की 42,962 घटनाएं दर्ज हुई थीं, जो 2024 में घटकर 18,457 रह गईं। हालांकि, ये आंकड़े अंतरिक्ष से निगरानी पर आधारित हैं, और जमीनी हकीकत से इनका कितना मेल है, इस पर सवाल उठते रहे हैं।
हालांकि सरकार इन आंकड़ों को उपलब्धि के तौर पर पेश कर रही है, लेकिन जानकारों का कहना है कि पराली प्रबंधन की समस्या अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। हर साल सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बढ़ना इस बात का सबूत है कि अभी और काम करने की जरूरत है। मंत्रालय ने अपने बयान में इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया, लेकिन योजना को आगे बढ़ाने की बात जरूर कही।
फिलहाल, यह साफ है कि पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए तकनीक और सब्सिडी पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन इसका असर कितना टिकाऊ होगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।