- उच्च दूध उत्पादन के लिए मशहूर वेला चित्तूर के डेयरी किसान तेज गर्मी के कारण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यहां दूध का उत्पादन भी कम हो रहा है।इन चुनौतियों के बीच, महिलाओं के नेतृत्व वाली एक पहल ने महिला किसानों को गर्मी और चारे से संबंधित समस्याओं से निपटने और डेयरी व्यवसाय से उनकी आय बढ़ाने में मदद की है।श्रीजा नामक एक महिला संगठन उचित मूल्य पर दूध खरीदने, उच्च गुणवत्ता वाले चारे उपलब्ध कराने और पशु चिकित्सकों तक पहुंच प्रदान कराकर, इस सूखाग्रस्त जिले में डेयरी किसानों का समर्थन कर रही है।
अप्रैल के आखिरी दिनों में तेज धूप से आंगन तप रहा था। तापमान 43.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। एम. थायरम्मा पास के एक कुएं से पानी भर कर लाईं और अपने घर के ठीक बाहर एक शेड में खड़ी अपनी दोनों गायों को नहलाने लगीं। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के अटलावरिपल्ली गांव में रहने वाली थायरम्मा के घर के पास की जमीन भी, जहां वह मवेशियों के लिए चारा उगाती थी, गर्मी से सूखी और बेजान पड़ी थी। गर्म लपटे शरीर को झुलसा रहीं थीं, आसमान साफ था, लेकिन बारिश वाले बादलों को कहीं निशान नहीं था।
54 साल की थायरम्मा पिछले तीन दशकों से डेयरी किसान हैं और मवेशियों की देखभाल में पारंगत हैं। लेकिन लगातार हर साल बढ़ती गर्मी आज उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। तेज तापमान से उनके मवेशी बीमार पड़ रहे हैं, मैस्टाइटिस (थन की सूजन) और डीहाइड्रेशन, बुखार और हीट स्ट्रोक, दूध उत्पादन को कम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “पिछले महीने से रोजाना दूध का उत्पादन बीस प्रतिशत कम हो गया है।” हालांकि गर्मी के असर को कम करने के लिए वो अपने जानवरों को पहले से ज्यादा बार नहला रही हैं और उन्हें ज्यादा पानी भी पिला रही हैं। लेकिन कोई ज्यादा फायदा उन्हें नजर नहीं आया है। मई और जून में दूध का उत्पादन कम होना, अब उनके लिए एक आम बात है।
थायरम्मा चित्तूर जिले के उन लाखों डेयरी किसानों में से एक हैं, जो तेज गर्मी से परेशान हैं। हरे चारे और पानी की कमी ने उनकी समस्या को और बढ़ा दिया है। आने वाले तीन महीनों में उनकी स्थिति में कुछ सुधार होगा, इसकी संभावना कम ही है।
ऐसी ही कहानी चित्तूर के कन्निकापुरम के 50 साल के डेयरी किसान के. रामनाराव की भी है। उनके पास पांच गाय हैं। जहां पहले रोजाना 50 लीटर दूध का उत्पादन होता था, अब घटकर 35 लीटर रह गया है। रामनाराव ने कहा, “गर्मियों का मतलब है डेयरी किसानों के लिए ज्यादा काम और कम मुनाफा। इसके ऊपर थोक दूध की कीमतें भी कम हैं और राज्य सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही है।” ऐसा ही हाल चित्तूर जिले के ही वेलकुर गांव के 55 साल के एक अन्य डेयरी किसान के. श्रीराम का भी दिखा। उन्होंने अप्रैल में अपनी दो गायें बेच दीं और अपने परिवार के साथ खेतिहर मजदूरी करने के लिए बेंगलुरु के नागनहल्ली चले गए। चित्तूर बेंगलुरु और चेन्नई के करीब स्थित है, इसलिए किसान बेहतर आजीविका की तलाश में अक्सर शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। श्रीराम बताते हैं, “हम और क्या कर सकते हैं? इस जिले में तो बेहतर रोजगार के अवसर ही नहीं हैं। यहां कोई बड़े कारखाने नहीं हैं और विकास का ज्यादातर काम पास के तीर्थ स्थल जिले ‘तिरुपति’ में ही हो रहा है।“
मौसम की मार से डेयरी क्षेत्र बेहाल
आंध्र प्रदेश भारत में कुल दूध उत्पादन में पांचवें स्थान पर है और चित्तूर राज्य के प्रमुख डेयरी फार्मिंग जिलों में से एक है। पिछले कुछ दशकों में चित्तूर में कई बड़े बदलाव आए हैं, जिसमें भैंसों की जगह गायों को प्राथमिकता देना शामिल है। जिले में गायों का अनुपात 1999 में 8.56 लाख से बढ़कर 2017 में 9.60 लाख हो गया है, जबकि भैंसों की संख्या 1999 में 1.44 लाख से घटकर 2017 में 0.88 लाख हो गई है।
चित्तूर जिले के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि यह रायलसीमा क्षेत्र में स्थित है, जो पानी की कमी वाला एक सूखाग्रस्त इलाका है। आंध्र प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित रायलसीमा, दक्षिण में तमिलनाडु, पश्चिम में कर्नाटक और उत्तर में तेलंगाना के साथ सीमा साझा करता है। रायलसीमा ने 2000 से 2018 के बीच, 15 साल सूखे का सामना किया है। 2023 में पड़ा सूखा, पिछले डेढ़ दशक का सबसे भयंकर सूखा था।
2024 में भी, इस क्षेत्र के किसानों को गर्मी से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। अल नीनो प्रभाव और हवा के बदलते पैटर्न के कारण गर्मियां और भी ज्यादा गर्म हो गई हैं। चित्तूर में सामान्य से ज्यादा तापमान दर्ज किया गया, जिससे डेयरी पशुओं पर गर्मी का असर बढ़ा है।
अमरावती में भारतीय मौसम विभाग के वैज्ञानिक एस. करुणा सागर के मुताबिक, तापमान हर साल नए रिकॉर्ड तोड़ रहा है। उन्होंने कहा, “अल नीनो के प्रभाव के कारण, अगले दो महीनों में तापमान और भी ज्यादा होने की संभावना हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि पशुपालन विभाग ने मवेशियों को गर्मी के दौरान पानी से बार-बार गीला करके ठंडा रखने के लिए एक सलाह जारी की है।
डेयरी किसान गर्मी की वजह से मवेशियों की मृत्यु और बार-बार पशु चिकित्सक के पास जाने के खर्च से भी चिंतित हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि गर्मी से श्वसन दर, मलाशय के तापमान और हृदय गति में वृद्धि के कारण दूध की पैदावार कम हो सकती है। इसके अलावा गर्मी के मौसम में मवेशी चारा कम खाते हैं, जो दूध उत्पादन कम होने की एक और वजह है।
इन चुनौतियों को देखते हुए किसान सरकारी सहायता की मांग कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि एक दशक से भी ज्यादा समय पहले, संयुक्त आंध्र प्रदेश सरकार ने डेयरी किसानों की सहायता के लिए शेड बनाए थे, पानी और सूखा चारा मुहैया कराया था। इससे किसानों को काफी राहत मिली थी। डेयरी किसान रामनाराव ने याद करते हुए बताया कि वे अपनी गायों को एल.बी.पुरम के एक शेड में ले जाया करते थे। वहां लगभग तीन महीने तक 300 मवेशी रहने की व्यवस्था थी। इसके अलावा पशु चिकित्सक नियमित रूप से मवेशियों की जांच करने के लिए आते थे।
किसानों की शिकायत है कि अब ऐसी कोई सहायता नहीं मिल रही है। 2021 में, पशुपालन विभाग ने सूखे से निपटने के लिए इसी तरह की पहल की घोषणा की थी, लेकिन किसानों का दावा है कि चित्तूर में इसे लागू नहीं किया गया है।
चित्तूर में पशुपालन विभाग के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “चुनाव संहिता के कारण कोई योजना लागू नहीं की गई है।” उधर डेयरी किसानों का दावा है कि मई 2019 के बाद से, मौजूदा सरकार ने कोई योजना नहीं बनाई है। किसानों की शिकायतों के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने आगे कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
50 वर्षीय डेयरी किसान टी. नरसिम्हुलु को पिछले पांच सालों में सिर्फ एक घास काटने की मशीन मिली है। नरसिम्हुलु ने कहा, “गर्मियों के दौरान, सरकार सिलेज और सूखा चारा उपलब्ध कराती थी। लेकिन पांच सालों से सब बंद है।”
महिला संगठन ने संभाली कमान
गर्मी ने डेयरी किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। ऐसे में श्रीजा महिला मिल्क प्रोडयूसर कंपनी लिमिटेड (SMMPCL) थायरम्मा और उन जैसी अन्य महिलाओं की मदद कर रही है। यह दुनिया की सबसे बड़ी महिला-स्वामित्व वाली और महिला द्वारा चलाई जा रही डेयरी कंपनी है।
थायरम्मा ने कहा, “नियमित स्वास्थ्य शिविर किसानों को गर्मी से होने वाले नुकसानों के बारे में जागरूक करते हैं। पशु चिकित्सक फोन पर उपलब्ध हैं, जिससे हमें छोटी-मोटी बीमारियों के लिए अपने जानवरों को अस्पताल ले जाने की परेशानी से बच जाते हैं।” वह बोर्ड की सदस्य हैं और 2014 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) द्वारा स्थापित SMMPCL के 36 शेयरों की मालिक भी।
2014 में चित्तूर में 27 सदस्यों के साथ शुरू हुई श्रीजा अब चित्तूर सहित बारह जिलों में 1.25 लाख सदस्यों तक फैल गई है। सूखे से प्रभावित क्षेत्र में डेयरी क्षेत्र में महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देने और उन्हें सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए, श्रीजा डेयरी किसानों की कई तरह से मदद करती है, जैसे उचित मूल्य पर दूध खरीदना, उच्च गुणवत्ता वाला चारा उपलब्ध कराना और पशु चिकित्सकों तक पहुंच सुनिश्चित करना।
इन लाभों से परे, श्रीजा में दूध इकट्ठा करने से लेकर बायप्रोडक्ट्स बेचने तक, पूरी आपूर्ति श्रृंखला महिलाओं के हाथों में है। यह कंपनी अपनी महिला सदस्यों को शेयरहोल्डिंग और स्वामित्व भी देती है। इसकी दो-स्तरीय शासन व्यवस्था में गांव संपर्क समूह (जिसमें सात सदस्य होते हैं) और व्यक्तिगत गांवों पर आधारित सदस्य संबंध समूह शामिल हैं। थायरम्मा ने बताया कि इन समूहों या दूध इकट्ठा करने के केंद्रों पर सदस्य आसानी से अपनी शिकायतें या समस्याएं दर्ज करा सकते हैं।
श्रीजा प्लास्टिक के दूध के डिब्बों को स्टील के डिब्बों से बदल रही है और गांव के संपर्क समूहों को मजबूत कर रही है जो किसानों को उपयोगी जानकारी देते हैं। संगठन के पास गर्मियों के मौसम से निपटने के लिए कई पहल हैं। श्रीजा के सहायक महाप्रबंधक राजेंद्र बाबू ने बताया, “चारे की कमी को देखते हुए, हम अपने सदस्यों को मुफ्त में चारा बीज देते हैं – बाजार में एक किलो बीजों की कीमत 100 रुपये है।” कंपनी हर महीने गर्मी के मौसम में मवेशियों के प्रबंधन के बारे में किसानों को शिक्षित करने के लिए कम से कम 200 कार्यक्रम आयोजित करती है। बाबू ने कहा, “कोई भी डेयरी किसान हमारे पशु चिकित्सकों से मदद ले सकता है।”
बाबू ने आगे बताया कि श्रीजा का मिशन ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना, डेयरी किसानों को आकर्षक मूल्य प्रदान करना और विभिन्न उपायों के जरिए डेयरी उद्योग को बढ़ावा देना है। श्रीजा के सदस्यों को हर साल लाभांश, बोनस और प्रोत्साहन भी मिलते हैं। थायरम्मा ने कहा, “जो किसान सालाना 1,000 लीटर से अधिक की सप्लाई करते हैं, उन्हें पांच लीटर का एक दूध का डिब्बा फ्री मिलता है।”
2023 में, इंटरनेशनल डेयरी फेडरेशन (IDF) ने महिलाओं के विकास को बढ़ावा देने, डेयरी क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने और स्थिर विकास को बढ़ावा देने के लिए श्रीजा को पुरस्कार से नवाजा था। 5,000 महिला सदस्यों के सर्वे के आधार पर, IDF ने पाया कि महिला डेयरी किसानों की बचत बढ़ी है और उन्हें अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में भी मदद मिली है। अपनी स्थापना के बाद से, श्रीजा ने यह सुनिश्चित करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 36 अरब रुपये का निवेश किया है कि सभी भुगतान सीधे व्यक्तिगत बैंक खातों में जाएं। इसके अलावा, 40 करोड़ रुपये का लाभ उत्पादकों में बांटा गया है। IDF की रिपोर्ट बताती है कि श्रीजा का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में और दस लाख महिलाओं को अपने साथ जोड़ना है।
हालांकि, चित्तूर जिले के कई लोग इस पहल से अनजान हैं। उदाहरण के लिए, डेयरी किसान रामा राव और नरसिंहुलु ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि अगर उन्हें इसके बारे में पता होता तो वे अपनी पत्नियों को श्रीजा के सदस्य के रूप में जरूर नामांकित कराते। इसका जवाब देते हुए बाबू कहते हैं, “हम अभी सिर्फ कुछ इलाकों तक ही सीमित है क्योंकि हमारे पास पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है। हम तभी दूसरे इलाकों में विस्तार कर पाएंगे जब बाजार की मांग बढ़ेगी।“