दादा साहेब भगत कभी इंफोसिस के दफ्तर में झाड़ू-पोछे का काम किया करते थे। दादा साहेब जानते थे कि पढ़ाई ही वह हथियार है, जिसके माध्यम से वह अपनी किस्मत बदल सकते हैं। उन्होंने वहीं से कंप्यूटर और उसकी तकनीक से जुड़ी डिटेल सीखना शुरू कर दिया। रात में ग्राफिक्स डिजाइनिंग और एनीमेशन की पढ़ाई करते थे।
कभी 80 रुपये रोजाना कमाने वाले शख्स ने अपनी मेहनत और लगन से खुद की किस्मत बदल ली है। कहते हैं जिंदगी में चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, अगर ठान लिया जाए तो बड़े से बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है। दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो मुश्किलें आने पर निराश हो जाते हैं। लेकिन बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं जो इनका मुकाबला करते हैं और जिंदगी में नई ऊंचाईयां हासिल करते हैं। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है दादा साहेब भगत ने। कभी इंफोसिस के दफ्तर में ऑफिस ब्वॉय का काम करने वाले दादा साहेब भगत की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। ऑफिस ब्वॉय की नौकरी करते हुए उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने सपनों की ओर आगे बढ़ते रहे। आज वह दो कंपनियों के मालिक है। खुद प्रधानमंत्री भी दादासाहेब के इस हौंसले की तारीफ कर चुके हैं। आईए आपको बताते हैं दादा साहेब भगत ने जिंदगी में इतनी सफलता कैसे हासिल की।
दादासाहेब भगत का जन्म 1994 में महाराष्ट्र के बीड में हुआ था। दादासाहेब ने हाई स्कूल की पढ़ाई करने के बाद पुणे से आईटीआई का कोर्स पूरा किया। उस दौरान दादा साहेब को नौकरी की काफी जरूरत थी। ऐसे में उन्होंने गेस्ट हाउस में रूम सर्विस ब्वॉय के तौर पर नौकरी कर ली। इंफोसिस के गेस्ट हाउस में उनका काम लोगों को रूम सर्विस, चाय-पानी देना था। उन्हें झाड़ू-पोछा, साफ-सफाई करना पड़ता था। इसके लिए उन्हें 80 रुपये रोजाना मिला करते थे।
ऐसे बदली किस्मत
दादा साहेब जानते थे कि पढ़ाई ही वह हथियार है, जिसके माध्यम से वह अपनी किस्मत बदल सकते हैं। साल 2009 में दादा साहेब शहर चले आए। उन्हें इंफोसिस कंपनी में काम मिल गया। ऑफिस ब्वॉय की नौकरी के लिए उन्हें 9,000 रुपये की सैलरी मिलने लगी। इंफोसिस में काम करना उनके लिए अच्छा रहा। उन्होंने देखा कि लोग कंप्यूटर में कुछ करते हैं, जिसकी वजह से वो बड़ी-बड़ी गाड़ियों से आते है। कंप्यूटर को लेकर उनकी इच्छा जागने लगी। उन्होंने वहीं से कंप्यूटर और उसकी तकनीक से जुड़ी डिटेल सीखना शुरू कर दिया। रात में ग्राफिक्स डिजाइनिंग और एनीमेशन की पढ़ाई करते थे। नौकरी के साथ-साथ C++ और Python का कोर्स किया।
आज हैं करोड़पति
सब ठीक चल रहा था कि एक दिन दादा साहेब के साथ एक हादसा हो गया। एक्सीडेंट के बाद वो शहर छोड़कर तीन महीने के लिए गांव चले गए। वहां से उन्होंने दोस्त से किराए पर लैपटॉप लिया और टेम्प्लेट बनाकर उसे एक प्लेटफ़ॉर्म पर बेचना शुरू किया। इससे उन्हें सैलरी से ज्यादा कमाई होने लगी। साल 2016 में दादा साहेब ने ख़ुद की Ninthmotion कंपनी शुरू कर दी।
आने लगे बड़े ऑफर
खुद की कंपनी से जब उनके पास 40 हज़ार से ज्यादा एक्टिव यूजर्स आने लगे तो उन्होंने ऑनलाइन ग्राफिक्स डिजाइनिंग का नया सॉफ्टवेयर डिजाइन कर दिया। ये सॉफ्टवेयर कैनवा जैसा ही है। इस कंपनी का नाम रखा DooGraphics। इसके बाद उनके पास बड़ी-बड़ी कंपनियों से ऑफर आने लगे। आज वह दो कंपनियों के मालिक हैं। दादा साहेब की कंपनी लोगों को ग्राफिक टैम्पलेट बनाकर देती है। कंपनी मोशन ग्राफिक और 3डी टैम्पलेट भी बनाती है, उनके क्लाइंट देश में भी हैं। लेकिन अधिकांश क्लाइंट विदेशी ही हैं। वह कहते हैं कि उनकी कंपनी केनवा वाले मॉडल पर काम कर रही है। दादा साहेब के पास आज खुद की ऑडी है।