खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिए कंपनियां है जिम्मेदार

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खाद्य या आहार को किसी व्यक्ति के भरण-पोषण, विकास और वृद्धि के लिए मूलभूत आवश्यकता माना जाता है। हाल ही में राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट के खिलाफ चलाए गए अभियान के तहत गुणवत्ता परीक्षणों में कई प्रमुख मसाला ब्रांड विफल रहे, जिसमें एमडीएच, एवरेस्ट, गजानंद, श्याम और शीबा ताजा जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों के नमूने उपभोग के लिए अनुपयुक्त पाए गए। इनमें कीटनाशक के अवशेष और अन्य हानिकारक रसायन मिले हैं। यह पहली घटना नहीं है, इससे पहले भी मिलावट की घटनाएं पाई गई हैं। ऐसी घटनाएं खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता के प्रति गंभीर चिंताओं को उजागर करती हैं, जो उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और वैश्विक व्यापार में भारत की साख पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।

ऐसी समस्या के लिए अब किसानों को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा है, क्योंकि वे अपनी फसल सुरक्षा और उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर रासायनिक का उपयोग करते हैं। लेकिन किसानों को दोषी ठहराना अनुचित है। यह एक जटिल और बहुआयामी समस्या है, जिसमें किसानों की भूमिका बहुत कम है। कई छोटे और सीमांत किसानों के पास आधुनिक कृषि पद्धतियों और सुरक्षित रसायनों के बारे में जानकारी की कमी होती है। ज्ञान और जागरूकता की कमी उन्हें अनजाने में हानिकारक रसायनों का उपयोग करने के लिए मजबूर करती है।
गंभीर आर्थिक दबाव में फंसे किसान अधिकतम उत्पादन के लिए तेजी से परिणाम देने वाले रसायनों का उपयोग करने के लिए मजबूर होते हैं। पर्याप्त निगरानी और प्रवर्तन की कमी के कारण, बाजार में हानिकारक और प्रतिबंधित रसायन आसानी से मिलते हैं। किसानों को अक्सर इन रसायनों की सुरक्षा और कानूनी स्थिति के बारे में नहीं बताया जाता है।

निस्संदेह आज कृषि क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है, जिसमें सरकार की नीतियों और संरचनात्मक बदलावों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। किसानों को सुरक्षित कृषि पद्धतियों की ओर प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत समर्थन, वित्तीय सहायता और उचित बाजार पहुंच आवश्यक है। इसके बिना, किसानों को दोषी ठहराना समाधान की दिशा में सही कदम नहीं माना जा सकता।

एक मजबूत ट्रेसिबिलिटी सिस्टम की कमी खाद्य आपूर्ति शृंखला में मिलावट, संदूषण और अनैतिक प्रथाओं के लिए गुंजाइश बनाती है। सब्जियों और फलों में कीटनाशक अवशेषों की अधिक मात्रा, दूध उत्पादों में हानिकारक रसायनों की मौजूदगी और मसालों में मिलावट की घटनाएं स्थिति की गंभीरता को उजागर करती हैं। हालांकि इन चिंताओं को दूर करने के लिए फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड रूल्स, 2011 के संशोधन से ट्रेसिबिलिटी को अनिवार्य कर आपूर्ति शृंखला में खाद्य की उत्पत्ति और आवाजाही को ट्रैक करने की क्षमता पर जोर दिया गया है। यदि यह प्रणाली प्रभावी ढंग से लागू की जाती है, तो हर हितधारक को जवाबदेह बनाया जाएगा और यह प्रणाली मिलावट की प्रथाओं को रोकेगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की साख बढ़ाएगी।

हालांकि, संभावित लाभों के बावजूद, 2011 का संशोधन काफी हद तक लागू नहीं हो पाया है, जिसके कारणों में बुनियादी ढांचे की कमी, लॉजिस्टिक चुनौतियां और छोटे व सीमांत किसानों को डिजिटल प्रणाली में एकीकृत करने की आवश्यकता शामिल है। खाद्य सुरक्षा मानकों के बारे में चिंताओं के कारण भारतीय कृषि निर्यात को खारिज कर दिया जाता है। इससे किसानों के लिए कम कीमतें और निर्यात के अवसर खत्म हो सकते हैं। यह विश्वसनीय उत्पादक और निर्यातक के रूप में भारत की छवि को कमजोर करती है।

इस समस्या के समाधान के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। किसानों को समर्थन और संसाधन प्रदान करना महत्वपूर्ण है, ताकि वे सुरक्षित और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाकर खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता को सुनिश्चित कर सकें। सरकार को बुनियादी ढांचे और क्षमता निर्माण में निवेश को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। उपभोक्ताओं को सुरक्षित भोजन की मांग करने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए।