पशुओं के साथ इंसानों के लिए भी घातक,कृषि एक्सपर्ट डॉ. एनसी त्रिपाठी ने बताया कि 1955 में भारत ने अमेरिका से गेहूं आयात किया. इसके अलावा विदेशों से गेहूं का बीज भी मंगाया. इसी दौरान गेहूं और विदेशी बीजों के साथ गाजर घास भी भारत आ गई. धीरे-धीरे यह तेजी के साथ फैलने लगी और अब आमतौर पर सड़क किनारे आपको खड़ी हुई देखने मिल जाएगी.Congress के नाम पर कैसे पड़ा घास का नाम? एक बार उग जाए तो खत्म करना मुश्किल! जानिए अमेरिका से कैसे आई भारत
दुनिया भर में जितने पेड़-पौधे हैं सब अपने आप में बेहद खास होते हैं. उनके उगने से पर्यावरण को भी फायदा होता है, लेकिन कुछ पेड़-पौधे ऐसे भी हैं जो अगर आपके आसपास उग आएं तो आपके लिए जी का जंजाल बन सकते हैं, यानी कि बेहद हानिकारक हो सकते हैं. ऐसे ही एक घास है, जिसका नाम भारत की एक राजनीतिक पार्टी के नाम से जाना जाता है. हम बात कर रहे हैं कांग्रेस घास यानी कि गाजर घास की. दिखने में खूबसूरत लगने वाली यह घास किसी भी उपजाऊ जमीन को बंजर बना सकती है. खेत के साथ ही पशुओं और मनुष्यों को भी जानलेवा बीमारी दे सकता है. यह घास बेहद तेजी से उगती है. इस घास को हटाना भी एक बेहद जटिल प्रक्रिया है.
कृषि विज्ञान केंद्र नियामतपुर के कृषि एक्सपर्ट डॉ. एनसी त्रिपाठी ने बताया कि देश की आजादी के बाद “सोने की चिड़िया ” कहा जाने वाला हमारा देश दाने-दाने को मोहताज हो गई. भारत में अनाज की भारी कमी हुई. तो वर्ष 1955 में भारत ने अमेरिका से गेहूं आयात किया. इसके अलावा विदेशों से गेहूं का बीज भी मंगाया. इसी दौरान गेहूं और विदेशी बीजों के साथ गाजर घास भी भारत आ गई. धीरे-धीरे यह तेजी के साथ फैलने लगी और अब आमतौर पर सड़क किनारे आपको खड़ी हुई देखने मिल जाएगी.
तेजी से फैलती है कांग्रेस घास
डॉ. एनसी त्रिपाठी ने बताया कि कांग्रेस ग्रास 3 से 4 महीने में अपना पूरा जीवन चक्र पूरा कर लेती है. कांग्रेस घास एक वर्ग मीटर में 1 लाख 54 हजार नए पौधों को जन्म देती है. इस खरपतवार की 20 प्रजातियां पूरे विश्व में पाई जाती हैं. अमेरिका, मैक्सिको, वेस्टइंडीज, भारत, चीन, नेपाल, वियतनाम और आस्ट्रेलिया के विभिन्न भागों में पाई जाती है. भारत में आज़ादी के बाद अमेरिका से आयात किए गए गेहूं के साथ ये घास भारत आई. बहुत कम समय में तेजी के साथ यह बड़े क्षेत्रफल में फैल गई. यह घास जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर-प्रदेश, मध्यप्रदेश, उडीसा, पश्चिमी बंगाल, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड के कई इलाकों में पाई जाती है.
पशुओं के लिए जानलेवा हो सकती है कांग्रेस घास
डॉ. एनसी त्रिपाठी ने बताया कि कांग्रेस घास के लगातार संर्पक में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एर्लजी, बुखार और दमा की बीमारियां हो जाती हैं. पशुओं के लिए भी यह खतरनाक है. कांग्रेस घास से पशुओं में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं. दुधारू पशुओं के दूध में कडवाहट आने लगती है. पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में इसे खाने से उनकी मौत भी हो सकती है.
कैसे करें कांग्रेस घास की रोकथाम
डॉ. एनसी त्रिपाठी ने बताया कि कांग्रेस घास की रोकथाम के लिए यांत्रिक, रासायनिक एवं जैविक विधियों का उपयोग किया जाता है. गैरकृषि क्षेत्रों में इसके नियंत्रण के लिए शाकनाशी रसायन एट्राजिन का प्रयोग फूल आने से पहले 1.5 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में छिड़काव कर दें. ग्लाइफोसेट 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर और मेट्रीब्यूजिन 2 किग्रा. तत्व प्रति हेक्टेयर का प्रयोग फूल आने से पहले कर दिया जाए तो इसको नष्ट किया जा सकता है.
Congress के नाम पर कैसे पड़ा घास का नाम? एक बार उग जाए तो खत्म करना मुश्किल! जानिए अमेरिका से कैसे आई भारत
आपको लगता होगा कि दुनिया में जितने भी पेड़-पौधे हैं, सब बड़े काम के हैं. उनके उगने से पर्यावरण को फायदा होता होगा. पर ऐसा नहीं है. कुछ पेड़-पौधे ऐसे हैं, जो समाधान से ज्यादा समस्या होते हैं. ऐसी ही एक घास है जो यूं तो विदेशी है, पर गलती से भारत में प्रवेश कर जाने के बाद आज के वक्त में वो भारत के लगभग हर हिस्से में फैल चुकी है और खेती के लिए समस्या साबित होती है. इस घास को लोग ‘कांग्रेस घास’ (What is Congress Grass) के नाम से जानते हैं!
जी हां, इस घास का नाम राजनीतिक पार्टी कांग्रेस से जुड़ा है. आखिर घास का नाम कांग्रेस से क्यों जुड़ा है? इसका जवाब देने से पहले आपको जान लेना चाहिए कि आखिर कांग्रेस घास (How Congress Grass reach India) क्या है. ये एक तरह की खरपतवार है जिसका जन्म भारत में नहीं, बल्कि मेक्सिको में हुआ था. पर ये गलती से भारत चली आई. काफी 50-60 साल पहले जब भारत ने अमेरिका से गेहूं मंगवाया था, तो उसके साथ ये घास भी देश में चली आई थी. देखते ही देखते ये तमाम राज्यों में फैल गई.
ये घास मेक्सिको में पैदा हुई और भारत तक आ गई. (फोटो: Canva)
भारत कैसे पहुंची कांग्रेस घास?
इसे वैज्ञानिक रूप से पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस के तौर पर जाना जाता है. जब भारत में गेहूं पहुंचे तो एक शहर से दूसरे शहर ले जाने के चक्कर में ये अन्य शहरों तक पहुंच गए. इस घास से अन्य पेड़-पौधों के उगने में समस्या होती है इस वजह से इसे बीमारी के तौर पर भी जाना जाता है. कांग्रेस घास को लोग गाजर घास और चटक चांदनी के तौर पर भी जानते हैं. ये घास इंसानों की स्किन के लिख खतरनाक होती है. इससे डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा जैसी बीमारियां हो जाती हैं. पशुओं के लिए भी ये खरपतवार उपयुक्त नहीं है. कांग्रेस घास इतनी तेजी से फैलती है कि दूसरे उपयोगी पौधों और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है.