फसल के कचरे से ईंधन बनाती है बायोमास पेलेट्स मशीन

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एक आंकड़े की मानें तो पूरी दुनिया में अनाज फसलों से हर साल लगभग 1.5 गीगा टन पुआल पैदा होती है. इतनी बड़ी मात्रा में हर साल फसल के अवशेष से निजात पाना वाकई बहुत चुनौती भरा काम है. भारत में भी किसान पराली ही नहीं बल्कि दूसरी फसलों के अवशेष के निपटान को लेकर कोई ठोस प्रबंधन नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए आज किसान-Tech की इस सीरीज में हम आपको एक ऐसी मशीन के बारे में बताने वाले हैं, जिससे फसल का बचा कचरा ईंधन की गोलियां यानी बायोमास पेलेट्स में बदल जाती हैं.    हम आपको बायोमास पेलेट्स और इसकी मशीन के फायदों के बारे में विस्तार से बताएंगे.

क्या होता है बायोमास पेलेट्स?

बायोमास पेलेट्स मशीन के बारे में जानें, उससे पहले ये समझना जरूरी है कि बायोमास पेलेट्स क्या चीज है. दरअसल, जब किसी भी फसल के भूसे, डंठल और पराली को हाई प्रेशर पर कंप्रेस किया जाता है तो इससे फसल के अवशेष की छोटी-छोटी गोलियां बन जाती हैं. फसल के कचरे से बनीं ये पेलेट्स ठोस ईंधन की तरह काम करती हैं. बायोमास पेलेट्स एक तरह का जैव ठोस ईंधन ही है. आमतौर पर बायोमास पेलेट्स का व्यास 6-10 मिली मीटर और इसकी लंबाई 25-30 मिली मीटर होती है. बायोमास पेलेट्स को ब्रिकेट्स भी कहा जाता है.

बायोमास पेलेट्स मशीन क्या है?

आसान शब्दों में समझें तो ये मशीन फसल के अवशेषों को हाई प्रेशर और हाई टेंप्रेचर पर दाबकर छोटी-छोटी ठोस गोलियों में बदल देती है. इस मशीन से पेलेट्स बनाने के लिए कच्चे माल के पूर्व-उपचार, पेलेटिंग और पोस्ट-ट्रीटमेंट जैसे तीन सबसे अहम काम होते हैं. हालांकि मशीन के दाम और कैटगरी पर निर्भर करता है कि ये तीनों प्रक्रियाएं एक साथ होंगी या फिर अलग-अलग करनी होंगी. अधिकतर बायोमास पेलेट्स मशीन बिजली से ही चलती हैं और इनमें अलग-अलग क्षमता और मॉडल आते हैं. 

कैसे काम करती है ये मशीन

बायोमास पेलेट्स मशीन में पहले बायोमास फीडस्टॉक करना होता है. इसमें प्रक्रिया में पहले बायोमास यानी फसल के अवशेष का चयन करना होता है. फिर इसका निस्पादन यानी, अवशेष में से कंकड़, धातु, मिट्टी और प्लास्टिक जैसी चीजें छांचकर अलग करनी होती हैं. अगर बायोमास में नमी ज्यादा है तो इसे थोड़ा सुखाकर इसकी नमी 10 से 15 प्रतिशत कम करनी होगी. इसके बाद सारे बायोमास को पिसाई के लिए मशीन में डाल दिया जाता है. 

अब सबसे जरूरी काम होता है, जिसे पेलेटाइजेशन कहते हैं. इस प्रक्रिया में पिसे हुए फसल के अवशेष को ऊंचे तापमान में एक रोलर से गुजारा जाता है. फिर इस बायोमास  को एक हाई प्रेशर पर एक छेद वाली प्लेट से गुजारा जाता है. इस मशीन में हाई प्रेशर पर बायोमास के साथ घर्षण होने पर तापमान भी बहुत बढ़ जाता है. इस कारण बायोमास में मौजूद लिग्निन और रेजिन नरम हो जाते हैं, जिससे ये बायोमास फाइबर के बीच एक बाध्यकारी एजेंट का काम करता है. इस तरह से बायोमास पेलेट्स बनकर निकलती हैं.

क्या है मशीन की खासियत

बायोमास पेलेट्स मशीन की खासियत ये है कि इससे किसान किसी भी तरह की फसल के अवशेष से पेलेट्स बना सकते हैं. गेहूं, चावल और जौ के डंठल और भूसी से इस मशीन में पेलेट्स बनाए जा सकते हैं. इसके साथ ही मकई के दाने, इसके डंठल और गन्ने के भी अवशेष से पेलेट्स बनाए जा सकते हैं. अगर आपने अच्छी क्षमता वाली बायोमास पेलेट्स मशीन खरीदी है तो ये 60 किलो प्रति घंटा के हिसाब से पेलेट्स  बना सकती है.

बायोमास पेलेट्स से बनेगा पैसा

ये मशीन किसान सिर्फ कृषि अवशेष के निपटान के लिए नहीं खरीद रहे हैं. बल्कि इससे बनी बायोमास पेलेट्स से मोटा पैसा भी बना रहे हैं. बाजार में बायोमास पेलेट्स की कीमत 10 से 15 रुपये प्रति किलो है. बता दें कि बायोमास पेलेट्स से थर्मल पावर प्लांट में बिजली भी बनाई जाती है. यही वजह है कि बायोमास पेलेट्स की बाजार में इतनी डिमांड है.

इसके साथ ही इस बायोमास पेलेट्स नवीनीकरण ऊर्जा है, जिससे ये पर्यावरण के लिए भी अच्छी होती हैं.  बायोमास पेलेट्स ज्वलनशील ज्यादा होती हैं और जलने पर हानिकारक उत्सर्जन ना के बराबर होता है. इस वजह से बायोमास पेलेट्स की निजी फैक्ट्रियों में भी मांग रहती है, क्योंकि बायोमास पेलेट्स से औद्योगिक बॉयलर चलाने में बिजली की भारी बचत होती है. चूंकि ये पेलेट्स लकड़ी की ही तरह जलते हैं, इसलिए सर्दियों में इसे गांव और शहरों में साधारण लोग भी जलाने के लिए खरीद सकते हैं. 

कीमत और सब्सिडी 

बायोमास पेलेट्स की मशीन अलग-अलग क्षमता के हिसाब से कई मॉडलों में आती है. इसलिए बायोमास पेलेट्स मशीन का दाम 60 हजार रुपये शुरू होकर 4.5 लाख रुपये तक जाता है. लेकिन राहत की बात ये है कि इस मशीन पर केंद्र और राज्य सरकारें सब्सिडी भी दे रही हैं. केंद्र सरकार की ओर से बायोमास पेलेट्स का पूरा प्लांट लगाने पर आने वाली कुल लागत का 15 प्रतिशत सब्सिडी के तौर पर दिया जा रहा है. वहीं कुछ राज्यों में मशीन पर 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है.