गैस प्रोजेक्ट के लिए आष्टा के किसानों की उपजाऊ जमीन अधिग्रहण का विरोध

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आष्टा में देश की सबसे बड़ी एथेन क्रैकर (पेट्रोकेमिकल) प्लांट को मप्र सरकार ने मंजूरी दे दी है। इस परियोजना के लिए सरकार को बड़ी जमीन चाहिए। जमीन का कुछ हिस्सा सरकारी जमीनों से लिया जाएगा और बाकि का हिस्सा किसानों की खेती की जमीन से लिया जाएगा। किसान अपनी खेती की जमीन नहीं देना चाहते और इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। यह प्रोजेक्ट गेल (इंडिया) लिमिटेड द्वारा लगाया जा रहा है। पिछले छह महीने से किसान लगातार आंदोलन और प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस भी किसानों के समर्थन में है।

गैस अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (गेल) की रिफाइनरी का प्रोजेक्ट जिसका नाम है एथेन क्रैकर प्लांट जो मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के आष्टा तहसील में लगने वाला है। जिसकी लागत करीब 60000 करोड़ है जिसकी मंजूरी मध्य प्रदेश सरकार ने दे दी है, यहां पर पेट्रोकेमिकल उत्पाद, प्लास्टिक के दाने और गैस बनेगी। इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए करीब 2200 एकड़ जमीन लगेगी जो आष्टा के चार गांव बापचा, बागेर, अरनियादाऊद और खानदौरापुर से ली जाएगी। इसमें करीब 1300 एकड़ सरकारी जमीन है जिस पर 800 किसान खेती कर रहे हैं जिन्होंने इस भूमि को उपजाऊ बनाया है और करीब 900 एकड़ निजी भूमि है जो 586 किसानो की है जिसमें अधिकतर छोटे किसान हैं जिनके पास 5 से लेकर 10 एकड़ भूमि है। यहां 450 बोरिंग है और यह पूरी भूमि भारत का सबसे अच्छा गेहूं (शरबती) देने वाली है। यह गेहूं मुंबई में सबसे ऊंची बोली पर बिकता है।

इस पूरी भूमि में हजारों पुराने पेड़ है, जिसमें आम, जामुन, पीपल, बरगद, नीम, इमली,  बहेड़ा, छोटे संतरे, बबुल आदि। अमरुद और सीताफल के बगीचे भी है। यहां का किसान साल में तीन फसल लेते हैं मुख्य रूप से गेहूं, सोयाबीन और मूंग। यहां की मिट्टी काली और उपजाऊ है जिसकी उर्वरक क्षमता बहुत अच्छी है। 40 से 50 फीट पर ही गर्मी में पानी रहता है, बोरिंग भी अधिकतम 100 फीट गहरी है। इन गांवों में पशुपालन भी बहुत अच्छा है और  सुबह-शाम करीब 1000 लीटर दूध एक गांव से आता है यानी चारों गांव मिलाकर प्रतिदिन 8000 लीटर दूध डेयरी में आता है।  यहां के सभी नौजवान शिक्षित तथा अच्छे से खेती किसानी से लगे हुए हैं। पूरा क्षेत्र बहुत शांत और अपराध मुक्त है और लोग सुखपूर्वक अपना जीवन जी रहे हैं।

यहां की गाइडलाइन के हिसाब से एक एकड़ जमीन का भाव 4 लाख 64 हजार है और बाजार मूल्य करीब 30 लाख है। यहां के चारों गांव में तालाब है जिसकी वजह से आसपास के भी कई गांवों में पानी अच्छा है। 10 किलोमीटर दूरी पर ही पार्वती नदी भी है।

अब इतनी अच्छी भूमि जहां का किसान अच्छा गेहूं उगा रहा हैं और प्रसन्न हैं वहां पर क्या यह प्लांट लगाना किसी भी दृष्टि से सही निर्णय है। सबसे प्रमुख बात यह भी है कि यहां के सभी किसानों की ग्राम सभा में सर्व सम्मति से इस प्रोजेक्ट का विरोध किया था और अपनी जमीनों के अधिग्रहण के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन भी चला रहे हैं। परंतु सरकार अड़ी हुई है यही पर प्लांट डालने के लिए। अब यह प्लांट लगेगा तो तो इस पूरे क्षेत्र का सभी दृष्टि से वातावरण प्रभावित होगा, जमीन में केमिकल जाएंगे, मिट्टी, पानी और हवा दूषित होगी, पार्वती नदी भी दूषित होगी और यहां के प्रसन्नचित किसानो को पलायन झेलना पड़ेगा।

खेती की जमीन पर पेट्रोकेमिकल प्लांट मंजूर नहीं, मप्र सरकार को किसानों की चेतावनी

खेती की जमीन किसी कीमत पर नहीं देंगे
आष्टा के गांव में रहने वाले लक्ष्मीनारायण परमार और देवराज परमार ने बताया कि हम किसी भी कीमत पर जमीन सरकार को नहीं देंगे। हम यहां कई पीढ़ीयों से खेती कर रहे हैं और हम खेती के अलावा और कुछ भी नहीं करना चाहते। हमारी उपजाऊ जमीन पर प्लास्टिक और पेट्रोकेमिकल की इंडस्ट्री नहीं लगेगी। हम सैकड़ों किसान इसके लिए एकमत हैं। कुछ दिन में हम सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन भी करेंगे। 

सीएम बोले जल्द लेंगे जमीन
मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि जल्द ही हम जमीनों का अधिग्रहण शुरू करेंगे। मुख्यमंत्री ने दो महीने पहले गेल के अधिकारियों से मुलाकात की और उन्हें विश्वास दिलाया कि जल्द ही प्रोजेक्ट का काम शुरू हो जाएगा। 

कांग्रेस बोली आंदोलन के लिए तैयार रहे भाजपा सरकार
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा है कि सरकारी की इस दादागिरी का कांग्रेस विरोध करती है। हम सरकार से मांग करते हैं कि जबरन जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत पर नहीं किया जाए। मैं मुख्यमंत्री मोहन यादव से भी सीधे मांग करता हूं कि सरकार अपने एक तरफा निर्णय पर तत्काल पुनर्विचार करें या फिर कांग्रेस की ओर से एक निर्णायक आंदोलन के लिए तैयार रहे।

जमीन अधिग्रहण में ली जाएगी खेतीकी जमीन
मप्र सरकार के मुताबिक इस परियोजना के लिए कुल 700 हेक्टेयर जमीन चाहिए। इसमें से 470 हेक्टेयर सरकारी जमीन दी जाएगी और बाकि किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया जाएगा। वहीं कांग्रेस का आरोप है कि प्रोजेक्ट के लिए 1200 एकड़ सरकारी और 743 एकड़ किसानों की खेती की जमीन को चिह्नित किया गया है।