मसौदा नीति बनेगा आंदोलन का नया मुद्दा?
केंद्र सरकार द्वारा एग्रीकल्चर मार्केटिंग पर राष्ट्रीय नीति मसौदे पर कई हितधारकों ने पहले अपनी चिंता व्यक्त की हैं। इस बीच संयुक्त किसान मोर्चा ने भी इस मसौदे को तीन निरस्त कृषि कानूनों से भी अधिक खतरनाक बताया है।केंद्र सरकार द्वारा एग्रीकल्चर मार्केटिंग पर राष्ट्रीय नीति मसौदे पर कई हितधारकों ने पहले अपनी चिंता व्यक्त की हैं। इस बीच संयुक्त किसान मोर्चा ने हाल ही में इस मसौदे को तीन निरस्त कृषि कानूनों से भी अधिक खतरनाक बताया है। कुछ सालों पहले केंद्र द्वारा निरस्त किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने बयान जारी करते हुए कहा कि ड्राफ्ट के लागू होने पर राज्य सरकारों के संघीय अधिकारों को खत्म कर दिया जाएगा और किसानों, खेती से जुड़े श्रमिकों, छोटे उत्पादकों और छोटे व्यापारियों के हितों को भी नुकसान होगा।
एसकेएम का तर्क है कि नीति में किसानों और श्रमिकों को एमएसपी और न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने का कोई प्रावधान नहीं है। हरियाणा के टोहाना में 4 जनवरी और पंजाब के मोगा में 9 जनवरी को किसान महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्च ने कहा है कि इस ड्राफ्ट बिल को निरस्त नहीं करने तक जन संघर्ष छेड़ने के संकल्प को अपनाएगी। इससे पहले पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने ड्राफ्ट बिल पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि केंद्र अब निरस्त कृषि कानूनों को वापस लाने की कोशिश कर रहा है।
एग्रीकल्चर मार्केटिंग के मसौदे पर क्या कहता है संयुक्त किसान मोर्चा
ये सुधार नियमों का भी प्रस्ताव करते हैं, जिससे निजी क्षेत्र को प्रभावी रूप से उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन पर प्रभुत्व स्थापित करने की अनुमति मिलती है
केंद्र के इस ड्राफ्ट में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करने का कोई जिक्र नहीं है।
इस ड्राफ्ट के माध्यम से प्रस्तावित सुधार देश के संविधान के अनुसार, राज्य सूची में आने वाले कृषि, भूमि, उद्योग और बाजारों पर राज्य सरकारों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है।
इन सुधारों का उद्देश्य डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, ब्लॉकचेन, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उन्नत तकनीकों के माध्यम से निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों को एकीकृत करने के लिए मूल्य श्रृंखला-आधारित क्षमता-निर्माण ढांचे को फिर से डिजाइन करना है।