फसलोत्पादन
गेहूँ
- मड़ाई के समय ध्यान रखें कि थ्रेसर ठीक से काम कर रहा हो और गेहूँ का लाक अच्छी तरह सूखा हो।
- भण्डारण के लिए गेहूँ को कड़ी धूप में इतना सुखाना चाहिए कि उसमें नमी की मात्रा 8-10 प्रतिशत से अधिक न रहे।
- भण्डारण से पूर्व कुठले या भण्डारगृह को कीटनाशी से विसंक्रमित कर लें।
- यदि अनाज की बोरियों में भरकर रखना हो तो नीचे पर्याप्त मात्रा में भूसे व नीम की सूखी पत्ती की तह बिछा दें तथा बोरे को दीवार से 50 सेंमी दूर रखें।
सूरजमुखी
- सूरजमुखी की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई व निराई-गुड़ाई करें। इसके साथ ही पौधों पर 15 20 सेंमी मिट्टी भी चढ़ा दें।
- सूरजमुखी में हरे फुदके, बालदार सूंड़ी या तम्बाकू की सूंड़ी के नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फेमिडान 250 मिलीलीटर 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
मूँग/उर्द/लोबिया
- गर्मी में बोई गई मूँग, उर्द और लोबिया की फसल में 12-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें।
- इन फसलों में पत्ती खाने वाले कीट की रोकथाम करें।
गन्ना
- बसन्त ऋतु के गन्ने में 20 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें और ओट आने पर गुड़ाई करें।
- अगोला बेधक की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर 30 किग्रा कार्बोफ्यूरान चूर्ण डालकर फसल में सिंचाई कर दें अत: मोनोक्रोटोफास 40 ई.सी. की 1.5 लीटर दवा 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
हरी खाद की फसलें
- हरी खाद के लिए ढैंचा या सनई की बोआई भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए बहुत ही उपयोगी है।
- हरी खाद की फसलें 45-50 दिन में पलटने योग्य हो जाती हैं। अतः रोपाई के समय को ध्यान में रखते हुए बोआई करें।
मृदा परीक्षण एवं भूमि का समतलीकरण
- भूमि में पोषक तत्वों की कमी जानने के लिए मृदा परीक्षण करवा लें।
- भूमि का समतलीकरण कर लें, जिससे सिंचाई के समय पानी पूरे खेत में एक समान फैले।
गर्मी की जुताई
- रबी की फसल की कटाई के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से गर्मी की जुताई करना लाभदायक होगा।
- गर्मी की जुताई से खरपतवार की संख्या में कमी होती है, साथ ही हानिकारक कीड़े भी नष्ट हो जाते हैं और भूमि की पानी सोखने व रोकने की क्षमता भी बढ़ जाती है।
धान
- धान की देर से पकने वाली प्रजातियों की नर्सरी माह के अन्तिम सप्ताह से डाली जा सकती है।
सब्जियों की खेती
- भिण्डी/बैंगन को फली छेदक सूंड़ी से बचायें।
- अदरक व हल्दी में खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर 200-250 कुन्तल गोबर की खाद या 75 कुन्तल नादेप कम्पोस्ट प्रयोग करना चाहिए।
फलों की खेती
- यदि नींबू में फटने की समस्या हो तो पोटैशियम सल्फेट के 4 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। गर्मियों में उचित समय पर सिंचाई करें।
- लीची को फटने से बचाने हेतु भूमि में सिंचाई कर पर्याप्त नमी बनाये रखें। फल विगलन रोग के रोकथाम के लिए फलों के पकने से 20-25 दिन पूर्व काबेन्डाजिम 50% डब्लू.पी. 2.0 प्रतिशत (दो ग्राम दवा/लीटर पानी) का छिड़काव करें।
पुष्प व सगन्ध पौधे
- गुलाब में आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं गुड़ाई करें।
- मेंथा में 40-50 किग्रा नाइट्रोजन की तीसरी व अन्तिम टाप ड्रेसिंग करें।
पशुपालन/दुग्ध विकास
- पशुओं को गर्मी तथा लू से बचायें।
- पशुओं को हरा चारा पर्याप्त मात्रा में दें।
- पशुओं के लिए स्वच्छ पानी की पर्याप्त व्यवस्था करें तथा पशुओं को सुबह एवं सायं नहलावें।
मुर्गीपालन
- मुर्गीखाने के आस-पास छायादार वृक्ष होना चाहिए।
- ऐस्बेस्टास/टिन के छतों पर पेन्ट लगायें, जिससे मुर्गीखाने में ठंडक रहे।
- मुर्गीखाने में लगे पर्दा पर पानी के छीटें मारें जिससे ठंडक बनी रहे।
- मुर्गियों के चारे में प्रोटीन की मात्रा 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दें। इसके लिए मूँगफली की खली तथा मछली के चूरे की मात्रा बढ़ा दें।