धान की खेती के बजाय दलहन, मक्‍का, मोटे अनाज और तिलहन की खेती करने वाले किसानों को 35 हजार रुपये देने की वकालत 

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खरीफ सीजन अपने पीक पर है, जिसमें देश में धान रोपाई का रकबा लगातार बढ़ोतरी कर रहा है. इस बीच ICRIER की एक रिपोर्ट देश में धान की खेती का रकबा कम करने की वकालत करती हैं, जिसमें धान की खेती कम करने वाले किसानों को प्रति वर्ष 35 हजार रुपये प्रति हेक्‍टेयर देने की सिफारिश की गई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर किसान धान की खेती के बजाय दलहन, तिलहन, मक्‍का और मोटे अनाजों की खेती करते हैं तो ऐसे किसानों के बैंक खातों में सीधे 35000 रुपये हेक्‍टेयर भेजने की सिफारिश की गई है. क्‍या ये संभव है.

फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने के लिए फार्मूला

ICRIER के अर्थशास्‍त्रियों ने अशोक गुलाटी के नेतृत्‍व में ये रिपोर्ट तैयार की है. जिसमें फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने के फार्मूला के तहत धान की खेती के बजाय दलहन, मक्‍का, मोटे अनाज और तिलहन की खेती करने वाले किसानों को 35 हजार रुपये प्रति हेक्‍टेयर देने की वकालत की है. 

फसल विविधिकरण क्‍यों जरूरी

धान से निकलने वाला चावल, जब देश-विदेश की बड़ी आबादी का पेट भर रहा है, तब फसल विविधिकरण के लिए क्‍यों धान के बजाय दूसरी फसलों की खेती को प्राेत्‍साहित किया जा रहा है. ये सवाल बेहद ही प्रांसगिक है, इस सवाल का जवाब पंजाब और हरियाणा में गिरता भूजल स्‍तर और मिट्टी का गिरता स्‍वास्‍थ्‍य है. असल में धान की खेती के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है. किसान धान की खेती के लिए ट्यूबवेल से पानी खींच कर सिंचाई की व्‍यवस्‍था करते हैं. इससे भूजल स्‍तर में गिरावट आती है. हालात ये हैं कि आज पंजाब और हरियाणा के कई जिलों का भूजल स्‍तर बहुत नीचे चला गया है, जिन्‍हें डार्क जोन घोषित किया गया है. 

इसके साथ ही धान की खेती में अधिक उर्वरकों का प्रयोग भी मिट्टी के स्‍वास्‍थ्‍य काे खराब कर रहा है, जबकि धान की खेती से प्रति हेक्टेयर लगभग पांच टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है. इन्‍हीं बातों को ध्‍यान में रखते हुए फसल विविधकरण पर जोर दिया जा रहा है. क्‍योंकि दलहन, तिलहन, मक्‍का और मोटे अनाजों की खेती के लिए कम पानी की जरूरत होती है, जबकि दलहन फसलें प्राकृतिक कार्बन उत्‍सर्जक होती हैं, जो उर्वरक पर निर्भरता कम करती हैं.

क्‍या है फार्मूला 

अशोक गुलाटी के लिए नेतृत्‍व में ICRIER के अर्थशास्‍त्रियों ने धान की खेती को छोड़ फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने के लिए किसानों को 35000 रुपये हेक्‍टेयर देने की सिफारिश की है. सवाल ये है कि क्‍या ये संभव है. इसका जवाब ICRIER ने अपनी रिपोर्ट में दिया है. रिपोर्ट में केंद्र और राज्‍यों को किसानों को फसल विविधिकरण के 17,500-17,500 रुपये देने की सिफारिश की गई है. यानी 35000 रुपये में केंद्र व राज्‍य सरकारों की हिस्‍सेदारी बराबर तय करने का सुझाव दिया गया है.

रिपोर्ट में हरियाणा सरकार की मेरी पानी मेरी विरासत योजना का जिक्र करते हुए कहा गया है कि मौजूदा समय में हरियाणा सरकार धान के बजाय दूसरी फसलों की खेती करने वाले किसानों को प्रति हेक्‍टेयर 17,500 दे रही है, इसमें केंद्र सरकार को अपनी भागीदारी बराबर रूप से सुनिश्‍चित करने की जरूरत है.

केंद्र की हिस्‍सेदारी कोई अतिरिक्‍त खर्च नहीं

रिपोर्ट में फसल विविधकरण के लिए हरियाणा सरकार की तरह ही केंद्र सरकार को भी किसानों को 17,500 रुपये प्रति हेक्‍टेयर देने की सिफारिश की गई है. साथ ही ये भी कहा गया है कि केंद्र की हिस्‍सेदारी कोई अतिरिक्‍त खर्च नहीं है. रिपाेर्ट में तर्क दिया गया है कि 17,500 रुपये को बिजली, नहर के पानी और उर्वरक सब्सिडी पर होने वाले खर्च की बचत के तौर पर देखा जा सकता है, जिसे किसानों को अलग रूप में वापस देने की जरूरत है. अगर ऐसा किया जाता है, तो भारत पंजाब-हरियाणा के सबसे उपजाऊ मैदानों को संभावित मरुस्थलीकरण से बचा सकता है. 

क्‍या ये संंभव है

धान के बजाय दलहन, तिलहन, मोटे अनाज और मक्‍का की खेती करने वाले किसानों को 35000 रुपये का भुगतान क्‍या संभव है. इस सवालों का जवाब हां में दिखाई पड़ता है. बेशक केंद्र सरकार ने बजट में ऐसी कोई घोषणा नहीं की है, लेकिन केंद्र सरकार की नीतियां और फैसले इस तरफ इशारा कर रहे हैं. इसके लिए किसान आंदोलन के दौरान किसान नेताओं और सरकार के मंत्रियों के बीच बातचीत को याद करना होगा. उस दौरान भी सरकार ने फसल विविधिकरण का हवाला देते हुए 5 फसलों की 5 साल गांरटीड खरीद करने का आश्‍वासन दिया था, जिसमें तीन दलहन, मक्‍का और कपास शामिल था. 

हालांकि इस पर किसान नेताओं और सरकार के बीच सहमति नहीं बन पाई, लेकिन सरकार अरहर, उड़द और मूंग की 100 फीसदी MSP पर खरीदी के एजेंडे के साथ आगे बढ़ रही है,जबकि मक्‍के से बनने वाले इथेनॉल ने जिस तरीके एनर्जी सेक्‍टर में क्रांति की है, उससे मक्‍के का नया बाजार विकसित हुआ है. ऐसे में ये तय है कि इन फसलों काे बाजार में बेहतर दाम मिलेगा. वहीं अगर सरकार की तरफ से अलग से सब्‍सिडी का ऐलान होता है तो ये किसानों को दोहरा फायदा पहुंचाएगी.