अक्टूबर लहसुन की बुवाई का उपयुक्त समय होता है। इस समय लहसुन के कंद का बेहतर विकास हो जाता है। दरअसल, लहसुन की बुवाई ऐसे समय करना चाहिए जब न अधिक ठण्ड हो और न ही अधिक गर्मी, तो आइए जानते हैं लहसुन की उन्नत किस्मों के बारे में –
ये हैं लहसुन 9 उन्नत किस्में:-
टाइप 56-4: लहसुन की इस उन्नत किस्म को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित किया था। इसकी गांठे सफेद और आकार में छोटी होती है। इस किस्म की प्रत्येक गांठ में से 25 से 34 कलियां निकलती है। इससे प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल तक की उपज ली जा सकती है।
को.2: इसे तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित किया था। इसकी बुवाई करके किसान अच्छी पैदावार ले सकता है। इसकी गांठे सफेद होती है।
आईसी 49381: भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र ने लहसुन की इस किस्म को विकसित किया था। यह किस्म 160 से 180 दिनों में पक जाती है। यह भी अच्छी पैदावार देने वाली किस्म है। सोलन: हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय ने इस किस्म को विकसित किया था। इसके पौधे की पत्तियां चौड़ी और लंबी होती है। वहीं पत्तियों का रंग गहरा होता है। सबसे ख़ास बात यह है कि इसकी प्रत्येक गांठ में 4 पुत्तियां होती है जो बेहद मोटी होती है। अन्य किस्मों की तुलना में यह अधिक उपज देने वाली किस्म है। एग्री फाउंड व्हाईट (41-जी): यह भी लहसुन की उन्नत किस्म है जिसे अखिल भारतीय समन्वित सब्जी सुधार परियोजना के तहत महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक राज्यों के लिए संस्तुति दी जा चुकी है। यह 150 से 160 दिनों में पक जाती है। वहीं इससे प्रति हेक्टेयर 130 से 140 क्विंटल का उत्पादन होता है। यमुना सफेद ( जी-1) सफेद: यह लहसुन देश में कहीं भी उगाया जा सकता है। इसे संपूर्ण भारत में उगाने के लिए अखिल भारतीय सब्जी सुधार परियोजना के द्वारा संस्तुति की जा चुकी है। इसकी फसल 150 से 160 दिनों में पक जाती है। वहीं इससे प्रति हेक्टेयर 150 से 175 क्विंटल की पैदावार होती है। यमुना सफेद 2 (जी 50): यह किस्म झुलसा और बैंगनी धब्बा रोग प्रतिरोधक होती है। इसकी खेती मध्य प्रदेश के किसानों के लिए उत्तम है। यह 160 से 170 दिनों में पक जाती है। वहीं इससे प्रति हेक्टेयर 150 से 155 क्विंटल की पैदावार होती है। जी 282: इसकी गांठे बड़े और सफेद रंग की होती है। इसकी फसल 140 से 150 दिनों में पक जाती है। इससे प्रति हेक्टेयर 175 से 200 क्विंटल की उपज ली जा सकती है। आईसी 42891: यह किस्म 160 से 180 दिनों में पक जाती है। इसे नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान ने विकसित किया है। यह भी अच्छी उपज देने वाली किस्म है।