फतेहपुर का किसान अरुण वर्मा:नौकरी का साथ – टमाटर का रंग

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मैं अरूण वर्मा पुत्र श्री सूर्य प्रसाद वर्मा ग्राम बैला का पुरवा विकास खण्ड मलवा जिला फतेहपुर का मूल निवासी हूॅ। एक कृषक परिवार में मेरा जन्म सन् 30.06.1965 में हुआ था। घर में खेती होती थी परन्तु मेरा ध्यान नौकरी की तरफ रहा। वर्ष 1984 मंे मुझे भारतीय थल सेना में नौकरी मिली, देश की रक्षा के लिये मैं दिल से नौकरी करने लगा परन्तु नौकरी के समय जब घर की याद आती तो पिता के साथ परिवार के लोगों का दृश्य खेतों में काम करते हुये आॅखों के सामने गूंजता रहा। जब भी नौकरी से छुट्टी आता तो अपनी पैतृक भूमि पर पिता के साथ खेती में हाथ बटाता रहा। धीरे-धीरे खेती की तरफ मेरा रूझान बढ़ता गया और वर्ष 2001 में भारतीय सेना की नौकरी छोड़कर खेती बाड़ी को आधुनिक तरीके से करने का संकल्प लिये गांव वापस आया। पूरे देश पर जो मैने खेती की तकनीकें देखा था उनको बैला का पुरवा गांव में साकार करने की इच्छा लंेकर दिन रात खेतों पर मेहनत करने लगा। परिणाम यह हुआ कि आधुनिक तरीकों को जब मेरे द्वारा गेंहॅू, धान, तिलहन आदि फसलों पर अपनाया जाता रहा तो उससे मेहनत के अनुसार आर्थिक लाभ आशानुकूल नही मिला। फिर मेरा ध्यान नौकरी की तरफ बढ़ा तब मैने बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के रूप में राजकीय सेवा का पुनः अवसर मिला। अध्यापन कार्य के साथ-साथ प्रतिदिन खेती पर लगे रहने के कारण ऐसा लगता था कि एक न एक दिन मुझे आधुनिक खेती करके अपनी आमदनी को बढाऊॅगा और सेना की नौकरी छोड़ने के प्राश्चित को दूर करूॅगा।

औद्यानिक फसलों की ओर बढ़े कदम

Arun Verma Fatehpur

वर्ष 2008-09 में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग फतेहपुर के सम्पर्क में आया और विभाग के अधिकारियों द्वारा बतायी गयी तकनीकी से 01 हे0 एक खेत में टिशूकल्चर केला की गेण्ड नैन प्रजाति की खेती प्रारम्भ की। खेती अच्छी तरह चल रही थी पौधों का विकास अच्छा हो रहा था। फूल अच्छा निकला परन्तु जैसे ही केले की घार तैयार हुयी 15 से 20 दिनों के अन्दर नीलगाय (बनरोज) का प्रकोप मेरी फसल पर ऐसे पड़ा कि लगभग 3500 पौधों में से केवल 700 से 800 केले की घार ऐसी थी जिनको बनरोज द्वारा नुकसान नही पहुंचाया गया था। किसी तरह से रखवाली करके मेरे द्वारा लगभग एक लाख रूपये का केला बेंचा गया। जिसमें यदि लागत को निकाल दें तो बीस से तीस हजार रूपये की ही आमदनी 15 महीनों में हुयी। विभाग के अधिकारियों से सम्पर्क करने पर जानकारी मिली कि प्रदेश में सबसे अच्छी केला की खेती बाराबंकी का एक किसान कर रहा है जिसके यहाॅ मैं अपने स्वयं के साधन से देखने गया तो वहाॅ देखा कि केला के साथ-साथ लोगों द्वारा टमाटर की खेती भी बेड एवं स्टेकिंग विधि से की जा रही है। मेरा रूझान केला से हटकर टमाटर की ओर हो गया है और टमाटर की खेती कर रहे किसानों से जब मैने ख्ेाती के गुण जानने चाहे तो लोगों ने बताया कि कम समय में अधिक लाभ लेने का यह उत्तम फसल है। वापस घर आकर वर्ष 2010 में एक बीघा टमाटर की खेती की जिससे मुझे लगभग 27000/- की आमदनी पाॅच महीने में प्राप्त हुयी। उस समय मेरी आदते भी काफी बिगड़ चुकी थी खेती भी दस बीघा की जगह केवल दो-तीन बीघा में नगदी फसल की कर रहे थे शेष में मेरे द्वारा बहुत ध्यान नही दिया जा रहा था, लेकिन जब एक बीघे में टमाटर करने से 27000/- रूपये का लाभ हुआ तब यह लगा कि एक बार फिर से खेती को करके अधिक आमदनी करने का प्रयास किया जा सकता है। तब मैने अपने पूरे खेतों पर धान, सरसों एवं टमाटर के फसल चक्र को अपनाया और इसके आधार पर मुझको वर्ष में लगभग 200000/- रूपये का लाभ हुआ लेकिन मजदूरों और पानी की समस्या खेती में निरन्तर देखने का मिलती रही।

सिंचाई की आधुनिक पद्धति से मिला लाभ

Arun Verma Fatehpur

वर्ष 2012-13 में उद्यान विभाग में जाकर मेरे द्वारा ड्रिप सिंचाई के लिये अनुरोध किया गया तब विभागीय विकास खण्ड कर्मचारी द्वारा बताया गया कि आपको इस वर्ष सूक्ष्म सिंचाई योजना का लाभ नही मिल सकता क्योंकि विभागीय लक्ष्यों के अनुसार लाभार्थियों का चयन हो चुका है।
फिर अपनी जिद के अनुसार मेरे द्वारा जैन इरीगेशन सिस्टम से रेनगन को नगद मूल्य पर खरीदा और उसका प्रयोग टमाटर एवं खीरा की फसल पर किया फिर एक बार मुझे निराशा ही मिली और फसल से मुझे अच्छा लाभ नही मिला। लेकिन उद्यान विभाग के निरन्तर सम्पर्क में रहने के कारण वर्ष 2013-14 में ड्रिप सिंचाई के अन्तर्गत मेरा नाम क्लोज स्प्रेसिंग फसल में ड्रिप लगाने हेतु चयन किया गया जिसके लिये मुझसे 33000/- रूपये की नगद धनराशि भी जमा करायी गयी और मेरे एक हेक्टेयर क्षेत्र में टमाटर की फसल पर ड्रिप जैन इरीगेशन सिस्टम लि0 के कम्पनी के इन्जीनियर द्वारा लगाया गया। वर्तमान समय पर मेरे पास 10 बीघा जमीन है जिसमे पूरे खेतों पर संकर टमाटर की हिमसोना प्रजाति की खेती की जा रही है। अब तक पूरे खेतों पर बीज, खाद, दवा, मजदूरी, स्टेकिंग, सिंचाई एवं सुरक्षा आदि में 614000/- रूपये का व्यय मेरे द्वारा किया जा चुका है। जिस एक हे0 खेत में ड्रिप विधि से टमाटर की खेती की जा रही है उस खेत में दूसरे खेत की तुलना में डेढ़ गुना उत्पादन होने की सम्भावना है तथा वर्तमान में जो उत्पादन हो रहा है उसकी गुणवत्ता भी बहुत अच्छी होने के कारण बाजार में सबसे पहले अधिक दर रू0-14/- प्रति किलो0 की दर से बिक रहा है। लगभग 3.5 माह की फसल तैयार है एक अनुमान के अनुसार फसल को तोड़कर बेंचने तक मे लगभग 750000/- रूपये तक की लागत होने की सम्भावना है। दस बीघा क्षेत्रफल में लगभग में 28000 पौधे लगे हैं और प्रत्येक पौधे से एक अनुमान के अनुसार औसतन 10 से 12 किलो0 फल मिलने की सम्भावना है। इस सम्भावना के आधार पर पूरी फसल से अप्रैल, मई, जून के तीन महीने में लगभग 3000 कुन्टल फसल प्राप्त होगी और 4 रूपये से लेकर 22 रूपये प्रति किलो0 की दर से मेरे खेत से बाजार भाव के अनुसार फसल बिकती है इससे लगभग 2500000/- रूपये तक की फसल बिकने की सम्भावना है। वर्तमान में टमाटर की खेती जायद में करने से कीमत अच्छी मिलती है लेकिन आगामी समय में खरीफ प्याज की खेती भी बढायेगी मेरी आय और आत्मा किसान विद्यालय के द्वारा खरीफ प्याज उत्पादन का बनायेगें समूह।
वार्षिक अनुमानित आमदनी का विवरण

1भारतीय सेना की नौकरी की पेंशन120000/- रूपये
2बेसिक शिक्षा विभाग की नौकरी का वेतन420000/- रूपये
3पशुपालन से आमदनी लगभग35000/- रूपये
4खरीफ प्याज से आमदनी लगभग250000/- रूपये
5जायद टमाटर से आमदनी लगभग2500000/-रूपये
कुल वार्षिक आमदनी3325000/- रूपये