तिल की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन कैसे करें

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तिल एक प्रमुख नकदी फसल है। ये पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ-साथ तेल उत्पादन के लिए भी जानी जाती है। हालांकि, तिल की खेती  में कई प्रकार के रोग और कीट लगने का खतरा रहता है, जो फसल की पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।

तिलहन की फसलें भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिनमें तिल (Sesame cultivation) एक प्रमुख नकदी फसल है। ये पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ-साथ तेल उत्पादन के लिए भी जानी जाती है। हालांकि, तिल की खेती  में कई प्रकार के रोग और कीट लगने का खतरा रहता है, जो फसल की पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। इस लेख में हम तिल की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों, उनके लक्षणों और प्रबंधन के उपायों पर विस्तार से बताएंगे। 

1. गाल मक्खी रोग

लक्षण 

  • यह एक कीट जनित रोग है जो तिल के पौधों के तनों को प्रभावित करता है।
  • इस रोग के लगने से पौधे के तनों में सड़न होने लगती है और धीरे-धीरे पूरा पौधा नष्ट हो जाता है।
  • गाल मक्खी के लार्वा पौधे के अंदरूनी भागों को खाकर उसे खोखला कर देते हैं, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है और अंततः मर जाता है।

प्रबंधन 

  • इस रोग से बचाव के लिए मोनोक्रोटोफॉस कीटनाशक का छिड़काव 15-20 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।
  • खेत में सफाई रखें और रोगग्रस्त पौधों को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर दें।
  • 2. पत्ती छेदक रोग

लक्षण 

  • इस रोग में तिल के पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे छेद दिखाई देते हैं।
  • यह हरे रंग के कीट होते हैं, जिनके शरीर पर हल्की हरी और सफेद धारियां बनी होती हैं।
  • यदि समय पर इनका नियंत्रण न किया जाए, तो ये पूरी फसल को नष्ट कर सकते हैं।

प्रबंधन 

  • मोनोक्रोटोफॉस या नीम आधारित कीटनाशकों का छिड़काव करें।
  • प्राकृतिक शत्रुओं जैसे मकड़ियों और परजीवी कीटों को बढ़ावा दें।
  • 3. फिलोड़ी रोग

लक्षण 

  • यह रोग तिल के फूलों को प्रभावित करता है।
  • संक्रमित फूल पीले पड़ने लगते हैं और अंततः झड़ जाते हैं।
  • इससे फसल की उपज में भारी कमी आती है।

प्रबंधन 

  • मैटासिस्टॉक्स या अन्य फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करें।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
  • 4. फली छेदक रोग

लक्षण:

  • इस कीट की मादा पौधों की पत्तियों, फूलों और फलियों पर अंडे देती है।
  • लार्वा फलियों को अंदर से खाकर नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे बीजों की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • ये कीट भूरे, काले, पीले या हरे रंग के हो सकते हैं।
  • प्रबंधन:
  • क्यूनालफॉस या इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें।
  • फसल चक्र अपनाएं और खेत की नियमित निगरानी करें।
  • खरपतवार प्रबंधन के उपाय

तिल की फसल में खरपतवारों का प्रकोप अधिक होता है, जो पोषक तत्वों और पानी के लिए प्रतिस्पर्धा करके उपज को कम कर देते हैं।

1. निराई-गुड़ाई

बुवाई के 15-20 दिन बाद पहली निराई और 35-40 दिन बाद दूसरी निराई करें।

यदि मजदूरों की कमी हो तो एलाक्लोर (1.75 किग्रा/हेक्टेयर) या पेंडीमिथालिन (1 किग्रा/हेक्टेयर) का उपयोग करें।

2. रसायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए सावधानियां

 क्या करें:

  • खरपतवारनाशी की अनुमोदित मात्रा का ही प्रयोग करें।
  • फ्लैट फैन नोजल का उपयोग करें।
  • खेत में नमी होने पर ही छिड़काव करें।

  क्या न करें:

  • तेज हवा में छिड़काव न करें।
  • खरपतवारनाशी को रेत या यूरिया के साथ न मिलाएं।

तिल की खेती में सावधानियां
खरीफ सीजन (जून-जुलाई) में बुवाई करने से अच्छी उपज मिलती है।

2.उर्वरक प्रबंधन
बुवाई के समय 52 किग्रा यूरिया, 88 किग्रा डीएपी और 35 किग्रा एमओपी प्रति हेक्टेयर डालें।

3.बीज उपचार
उन्नत और रोगरोधी किस्मों का चयन करें।

4.सिंचाई
तिल वर्षा आधारित फसल है, लेकिन आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करें।

5.अंतरवर्तीय खेती
तिल के साथ मूंग, उड़द या अरहर की अंतरवर्तीय खेती करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।

खरपतवार प्रबंधन और संतुलित उर्वरक उपयोग से तिल की खेती

तिल की फसल में रोगों और कीटों का प्रकोप फसल की उत्पादकता को काफी हद तक प्रभावित करता है। समय पर निगरानी, रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन और उचित कीटनाशकों का प्रयोग करके इन समस्याओं से बचा जा सकता है। साथ ही, खरपतवार प्रबंधन और संतुलित उर्वरक उपयोग से तिल की खेती से अधिकतम उपज प्राप्त की जा सकती है। किसान भाई इन उपायों को अपनाकर तिल की खेती से अच्छा लाभ कमा सकते हैं।