बीज कानून की बारीकियों को हमारे पाठको के लिये आसान शब्दो मे नियमित रूप से बीज कानून रत्न से सम्मानित आर बी सिंह साहब पहुंचा रहे है, जिसे पाठको की सराहना मिल रही है। श्री सिंह ने बीज व्यवसाय एवं गुणवत्ता का द्वंद विषय पर अपनी बेबाक राय लिखी है। आइये उनकी कलम से जानते है-
कृषि उत्पाद के लिये बीज मूल्यवान एवं असरदार माणिक्य है। बीज उत्तम है तो उत्पादन सर्वोत्तम होगा। बीज की गुणवत्ता के लिए भारत सरकार ने बीज अधिनियम-1966, बीज नियम-1968, बीज नियन्त्रण आदेश-1983, भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानक 1965, 1971, 1988. 2013 एवं 2023 लागू है और कुछ राज्य सरकारें भी नियम कानून बना रही है। ये बीज कानून, बीज की गुणवत्ता बनाए रखने में सक्षम है। नया बीज विधेयक (
Seed Bill 2019 लोकसभा में लम्बित है परन्तु उसके विभिन्न कानूनों के क्रियान्वन का काम राज्य सरकारों के कृषि अधिकारियों के एक वर्ग बीज निरीक्षक तथा लाइसेंसिंग अधिकारियों पर है। ये बीज की गुणवत्ता सुधार में कितना योगदान देते हैं यह बहस का अलग विषय है परन्तु ये बीज की गुणवत्ता का हव्वा दिखा कर बीज उद्योग को हतोत्साहित करते हैं।
1. बीज उत्पादन :-
प्रारम्भ में 1963 में नेशनल सीड्स कारपोरेशन ने बीज उत्पादन प्रमाणीकरण एवं विक्रय का कार्य सम्भाला, दूसरी संस्थाएं जुडी। देश में लगभग 24 राज्य बीज निगमें बनी और 80 के दशक में निजी संस्थाओं ने बीज उद्योग में प्रवेश किया। आज भी निजी बीज संस्थाएं 75% प्रमाणित एवं लेबल बीज उत्पादन करती हैं। सरकारें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इनके बीज उत्पादन के ऑकड़ों को प्रस्तुत कर वाहवाही लेती परन्तु निजी बीज उद्यमियों को वह सम्मान नहीं मिलता जिसके क हकदार हैं, उन्हें हमेशा हेय दृष्टि से देखा जाता है। इनको हर तरह से जलील किया जाता है परन्तु ये बेचारे रोजगार की प्रतिस्पर्धा में अपने परिवार की रोजी-रोटी का जुगाड़ करने के लिये बाध्य हैं और प्रतिरोध भी नहीं जता सकते और भगवान की नियती समझ कर कृषि विभाग की जायज एवं नाजायज बातें सहन कर जाते हैं। ये शासकीय नियन्त्रण की बीज कम्पनियों की विसंगतियाँ खुली आँख से देखते हैं परन्तु अधर नहीं खोल पाते।
2. शासकीय क्षेत्र की विसंगतियाँ एवं विद्धपताएं :-
वैसे तो पूरे राष्ट्र में बीज सैक्टर में कुछ न कुछ असंगत घटता रहता है
परन्तु यहाँ कुछ उदाहरण दे रहा हूँ :-
A. आई.ए.आर.आई. करनाल द्वारा धान बीज विक्रय :- वर्ष खरीफ 2022 में आई.ए.आर.आई. क्षेत्रीय संस्थान ने धान-1509 का लेबल बीज 774 किसानों को बेचा, बीज उगा नहीं शिकायत आई। बीज वापिस लेने के विज्ञापन दिये कि बीज की अंकुरण क्षमता नहीं है बीज वापिस कर पैसा ले जाएं। विज्ञापन के कारण केवल 69 किसान अपना पैसा वापिस ले गये 705 किसानों जिन्होंने बो दिया खर्चा, लगा दिया, वे अपना धन वापिस नहीं ले पाये। संस्था का बीज अमानक था, अखबार में स्वीकोरोक्ति है परन्तु कृषि विभाग ने कोई कदम नहीं उठाया। कदम नहीं उठाया इसके उत्तर में बताया कि किसी किसान ने शिकायत नहीं कि यानि कृषि विभाग स्वविवेक (Suomoto) से कुछ नहीं करेगा जब तक कि उसे लिखित में कोई शिकायत न करे? मैंने शिकायत की संस्था के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया।
यदि ऐसी ही त्रुटि किसी निजी बीज व्यवसायी से हो जाए तो क्या कृषि विभाग उसे इस प्रकार बीज के पैसे लौटा कर समाधान करने देगा? नहीं उसका दोहन किया जायेगा और किसानों के केस भी होंगे। यहाँ 705 किसानों में से किसी ने भी उपभोक्ता न्यायालय में कोई केस नहीं किया। किसान युनियन का कोई प्रतिनिधि नहीं आया। ये भी अपने झंडे निजी बीज विक्रेताओं के यहाँ ही गाडते हैं।
भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, दिल्ली और पूरे देश में DWR करनाल, विभिन्न राज्यों के कृषि विश्वविद्यालय लाखों रुपये के एम.ओ.ए. करके अत्यधिक दरों पर नई किस्मों के बीज, बीज उत्पादकों को आए साल देकर धन संचय का साधन बना रहे हैं पर इनके पास ब्रीडर, टी.एल. बीज विक्रय के लिये लाइसेंस नहीं। बीज नियन्त्रण आदेश-1983 के लागू होने पर बीज आवश्यक वस्तु है और बीज आवश्यक वस्तु निर्धारित होने पर ब्रीडर सीड भी आवश्यक वस्तु की श्रेणी में आता है. अतः इन बीजों के विक्रय के लिए भी DDA/CAO का लाइसेंस लेना जरूरी है। लेखक ने DDA करनाल, निदेशक कृषि पंचकुला, संयुक्त सचिव कृषि नई दिल्ली को इस बारे दबाव बनाया परन्तु अभी तक अनुकूल उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। हर कृषि विद्यालय से बिकने वाले बीजों के लिए लाइसैंस लेना जरूरी है।
B. ढेंचा बीज वितरण :- प्रत्येक सरकार भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाने की आड़ में हर वर्ष लाखों क्विंटल ढेंचा बीज बिकता है जो बीज की परिभाषा पूरी नहीं करता बल्कि कृषि उत्पाद है। यह शासकीय संस्थानों द्वारा विक्रय किया जाता है यह अविधिक कार्य राज्य के कृषि निदेशकों, राज्य बीज निगमों जिनके कन्धों पर बीज कानून की पालना का दायित्व है उनके द्वारा उनकी आँखों के सामने होता है। परन्तु जब रक्षक ही भक्षक हो तब कौन सुनेगा। बीज की अनुदान राशि ढेंचा कृषि उत्पाद के नाम पर दी जाती है। हालांकि धरा की उर्वराशक्ति बढ़ाने के लिए सरकार ढेंचा कृषि उत्पाद पर सबसीडी दे सकती है क्योंकि जिपसम मिट्टी है उस पर भी सबसीडी देती है परन्तु देंचा बीज के नाम से सबसीडी देना अविधिक है।
C. मार्केट फीस :- बीज चाहे प्रमाणित हो या लेबल (टी.एल.) वह कृषि उत्पाद नहीं है। उदाहरण के लिये गेहूँ कृषि उत्पाद है और गेहूँ बीज अलग चीज है। कृषि उत्पाद पर मंडी कर देय होता है बीज पर नहीं लगता। मंडी कमेटी के अधिकारी सारा साल इस बात को नहीं उठाते और निजी बीज विक्रेताओं के यहाँ उस समय छापे मारते हैं जब वे अपनी पूरे साल के तैयार बीज के भेजने में ध्यान लगाये हुए होते हैं, उनको दिग भ्रमित करते हैं। प्रमाणित बीज का पूरा रिकॉर्ड राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं के पास होता है फिर भी उसके रिकॉर्ड से भी सन्तुष्ट नहीं होते। दूसरी तरफ शासकीय बीज उत्पादक कम्पनियाँ भी लेबल बीज बनाती हैं उनकी कोई छापेमारी नहीं होती। मंडी अधिकारियों को बीज और कृषि उत्पाद अलग-2 वस्तुएं हैं समझाना मुश्किल होता है। इस तथाकथित ढेंचा बीज जिसकी कोई किस्म नहीं है, सोर्स ऑफ सीड नहीं, बीज उत्पादन श्रृंखला नहीं, जो बीज की परिभाषा पूरी नहीं करता और कृषि उत्पाद है उस पर मंडी टैक्स नहीं वसूलते। इतना ही नहीं मंडी अधिकारियों को सूचित करने पर भी कोई कार्यवाही नहीं होती।
D. मूंगफली बीज गिरी के रूप में बिक्री और प्रमाणीकरण :- प्रमाणित या लेबल बीज (T.L.) की गुणवत्ता भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानक के आधार पर निर्धारित की जाती है। IMSCS 2013 में मूंगफली (Pod) के प्रमाणीकरण मानक है मूंगफली गिरी (Kernel) के रूप में नहीं है परन्तु राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक यानि सभी मूंगफली उत्पादक राज्यों में गिरी-दाना Kernel के रूप में अविधिक उत्पादन और विक्रय हो रहा है। आश्चर्य होता है कि मूंगफली केन्द्रीय बीज प्रमाणीकरण बोर्ड CSCB ने वर्ष 2008 में गिरी में बीज प्रमाणीकरण ट्रायल के तौर पर शुरू किया था का गिरी के रूप में धड़ल्ले से प्रमाणीकरण भी हो रहा है इससे ज्यादा अचम्भा तब हुआ जब इन प्रमाणीकरण संस्थाओं से पूछा गया कि किन आदेशों पर गिरी में प्रमाणीकरण किया जा रहा है परन्तु केवल राजस्थान राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था ने सूचना दी, शेष को इस बारे आदेश मालूम ही नहीं है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि केन्द्रीय बीज प्रमाणीकरण बोर्ड ने इसे ट्रायल आधार पर चलाया था, वह इसकी समीक्षा करना ही भूल गया और लेखक द्वारा वर्ष 2022 में इस बारे जानना चाहा तो इन्होंने बताया कि हमनें इसे IMSCS 2013 में बन्द कर दिया परन्तु अब तक भी प्रमाणीकरण एवं विक्रय अविधिक तरीके से हर राज्य में किया जा रहा है। ये वही राज्य हैं जो निजी बीज उत्पादकों पर गाहे-बगाहे किन्हीं कारणों से दबाव बनाते हैं और बहाना किसान को अच्छा बीज प्रदान करने का बनाया जाता है
E. गैर अनुमोदित किस्मों का बीज विक्रय :- फरवरी 2011 से भारत सरकार ने किस्मों के बीज बहुनीकरण (Multiplication) के लिए नोटिफिकेशन पूरे भारत के लिये कराई जाती है परन्तु व्यापारिक उत्पादन (Commercial Production) के लिये एरिया अनुमोदित (Recommond) किया जाता है। राजस्थान सरकार का निजी बीज उत्पादकों की किस्मों के ट्रायल विश्वविद्यालयों या ATC में करवाने का उद्देश्य है कि वे किस्में राज्य में बिजाई के लिये उपयुक्त हैं या नहीं। उसी तरह शासकीय अनुसंधानशालाओं की किस्में जिनकी सिफारिरा राजस्थान राज्य के लिए नहीं है उनकी भी टैस्टिंग होकर ही बीज क्यों नहीं बेचा जाता। कुछ किस्में जो राजस्थान के लिये अनुमोदित नहीं है उन्हें क्यों विक्रीत करने से नहीं रोका जाता।
F. बी.टी. कपास टैस्टिंग :- हर साल बी.टी. कपास विक्रय उन्हीं किस्मों का होता है जिनका राजस्थन राज्य के विश्वविद्यालयों में टैस्ट होने पर अनुमति मिलती है परन्तु फिर भी हर साल बी.टी. में गुलाबी सुन्डी के कारण फसल फेल हो रही है। इसके लिए कौन उत्तरदायी है यह कभी उजागर नहीं होता, उनको सामने नहीं लाया जाता है।
न्यायिक केसों में दण्ड :-
हर वर्ष देश में करोड़ों बीज के सैम्पल लिये जाते हैं, परिणाम फैल आते हैं तो वाद दायर कर दिये जाते हैं. इनमें से मात्र 5 प्रतिशत को जिला न्यायालय से दण्ड मिलता है। हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोट तक 1% केस में भी दण्ड नहीं मिलता। न्यायालय केस का निर्णय देते समय बीज निरीक्षक / लाइसेंसिंग अधिकारी की स्पष्ट कमी इंगित करता है। इन निर्णयों के आधार पर विभाग से कमी स्वछिद्रानवेशण (Introspection) नहीं किया जाता और एक साल में कहीं विचार नहीं किया जाता कि इतने केस न्यायालय से क्यों निरस्त हो जाते हैं। उन बीज निरी कार्यवाही क्यों नहीं होती।
:: लोकोक्ति::
अद्भुत है बीज का अंकुरण
स्वयं को होम कर, करता नया सृजन।
– सौजन्य से –
श्री संजय रघुवंशी, प्रदेश संगठन मंत्री, कृषि आदान विक्रेता संघ मप्र
श्री कृष्णा दुबे, अध्यक्ष, जागरुक कृषि आदान विक्रेता संघ इंदौर
आर.बी. सिंह, बीज कानून रत्न, एरिया मैनेजर (सेवानिवृत) नेशनल सीड्स कारपोरेशन लि० (भारत सरकार का संस्थान) सम्प्रति ‘कला निकेतन, ई-70, विधिका-11, जवाहर नगर, हिसार-125001 (हरियाणा). दूरभाष सम्पर्क-79883-04770, 94667-46625 (WhatsApp)