प्याज की महंगाई :पहले क‍िसानों और अब कंज्यूमर को रुलाने के ल‍िए कौन है ज‍िम्मेदार?

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क‍िसी भी कृष‍ि उपज के दाम घटने या बढ़ने के ल‍िए ज‍ितनी बड़ी भूम‍िका मांग और उत्पादन की होती है, इसके ल‍िए उससे कहीं ज्यादा सरकारी नीत‍ियां भी ज‍िम्मेदार होती हैं. प्याज के मामले में ऐसा ही हुआ है. सरकारी नीत‍ियों से पहले प्याज उत्पादक क‍िसान परेशान थे और अब उपभोक्ता इसकी महंगाई की मार झेल रहे हैं. आख‍िर इसके ल‍िए ज‍िम्मेदार कौन है? 

प्याज की महंगाई से जल्द राहत म‍िलने की उम्मीद बांधे बैठे लोगों को फ‍िलहाल न‍िराशा हाथ लगती नजर आ रही है. वजह यह है क‍ि प्याज के थोक दाम ने इसके सबसे बड़े उत्पादक सूबे महाराष्ट्र में र‍िकॉर्ड कायम कर द‍िया है. आवक कम होने की वजह से अध‍िकांश मंड‍ियों में इसके भाव में तेजी का रुख कायम है. यहां तक क‍ि सोलापुर मंडी में करीब 50 हजार क्व‍िंटल की बंपर आवक के बावजूद थोक दाम 7100 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक पहुंच गया है. देश के कुल प्याज उत्पादन में महाराष्ट्र की ह‍िस्सेदारी करीब 43 फीसदी है. ऐसे में यहां की मंड‍ियों के थोक दाम से ही देश में प्याज के र‍िटेल प्राइस की द‍िशा तय होती है. महाराष्ट्र के ही लासलगांव में देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी भी है. महंगाई कम करने के दावों के बीच प्याज का अगर थोक दाम यहां तक पहुंच गया है तो आने वाले द‍िनों में र‍िटेल प्राइस में क‍ितनी तेजी आ सकती है, इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं.

बहरहाल, महाराष्ट्र एग्रीकल्चरल मार्केट‍िंग बोर्ड से म‍िले आंकड़े आपको चौंका सकते हैं. बोर्ड के मुताब‍िक 19 नवंबर को राज्य की 53 मंड‍ियों में प्याज की नीलामी हुई. ज‍िसमें से 37 में दाम 5000 रुपये क्व‍िंटल और उससे अध‍िक रहा. जबक‍ि सूबे की 16 मंड‍ियों में प्याज का थोक दाम 6000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल और उससे अध‍िक रहा. लेक‍िन, सवाल यह उठता है क‍ि आख‍िर प्याज क्यों इतना महंगा हो रहा है और कंज्यूमर पर महंगाई का इतना बोझ डालने के ल‍िए ज‍िम्मेदार कौन है? इस सवाल का जवाब जानने के ल‍िए हमें क‍िसानों के दो साल पुराने दर्द की फ‍िर से बात करनी होगी.  

संकट की शुरुआत कब हुई? 

दरअसल, क‍िसी भी कृष‍ि उपज के दाम घटने या बढ़ने के ल‍िए ज‍ितनी बड़ी भूम‍िका मांग और उत्पादन की होती है, उससे कहीं ज्यादा सरकारी नीत‍ियां भी ज‍िम्मेदार होती हैं. प्याज के मामले में ऐसा ही हुआ है. प‍िछले साल की शुरुआत से ही प्याज के दाम बुरी तर‍ह से ग‍िरे हुए थे, क्योंक‍ि बंपर उत्पादन हुआ था. महाराष्ट्र में क‍िसान 1 और 2 रुपये क‍िलो तक यानी 100-200 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल पर भी प्याज बेचने के ल‍िए मजबूर थे. हालात इतने खराब हो गए थे क‍ि क‍िसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई के ल‍िए सरकार को मुआवजा देने का एलान करना पड़ा था. 

राज्य सरकार ने 1 फरवरी से 31 मार्च 2023 के बीच अपनी उपज बेचने वाले प्याज उत्पादक किसानों को 350 रुपये प्रति क्विंटल की दर से मुआवजा देने की घोषणा की, ज‍िससे क‍ि नुकसान की भरपाई हो सके. एक क‍िसान के ल‍िए इसकी अध‍िकतम ल‍िमिट 200 क्विंटल तय की गई. लेक‍िन, इससे भी क‍िसानों के नुकसान की पूरी भरपाई नहीं हो सकी. क्योंक‍ि उत्पादन लागत 1500 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल से अध‍िक आ रही थी. ऐसे में क‍िसानों ने प्याज की खेती कम करने का मन बना ल‍िया. 

नीत‍ियों ने मारा 

जुलाई-अगस्त 2023 से प्याज के दाम में थोड़ा सुधार होने लगा. क‍िसानों को उम्मीद बंधी क‍ि वो सही दाम न म‍िलने की वजह से हुए नुकसान की भरपाई कर लेंगे. लेक‍िन तभी सरकार ने क‍िसानों से ज्यादा कंज्यूमर का पक्ष लेने का फैसला कर ल‍िया. महंगाई कम करने के ल‍िए केंद्र सरकार ने 17 अगस्त को प्याज पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी. इससे दाम ग‍िरने की संभावना बढ़ गई. इसल‍िए केंद्र के इस फैसले के ख‍िलाफ राज्य की कई मंड‍ियां बंद रहीं. क‍िसानों और व्यापार‍ियों ने म‍िलकर हड़ताल की, लेक‍िन सरकार ने अपने फैसले को नहीं बदला. 

क‍िसान व‍िरोध करते रहे, लेक‍िन सरकार यहीं नहीं रुकी. फ‍िर 28 अक्टूबर को प्याज पर 800 डॉलर प्रति मीट्रिक टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) थोप द‍िया गया. इसके बाद भी सरकार को संतोष नहीं हुआ और उसने 7 दिसंबर को देर रात प्याज का एक्सपोर्ट ही बैन कर द‍िया. इससे प्याज के दाम ग‍िर गए. इन सब फैसलों से नाखुश क‍िसानों ने प्याज की खेती घटा दी. ज‍िसकी वजह से कई सूबों में खेती कम हो गई और उत्पादन ग‍िर गया. 

खेती कम हुई, उत्पादन ग‍िरा 

साल 2021-22 के दौरान देश में 19 लाख 41 हजार हेक्टेयर में प्याज की खेती हुई थी. लेक‍िन लगातार दाम न म‍िलने से परेशान क‍िसानों का इससे मोहभंग होने लगा और 2023-24 के दौरान एर‍िया घटकर 15 लाख 37 हजार हेक्टेयर ही रह गया. यानी प्याज की खेती के रकबे में 404000 हेक्टेयर की ग‍िरावट आ गई. इसका असर उत्पादन पर पड़ना ही था. हुआ भी ऐसा ही. साल 2022-23 में देश में 302.08 लाख मीट्र‍िक टन प्याज पैदा हुआ था जो 2023-24 में घटकर 242.12 लाख टन रह गया. 

यानी एक ही साल में देश के प्याज उत्पादन में करीब 60 लाख टन की कमी आ गई. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तम‍िलनाडु और तेलंगाना जैसे प्रमुख प्याज उत्पादक राज्यों में उत्पादन ग‍िर गया. इसका सीधा असर अब उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ रहा है. सरकार ‘कांदा एक्सप्रेस’ के जर‍िए बफर स्टॉक के प्याज को अलग-अलग राज्यों और शहरों में भेजकर दाम कम करने की कवायद में जुटी हुई है, लेक‍िन ऐसा होता हुआ द‍िखाई नहीं दे रहा है. 

सरकार दावा कर रही है क‍ि वो बफर स्टॉक के प्याज से दाम घटा देगी, लेक‍िन खुद सोच‍िए क‍ि जहां 60 लाख टन उत्पादन कम हो गया हो वहां 5 लाख टन के बफर स्टॉक से क्या लोगों को महंगाई से राहत म‍िल पाएगी? जबक‍ि भारत में सालाना करीब 194 लाख टन प्याज की खपत होती है. 

राजनीत‍िक मजबूरी 

ऐसा माना जा रहा है क‍ि केंद्र सरकार व‍िधानसभा चुनाव होने के बाद प्याज एक्सपोर्ट को फ‍िर से बंद कर सकती है, ताक‍ि घरेलू बाजार में प्याज की आवक बढ़ जाए. आवक बढ़ेगी तो दाम ग‍िरेगा और उपभोक्ताओं को राहत म‍िलेगी. महाराष्ट्र के क‍िसान नेता और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने कुछ ऐसी ही आशंका जाह‍िर की है. उनका कहना है क‍ि सरकार स‍िर्फ मजबूरी में प्याज के बढ़े दाम को बर्दाश्त कर रही है. हालांक‍ि, सरकार ने अब तक कोई ऐसा संकेत नहीं द‍िया है. खैर, आगे जो भी हो, लेक‍िन अभी तो इतना कह सकते हैं क‍ि सरकारी नीत‍ियों की चक्की में पहले प्याज उत्पादक क‍िसान प‍िसे और अब प्याज खरीदने वाले उपभोक्ता प‍िस रहे हैं.