अन्नदाता को बर्बाद करने में माफिया कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। नकली खाद, ब्रांडेड पैकिंग में घटिया किस्म के बीज और दवाओं का कारोबार महानगर, शहर, कस्बों से लेकर गांवों तक पहुंचा। केंद्र और राज्य सरकारें किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही हैं तो वहीं माफिया बर्बाद करने में पूरी ताकत झोंक दी है।
भले ही देश और यूपी में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा अब कम हो गया है, लेकिन उनका तनाव आज भी कम नहीं हुआ है। इसके पीछे कहीं न कहीं उनकी फसलों का उत्पादन है। पूरी लागत के बाद भी किसानों को पूरा उत्पादन नहीं मिल पाता है। किसान की बात करें तो मेहनत और फसलों में लागत की कोई कमी नहीं करते हैं। जब फसल की पैदावार सामने आती है तो उनका दिल टूट जाता है। जिस तरह से नकली खाद , ब्रांडेड पैकिंग में घटिया किस्म के बीजों और दावों का कारोबार बढ़ रहा है। उससे किसानों के सामने विकराल स्थिति पैदा हो रही है। किसान नेताओं ने सरकार से मांग की है कि नकली खाद , घटिया किस्म के बीजों और दवाओं के कारोबार पर ठोस कार्रवाई होनी चाहिए। यदि ऐसा समय रहते नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में किसने की रुचि खेतीबाड़ी में कम हो सकती है। आइए, kisanvoice के विशेष कैंपेन में जानते हैं कि नकली खाद और बीज को लेकर किसान क्या कहते हैं…
भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) आगरा के जिलाध्यक्ष राजवीर लवानियां का कहना है कि डीएपी की जिले में भारी कमी है। जिसके चलते किसान मुश्किलों में घिर गए हैं। लेकिन सरकार इन समस्याओं का समाधान करने में पूरी तरह से विफल साबित हो रही है। डीएपी खाद की उपलब्धता न होने से किसानों को पड़ोसी राज्यों से 1,650 रुपये प्रति बोरी पर खरीदना पड़ रहा है। उनका कहना है कि किसानों को इतनी भारी कीमत चुकाने के बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि डीएपी असली है या नकली (Fake Fertilizers and Pesticides) है। नकली डीएपी के डर से किसानों की चिंता और बढ़ गई है।
माफियाओं पर कृषि अधिकारियों का संरक्षण
आगरा के किसान नेता श्याम सिंह चाहर कहते हैं कि कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा नकली खाद, घटिया किस्म के बीजों और नकली दवाओं का कारोबार करने वालों पर कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति की जाती है। अपनी जेब गर्म करने में जिम्मेदार अधिकारी लगे हुए हैं। किसी भी दोषी को जेल नहीं भिजवाया। केवल अधिकारी दिखावा कर रहे हैं। इसे किसान किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे। नकली डीएपी की उच्च स्तरीय जांच करने की मांग की है। ऐसे लोगों पर कृषि विभाग के अधिकारियों का संरक्षण बना हुआ है।
सरकारी तंत्र की मिलीभगत से नकली खाद बीज का कारोबार
आगरा के किसान नेता सोमवीर यादव का कहना है कि नकली डीएपी खाद एवं नकली दवाओं का कारोबार सरकारी तन्त्र की मिलीभगत से खूब फल-फूल रहा है। इस ओर शासन-प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। जो लोग इस कारोबार में संलिप्त हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। नहीं, तो किसानों पर दोहरी मार झेलते रहेंगे। क्योंकि, उनकी फसल में लागत पूरी लग रही है। मगर, पैदावार बेहद कम है।
नकली दवाओं से किसानों में सांसों पर संकट
आगरा के बिचपुरी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह चौहान का कहना है कि फसलों में नकली कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों एवं अन्य रासायनिक दवाओं का लगातार इस्तेमाल खेत की मृदा को बंजर बना सकता है। इससे खाद्य जनित बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। जिनमें मौजूद खतरनाक कैमिकल के अवशेष वायुजनित और जलजनित बीमारियों का भी कारण बन सकते हैं। नकली कीटनाशकों के कारण किसानों को श्वांस संबंधी रोग हो सकते हैं। श्वांस लेने से कैमिकल फैफडों में जाएगा। जिससे श्वसन संबंधी रोग का खतर अधिक रहता है।
: पक्का बिल लेने के बाद मुआवजा संभव (
आगरा के प्रभारी जिला कृषि रक्षा अधिकारी व जिला कृषि अधिकारी विनोद कुमार सिंह का कहना है कि किसान लाइसेंस वाली दुकान से ही खाद, बीज और दवाएं खरीदें। इसके साथ ही खाद, बीज और कीटनाशक के खरीदने वाली दुकान के दुकानदार से पक्का बिल जरूर लें। यदि किसान दुकानदार से पक्का बिल प्राप्त करता है तो नुकसान होने की स्थिति में वह अपने उपभोक्ता अधिकारों का उपयोग कर सकता है। कृषि विभाग की ओर से ऐसे में दुकानदार के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। पक्का बिल होने से पीड़ित किसान को मुआवजा मिलना संभव है।