सरसों की खेती में नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया जिससे उस इलाके के किसान बहुत प्रभावित हुए. सरसों की किस्म डीआरएमआर 1165-40 की नई वैरायटी की खेती बड़े पैमाने पर शुरू हो गई. इससे किसानों की कमाई और मुनाफा बढ़ गया. इन किसानों में विजेंद्र सिंह भी शामिल हैं. आज विजेंद्र सिंह न केवल अपने गांव में बल्कि आस-पास के क्षेत्रों में किसानों के बड़े समुदाय के लिए भी एक आदर्श बन गए हैं.
सफलता की यह कहानी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के विजेंद्र सिंह की है. 1972 में उन्होंने टीबीबी सिंह इंटर कॉलेज से हाई स्कूल की परीक्षा पास की. उसके बाद वे पूरी तरह से खेती में लग गए. शुरू में उन्होंने परिवार का खर्च चलाने के लिए 3.5 एकड़ जमीन में डेयरी का काम शुरू किया. साथ में अलग-अलग फसलों की खेती शुरू की. आज वे रबी और खरीफ दोनों सीजन में कई फसलों की खेती करते हैं और उससे अच्छी आमदनी ले रहे हैं.
किसान विजेंद्र सिंह रबी सीजन में मुख्य रूप से गेहूं और सरसों की खेती करते हैं, जबकि खरीफ सीजन में वे उड़द और बाजरा की फसल उगाते हैं. सिंह को उड़द की फसल के लिए जिला स्तर पर प्रथम पुरस्कार और बाजरा उत्पादन के लिए राज्य स्तर पर प्रथम पुरस्कार मिला है. अपनी जीविका चलाने के लिए वे अधिक उपज देने वाली किस्मों के बीज बेचते हैं और इन किस्मों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए बाघई, धीरपुरा, चतराई और मोहम्मदाबाद जैसे गांवों में जरूरतमंद किसानों को मुफ्त बीज बांटते हैं.
विजेंद्र सिंह का कहानी
किसान विजेंद्र सिंह फिरोजाबाद के जिस जिले में सरसों की खेती करते हैं, वहां आईसीएआर की टीम दौरा कर चुकी है. इससे पहले उस इलाके के तिलहन किसान और स्थानीय किसानों के एक समूह ने आईसीएआर-केवीके फिरोजाबाद से संपर्क किया. किसानों ने आईसीएआर से सलाह मांगी कि उनके क्षेत्र में तिलहन की पैदावार कैसे बढ़ाई जा सकती है. सिंह के साथ अन्य किसानों ने अधिक से अधिक तिलहन की खेती करने में अपनी दिलचस्पी दिखाई. इसके बाद आईसीएआर-कृषि विज्ञान केंद्र, फिरोजाबाद ने उच्च उपज वाली सरसों की किस्म डीआरएमआर 1165-40 का डेमो किया. इसमें दिखाया गया कि कैसे सरसों की अधिक उपज ली जा सकती है.
इसके बाद, आईसीएआर-केवीके फिरोजाबाद के वैज्ञानिकों की एक टीम ने उस क्षेत्र का दौरा किया, किसानों के साथ चर्चा की और एक सर्वेक्षण किया. अपने निष्कर्षों के आधार पर आईसीएआर-केवीके ने किसानों के लिए एक ट्रेनिंग प्रोग्राम किया. इसके बाद किसान विजेंद्र सिंह और अन्य किसानों को आईसीएआर की तरफ से जरूरी इनपुट के साथ उच्च उपज वाली सरसों की किस्म डीआरएमआर 1165-40 के बीज दिए गए. फसल सितंबर 2023 के दूसरे सप्ताह में बोई गई और अप्रैल 2024 के अंतिम सप्ताह में काटी गई.
सरसों की खेती से फायदा
यहां सरसों की खेती में नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया जिससे उस इलाके के किसान बहुत प्रभावित हुए. सरसों की किस्म डीआरएमआर 1165-40 की नई वैरायटी की खेती बड़े पैमाने पर शुरू हो गई. इससे किसानों की कमाई और मुनाफा बढ़ गया. इन किसानों में विजेंद्र सिंह भी शामिल हैं. आज विजेंद्र सिंह न केवल अपने गांव में बल्कि आस-पास के क्षेत्रों में किसानों के बड़े समुदाय के लिए भी एक आदर्श बन गए हैं.
उनकी सफलता ने अन्य गांवों के किसानों को प्रेरित किया है, जो अब उच्च उपज वाली किस्मों का उपयोग करके तिलहन की खेती में गहरी रुचि दिखा रहे हैं. इन प्रयासों से फिरोजाबाद जिले में तिलहन उत्पादन को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने में मदद मिली है, जिससे बड़े पैमाने पर किसानों को लाभ होगा. इसके अलावा बौनी और विल्ट-प्रतिरोधी सरसों की किस्मों की किसानों के बीच मांग तेजी से बढ़ रही है. आज विजेंद्र सिंह और उनके जैसे अन्य किसान सरसों की खेती से 77120 रुपये प्रति हेक्टेयर का मुनाफा कमा रहे हैं जबकि कमाई 103020 रुपये तक हो रही है.