मध्य प्रदेश में किसान खाद-बीज की बढ़ती लागत और मौसम की मार से परेशान होकर सोयाबीन की फसल लगाना छोड़ रहे हैं। किसानों ने धान और अन्य मुनाफे वाली फसलों को विकल्प बना लिया है।सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक होने के कारण मध्य प्रदेश सोया प्रदेश के नाम से भी पहचाना जाता है लेकिन बीते कुछ वर्षों से प्रदेश सोयबीन उत्पादन के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है। प्रदेश के किसान अब सोयाबीन की जगह दूसरी मौसमी फसलों का विकल्प तलाश रहे हैं। मौसम की मार और सोयाबीन उत्पादन की बढ़ती लागत भी सोया उत्पादक किसानों के हौसले तोड़ रही है।
भोपालः कृषि विभाग के अधिकारी मानकर चल रहे हैं कि अगर एक हफ्ते और बारिश नहीं हुई तो कुल सोयाबीन के उत्पादन में 15 फीसदी की गिरावट आएगी। इसके साथ ही पिछली बार की तुलना में इस बार सोयाबीन की बुवाई का रकबा करीब 15 लाख हेक्टेयर कम है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के आंकड़ों के अनुसार 10 जुलाई तक मध्य प्रदेश में 42.66 लाख हेक्टेयर में सोया की बुवाई हुई है। पिछली बार यह आंकड़ा 58 लाख हेक्टेयर था।
हम समवेत ने जब इस बारे में कृषि एक्सपर्ट और कांग्रेस किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष केदार सिरोही से बात की तो उन्होंने कहा कि प्रदेश की भाजपा शासित वर्तमान सरकार ने खाद बीच की अनुमानित लागत में बढ़ोतरी करने के साथ खराब किस्मों वाले बीजों को लाकर गुणवत्ता से समझौता किया। जिस कारण प्रदेश के किसानों ने सोयाबीन लगाना कम कर दिया। जबकि देश के बाकी राज्यों में सोयाबीन की पैदावार बढ़ रही है।
केदार सिरोही ने आगे कहा कि जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई थी तो 2 सीजन में ही खराब और अमानक बीज को मार्केट में आने से रोक दिया गया था। और नए और अच्छी गुणवत्ता वाले बीज बाजार में लाए गए थे जिससे सोयाबीन उत्पादन में वृद्धी हो रही थी। हालांकि, सीएम शिवराज, भ्रष्ट कृषि मंत्री कमल पटेल और कॉरपोरेट नेक्सस ने फिर सोयाबीन किसानों पर चोट किया है। तीन महीने बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी और हम सोयाबीन का उत्पादन बढ़ाने की दिशा में कार्य करेंगे।
वहीं मालवा के किसान कैलाश बताते हैं कि फसलों में पीलापन बहुत ज्यादा आ रहा है खेतों में ज्यादा उत्पादन की संभावना भी नहीं है। मौसम की मार ऐसी है कि पानी हम अलग से सींचना पढ़ रहा है जिससे लागत बढ़ रही है। कैलाश कहते हैं कि यदि बीमा मुआवजा सही मिल जाए तो किसानों का सहयोग हो जाएगा।
बता दें कि पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ में भी पहले बारिश की कमी फिर येलो मोजेक ने सोयाबीन की फसल को बर्बाद कर दिया। यहां आपको कई ऐसे किसान मिल जाएंगे जिनकी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई और वे अब सरकार से मुआवजे की आश लगाए बैठे हैं। लेकिन इसमें भी फसल सर्वे के दौरान भ्रष्टाचार के मामले सामने आते हैं। जिन किसानों को नुकसान हुआ है उनको उचित मुआवजा नहीं मिलता और अधिकारी फसल का डेटा ऊपर नहीं भेजते। किसान पहले से कर्ज में हैं जिससे उनकी स्थिति और ज्यादा खराव हो जाती है।
मप्र में सोयाबीन की खेती के 41 वर्ष के इतिहास में शुरू के 32 वर्ष तो म.प्र. ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लेकिन हाल के 9 सालों में यह राज्य लड़खड़ाने लगा। हालत ऐसे हैं कि कभी उतपादन गिरता है तो कभी रकबा घटता है। जबकि महाराष्ट्र, तेलंगाना व कर्नाटक जैसे राज्यों में सोयाबीन की बढ़िया पैदावार हो रही है। परेशानी की बात ये है कि किसानों की मांग पर सरकार की अपनी दलील है। बारिश और सरकारी बेरूखी के कारण किसानों को इस समस्या से जूझना पड़ रहा है