तकनीक तैयार : समय पर पहचान, बचेगी फसलों की जान

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तमिलनाडु के वेल्लूर तकनीकी संस्थान में अध्ययनरत एक युवा ने ऐसा तकनीक तैयार की है, जिससे किसानों को फसलों की पूरी हेल्थ रिपोर्ट मिल जाएगीइंसानों की बीमारी की तरह फसलों की बीमारी के बारे में भी यही सिद्धांत है कि समय रहते रोग पकड़ लिया जाए तो इलाज बहुत आसान हो जाता है। भारत का कृषि क्षेत्र जितना विशाल है उतनी ही विशाल इसकी दिक्कतें भी हैं। सूखा, बाढ़ व जलवायु संकट से पैदा अन्य समस्याओं के साथ कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी दिक्कत है कीटों से फसलों का नुकसान होना। यह किसानों की बदहाली का बड़ा कारण बनता है। ऐसे में तमिलनाडु के वेल्लूर तकनीकी संस्थान में अध्ययनरत एक युवा ने इस बारे में न केवल सोचा बल्कि इसका समाधान भी खोज निकाला। सबसे अच्छी बात यह है कि इस तकनीक की कीमत किसानों के लिए बोझ नहीं बनेगी। इससे किसानों को अपनी फसलों की पूरी हेल्थ रिपोर्ट मिल जाएगी। अगर फसल पर किसी कीट का संक्रमण होने वाला है तो उसकी जानकरी भी पहले मिल जाएगी और उसका उपचार कर किसान अपनी फसल बचा लेंगे। कृत्रिम बौद्धिकता (एआई) से हासिल यह तकनीक एक बार फिर साबित करती है कि उद्देश्य बड़े तबके का फायदा करना हो तो एआई जैसा विज्ञान वरदान है। अनिल अश्विनी शर्मा ने युवा विज्ञानी ऋषिकेश अमित नायक की खोज पर उनसे बातचीत की

किसान और विज्ञान, अगर ये दोनों मिलेंगे तो कृषि प्रधान देश की तस्वीर वैसी विनाशकारी नहीं होगी जैसी अक्सर किसी न किसी प्राकृतिक आपदा के बाद दिख जाती है। किसान के लिए विज्ञान को साथ लाने का जज्बा आप के अंदर कैसे आया?

मैं एक किसान परिवार से संबंध रखता हूं। किसानों की फसल के साथ हर साल कोई न कोई हादसा हो ही जाता है। यह साल 2017 की बात है। भारत में किसानों की फसलों पर कीट संक्रमण हुआ था। कीट संक्रमण के बाद बड़े पैमाने पर किसानों को लागत तक वसूल नहीं हुई और उन्हें खेती छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। सिर्फ ओडिशा की ही बात करें तो वहां एक लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि कीटों की चपेट में आ गई थी। फसलें पूरी तरह से नष्ट हो गईं और किसान आत्महत्या कर रहे थे। मेरा परिवार भी इस विपदा के दंश से अछूता नहीं रहा। इस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे कि खेती-किसानी और फसल संबंधित समस्या को पहले से ही पहचान कर उसका निवारण किया जा सके। वैज्ञानिक समझ इतना तो कह ही रही थी कि खोजने निकलेंगे तो इसका हल जरूर मिलेगा। इसके बाद मैंने इस तकनीक के पीछे काम करना शुरू किया।

नुकसान से पहले ही समस्या की पहचान, अपनी इस तकनीक के बारे में बताएं?

भारतीय कृषि को समृद्ध करने के लिए 2018 में मैंने इस तकनीक पर काम करना शुरू किया। यह ऐसी तकनीक है जिससे फसल में लगने वाले कीड़े या होने वाले नुकसान को पहले से ही पहचान कर फसल को बचाया जा सकता है। कृत्रिम बौद्धिकता (एआई) तकनीक का प्रयोग करते हुए थर्मल इमेजिंग के माध्यम से फसल के कीटों का पता लगाने की एक विधि हमने विकसित की है। किसानों के लिए यह तकनीक प्रभावी साबित हुई है और यह 80 रुपए से भी कम कीमत पर उपलब्ध है। तकनीक के साथ अहम यह भी है कि वह सस्ती और सुलभ दोनों होनी चाहिए, खासकर जब बात भारतीय कृषि क्षेत्र की हो। इसलिए हमने इसकी कीमत को खासी तवज्जो दी।

आपके द्वारा खोजी गई इस तकनीक का सबसे पहले प्रयोग कहां किया गया?

हमने सबसे पहले इस तकनीक को अपने घर-परिवार के लोगों को इस्तेमाल करने के लिए दिया। थर्मल इमेजिंग सिस्टम की मदद से यह पता लगाया जा सका कि फसल को कौन से कीट और बीमारी प्रभावित कर रहे हैं। इसके बाद यह तकनीक गांव के आसपास के लोगों को भी दी गई। पहले तो आसपास के लोगों ने इसे सशंकित होकर इस्तेमाल किया। जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि इस तकनीक की मदद से किसानों की फसल को कीटों के हमले से बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।

आपने अपनी यह तकनीक किस प्रकार से विकसित की?

हमने 2019 तक एक प्रोटोटाइप विकसित कर लिया था। इसके लिए पहले ओडिशा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र और ओडिशा यूनिवर्सिटी आॅफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च से जुड़े शोधार्थियों एवं प्रोफेसर की मदद ली। वे किसानों द्वारा दिए गए फसल के पत्तों की रासायनिक जांच कर उन्हें फसल की बीमारी के बारे में जानकारी देते हैं। इस प्रक्रिया में लगभग एक हफ्ते का समय लग जाता है। तब तक फसल के बर्बाद होने की आशंका और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे में हमने पहले इसकी जांच के लिए थर्मल कैमरा और माइक्रो कंट्रोलर का प्रयोग किया, जिसे वे खेत की फसल की इमेज इकठ्ठा करते हैं। यह उन्हें दिन में दो बार सुबह और शाम में करना पड़ता था।

थर्मल स्क्रीनिंग से किस प्रकार फसल के बारे में जानकारी ली जाती है?

जब फसल में किसी तरह का संक्रमण शुरू होता है तो उसके पत्ते और तनों का तापमान बढ़ जाता है, जिसे थर्मल स्क्रीनिंग की मदद से किसान पहचान लेते हैं। इससे फसल में हो रहे संक्रमण या कीटों के हमले का पता चल जाता है। लेकिन, इस पूरी प्रक्रिया में 60 से 70 हजार रुपए का खर्च आ जाता था, जिसका वहन करना आम किसानों के लिए संभव नहीं है। इसलिए हमने दूसरी तरकीब निकाली और सैटेलाइट इमेज के माध्यम से इसकी जानकारी जुटाने लगे। सैटेलाइट इमेज इन्हें बेजिटेटिव इंडेक्स और मॉइश्चर इंडेक्स के बारे में जानकारी देती है जो फसल की स्थिति का पता लगाने में काफी सहायक होती है। पहले तो सैटेलाइट इमेज के धुंधला होने के कारण इन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ता था, लेकिन इंटेल टूल की मदद से उस समस्या का भी हल निकाल लिया गया।

किसानों के लिए कितनी सहज और फायदेमंद होगी आपकी यह तकनीक?

इससे सहज और सरल कुछ हो भी नहीं हो सकता है। फसल में प्रारंभिक रोगजनक का पता लगाने के संदर्भ में हम एक नए दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए हाई-एल्टीट्यूड बैलून (एचएबी) का प्रयोग कर रहे हैं। एचएबी का उपयोग करके रियल टाइम वायु नमूनों को कैप्चर कर और समताप मंडल में आरएनए अनुक्रमण कर हमारा लक्ष्य सेटेलाइट पर निर्भरता को कम करना है। वायु प्रवाह, तापमान और विकिरण रीडिंग के साथ एकीकृत यह डेटा हमें हानिकारक रोगाणुओं और कीटों की गतिविधि और प्रभाव की भविष्यवाणी करने में मदद करता है। इस प्रणाली के साथ, हम भारत में कृषि समुदाय को और अधिक मदद करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इससे संभावित बीमारी के प्रकोप के लिए सक्रिय प्रतिक्रिया मिल सके, जिससे अंतत: कृषि उद्योग की रोग प्रबंधन और रोकथाम रणनीतियों में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सके। इसके लिए किसानों को अपने खेत के क्षेत्र, किस प्रकार की फसल बो रहे हैं, कब बीज बोया और कब फसल को कटना है आदि जानकारी अपने मोबाइल नंबर के साथ देनी होती है। उसके बाद फसल में होनी वाली खराबी की जानकारी फोन या मैसेज के माध्यम से दी जाती है। हम वर्तमान में बीमारियों का पूर्वानुमान लगाने की तकनीक पर भी काम कर रहे हैं।

कृत्रिम बौद्धिकता पर दुनिया भर में बहस है, इस पर आपका क्या कहना है?

यह कोई नई बहस नहीं हैं। एआई से पहले आने वाली लगभग सभी तकनीकों पर भी बहस हुई है। बहस होना अच्छी बात है। कृत्रिम बौद्धिकता कोई आसमान से उतरी नई चीज नहीं है। कैलकुलेटर से लेकर कंप्यूटर तक हर मशीन हमारे लिए सुविधानजक हुई। कृत्रिम बौद्धिकता तो पहले से मौजूद तकनीक का उन्नत चरण है। विज्ञान कभी पीछे की ओर नहीं लौटता है। कृत्रिम बौद्धिकता के जरिए खेती-किसानी को ही फायदे पहुंच सकते हैं। तकनीक सस्ती होकर सब तक पहुंचे यही उद्देश्य हो। खेती-किसानी का बड़ा हिस्सा तो मामूली तकनीकों से भी दूर है। किसान और विज्ञान का मेल भारतीय खेती को खतरों से दूर करने में मदद करेगा।