हरियाणा में जाकर धान बेच रहे पंजाब के अन्नदाता

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पंजाब में इस समय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीफ धान की खरीद की जा रही है. लेकिन चावल मिल मालिक, आढ़तियों  और किसानों द्वारा राज्य में फसल खरीद के बाद उठान में कथित तौर पर देरी का आरोप लगाया जा रहा है. जिसके कारण उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इसके विरोध में आज किसान, मिल मालिक और आढ़तियों  ने राज्यव्यापी हड़ताल की घोषणा की है. इसके तहत आज दोपहर 12 बजे से तीन बजे तक राज्यव्यापी चक्का जाम किया जाएगा. इस नाकेबंदी के कारण आज पूरे राज्य में यातायात व्यवस्था प्रभावित होने की संभावना है. 

पंजाब में धान खरीद में हो रही देरी के कारण किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. मिल रही जानकारी के अनुसार पंजाब में हो रही धान खरीद में देरी के कारण सीमावर्ती इलाके में रहने वाले किसान हरियाणा की मंडियों में जाकर अपने धान बेच रहे हैं. द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार अखिल भारतीय किसान महासंघ के अध्यक्ष प्रेम सिंह भंगू ने बताया कि हरियाणा में किसानों द्वारा अपनी उपज बेचने के तीन मामले उनके संज्ञान में आ चुके हैं. उन्होंने कहा कि हरियाणा में मंडी व्यवस्था सुव्यवस्थित है. यहां डिजिटल पोर्टल के ज़रिए ख़रीद की जाती है.

हरियाणा में धान बेच रहे पंजाब के किसान

मिली जानकारी के अनुसार पंजाब में खरीद मेंदेरी के कारण घनौर, समाना, लाचरू, कपूरी और शादीपुर जैसे क्षेत्रों के किसानों द्वारा हरियाणा में धान बेचने की खबरें आई हैं. रिटायरमेंट के बाद खेती कर रहे पूर्व आईएएस अधिकारी कहन सिंह पन्नू ने बताया कि धान राज्य में धान की धीमी खरीद और मिल मालिकों के साथ आढ़तियों की हड़ताल ने किसानों के लिए चिंता पैदा कर दी है. इसके कारण सीमावर्ती क्षेत्रों के कई किसान हरियाणा में जाकर अपनी उपज बेच रहे हैं. किसान ऐसा इसलिए कर रहे क्योंकि गेहूं की बुवाई करने के लिए खेतों को जल्दी साफ करना जरूरी है.

किसान नेता ने दी चेतावनी

संयुक्त किसान मोर्चा (यूकेएम) के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने केंद्र सरकार पर पंजाब की तुलना में दूसरे राज्यों को तरजीह देने का आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य के गोदामों में चावल भरा हुआ है और मंडियों से धान की ढुलाई नहीं हो रही है. इसलिए किसानों के नेतृत्व में आयोजित इस विरोध में मिल मालिक और आढ़ती भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं. बलबीर सिंह राजेवाल ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगे नहीं मानी गई तो वे विरोध को 2020-21 के दिल्ली किसान आंदोलन के समान स्तर पर बढ़ा सकते हैं.