लोकल इकॉनोमी दे रहीं है जलवायु परिवर्तन को चुनौती

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भारत में भले ही जलवायु परिवर्तन चुनावी विमर्श का प्रमुख मुद्दा नहीं है, देश की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या क्लाइमेट सेंसिटिव क्षेत्रों में रहती है. यह स्थिति वैश्विक चिंताओं का हिस्सा है .सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 365 दिनों में से 314 दिनों में एक्स्ट्रीम वेदर की घटनाएं दर्ज की गईं. देश की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या क्लाइमेट सेंसिटिव क्षेत्रों में रहती है.

पेट्रा मोल्थान-हिल जो एक अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ है उन्होंने हाल ही में इस मुद्दे पर चिंता जताई. उन्होंने कहा, “मैंने पिछले महीने एक ईमेल प्राप्त किया था जिसमें बताया गया था कि जलवायु परिवर्तन भारतीय चुनावों में एक ‘हॉट-बटन’ मुद्दा नहीं बना है, जबकि 80 प्रतिशत भारतीय जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में रहते हैं. यह एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है.”

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा 2022 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 365 दिनों में से 314 दिनों में एक्स्ट्रीम वेदर की घटनाएं दर्ज की गईं. रॉक्सी मैथ्यू कोल पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक, ने इसे “दक्षिण एशिया का जलवायु परिवर्तन का पोस्टर चाइल्ड” करार दिया है. उन्होंने कहा, “पूरा क्षेत्र अत्यधिक गर्मी, ठंड की लहरें, बाढ़, भूस्खलन, सूखा और चक्रवात का सामना कर रहा है, जिससे खाद्य, पानी और ऊर्जा सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है.”

सरकारी प्रयासों के बाद जैसे कि ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए निवेश और SEBI द्वारा ‘ग्रीन बॉंड’ बाजार को प्रोत्साहित करने के दिशा-निर्देश, इन उपायों का प्रभाव अभी भविष्य में देखने को मिलेगा. पिछले कुछ महीनों में दक्षिण एशिया में असामान्य उच्च तापमान और बाढ़ की घटनाएं सामने आई हैं. दिल्ली में तापमान 53 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है, और सुंदरबन द्वीपों में जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं.

चंद्रिका पारमार जो एसपीजीआईएमआर में जनरल मैनेजमेंट की एसोसिएट प्रोफेसर और कॉर्पोरेट सिटिज़नशिप विभाग की निदेशक हैं, आपने उल्लेख किया, “स्थानीय अर्थव्यवस्थाएं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं. ‘100 माइल’ अर्थव्यवस्था का सिद्धांत, जो स्थानीय संसाधनों पर आधारित है, कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने में मदद कर सकता है.”

उन्होंने बताया, “गुजरात के खामीर ने स्थानीय कपास की किस्म ‘काला’ को पुनर्जीवित किया है और इस प्रक्रिया में कच्छ की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और पारिस्थितिकीय क्षमताओं को पुनर्जीवित किया है. हमें और अधिक हाइपर-लोकल व्यवसायों और पारिस्थितिकी तंत्र सक्षम करने वालों की आवश्यकता है जो प्रगति की धारणा को पुनर्परिभाषित करें, जो स्थायी, लोगों और ग्रह-केंद्रित हो.”
परमार ने निष्कर्ष में कहा कि स्थानीय और क्षेत्रीय प्रयासों के साथ हम एक स्थायी और स्वावलंबी आर्थिक भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने में सहायक होगा.