इंदौर: भारत में कपास उत्पादन के क्षेत्र में पुनर्योजी विधि को बढ़ावा देने हेतु एक मज़बूत मंच तैयार करने के उद्देश्य से विश्व कपास दिवस पर, सॉलिडारिडाड , अलायन्स ऑफ़ कॉटन एंड टेक्सटाइल स्टेकहोल्डर्स (एसीआरई) एवं सेंटर फॉर रिस्पॉन्सिबल बिजनेस (सीआरबी) के संयुक्त तत्वावधान इंदौर में ‘भारत में पुनर्योजी कृषि कपास मूल्य श्रृंखला को बढ़ावा देने में अवसर और चुनौतियाँ’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । मुख्य अतिथि इंदौर सांसद श्री शंकर लालवानी थे। कपास उत्पादन एवं इसकी मूल्य श्रृंखला से जुड़े हुए विभिन्न विशेषज्ञों, स्थायी उत्पादन के क्षेत्र में कार्य कर रहे प्रबंधकों एवं कपास उत्पादन से जुड़े कृषकों ने इस संगोष्ठी में भाग लिया।
श्री लालवानी ने कपास के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि, “जहां तक कपास की खेती का सवाल है, मध्य प्रदेश में पर्याप्त संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं। वर्तमान में, पारंपरिक खेती से पुनर्योजी कृषि में रूपांतरण कपास की खेती के लिए एक वरदान है। सॉलिडेरिडाड कपास किसानों के बीच पुनर्योजी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है। सरकार मध्य प्रदेश में कपास का क्षेत्र बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रही है। इसके मद्देनजर, हम धार जिले में रु 10,000 करोड़ का कॉटन और टेक्सटाइल हब स्थापित कर रहे हैं। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले, इसके लिए हम लगातार प्रयास कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।”
उद्घाटन सत्र में डॉ सुरेश मोटवानी, महाप्रबंधक, सॉलीडरीडाड ने कहा कि “ आज विश्व कपास दिवस के अवसर हमे याद रखना चाहिए कि कपास न केवल एक फसल है, बल्कि देश के लाखों किसानों एवं परिवारों के जीवन का आधार है। कपास उत्पादन से जुड़े तकनीक एवं ज्ञान विस्तार के क्षेत्र में कार्यशील संस्था के रूप में सॉलिडरीडाड , मध्य प्रदेश , तेलंगाना एवं महाराष्ट्र राज्य में कपास उत्पादन से जुड़े दो लाख किसानों के बीच काम कर रहा है। अगर हम भविष्य की ओर देखे तो स्थायी कपास उत्पादन एवं इसकी मूल्य श्रृंखला के संवर्धन की दिशा में कार्य करने की ज़रूरत आज से पहले कभी नहीं महसूस की गई । पुनर्योजी कृषि और अभिनव समाधानों को अपनाकर, हम कपास उत्पादन को पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समानता के लिए एक शक्ति में बदल सकते हैं, जिससे किसानों के लिए एक स्थायी आजीविका सुनिश्चित होगी और साथ ही भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमारी कृषि पारिस्थितिकी सुरक्षित एवं संरक्षित बनी रहेगी ।”
एसीआरई के प्रतिनिधि, श्री रंजीब सरमा ने कहा, “जैसा कि हम विश्व कपास दिवस मना रहे हैं, हम इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि पुनर्योजी कृषि तकनीक कपास उत्पादन के क्षेत्र एक परिवर्तनकारी बदलाव ला सकता है, जिससे वर्तमान उत्पादन में आ रही चुनौतियों को काफी कम किया जा सकता है । “एसीआरई “ मिट्टी से लेकर भण्डारण तक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कपास मूल्य श्रृंखला में नवाचार और सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। जलवायु अनुकूल तकनीक के साथ किसानों को सशक्त बनाने और वस्त्र उद्योग के हितधारकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने के माध्यम से, हमारा लक्ष्य भारत को पुनर्योजी कपास उत्पादन में वैश्विक पटल पर अग्रणी देश के रूप में स्थापित करना है, जिससे हमारे किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए एक अनुकूल भविष्य सुनिश्चित हो सके,”
इस मौके पर श्री रिजित सेनगुप्ता- सीईओ , सेंटर फॉर रिस्पॉन्सिबल बिजनेस ( सीआरबी ) ने कहा कि “विश्व कपास दिवस पर, कपास उत्पादन के भविष्य को आकार देने में स्थायी पुनर्योजी विधियों की भूमिका को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है। हमारा मानना है कि पुनर्योजी कृषि लाखों किसानों की आर्थिक भलाई के साथ पर्यावरणीय स्थिरता को संतुलित करने की कुंजी है। कपास मूल्य श्रृंखला में सहयोग को बढ़ावा देकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भारत का कपास उद्योग न केवल फले-फूले, बल्कि जिम्मेदार और समावेशी उत्पादन के लिए वैश्विक आंदोलन में भी योगदान दे।” इस अवसर पर सांसद सहित किसानों, प्रतिभागियों और उद्योग जगत से जुड़े विशेषज्ञों ने कपास क्षेत्र में ग्रामीण उद्यमिता स्थापित का समर्थन करने के लिए एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। संगोष्ठी के दौरान कपास मूल्य श्रृंखला के विभिन्न पहलुओं पर तीन व्यावहारिक विशेषज्ञ पैनल चर्चाएं भी हुई। धन्यवाद प्रस्ताव के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।