दि आपको बताया जाए कि खेती से आप लाखों रुपयों की इनकम कर सकते हैं, तो आपका सवाल होगा, वो कैसे? आज हम आपको इसी सवाल का जवाब देंगे। कम लागत में लाखों की इनकम करने के लिए हम आपको बुंदेलखंड के सागर जिले में रहने वाले आकाश चौरसिया के मल्टीलेयर खेती प्रोजेक्ट के बारे में बताएंगे।
हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ ना कुछ बनना चाहता है। आकाश चौरसिया भी ऐसा ही एक सपना देख रहे थे। उनका एकमात्र सपना डॉक्टर बनना था। ताकि वे लोगों की सेहत में सुधार कर सके। लोगों की सेहत को देखकर उनके मन में यह सवाल आया कि मैं कितना भी अच्छा डॉक्टर बन जाऊं लेकिन लोगों की सेहत में ज्यादा सुधार नहीं कर पाऊंगा।
क्योंकि आजकल लोगों का जिस तरह का खान-पान हो गया है ऐसे में सेहत पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने खेती करने का फैसला लिया। साथ ही वे देश में किसानों के हालातों को भी सुधारना चाहते थे। आज वे इस मकसद में काफी हद तक सफल हुए हैं। उनकी मल्टीलेयर पद्धति को अपनाकर किसानों को काफी लाभ हुआ है।
कैसे की जाती है मल्टीलेयर खेती
जिन आंखों ने डॉक्टर बनने का सपना देखा हो उसका रुझान यदि खेती की तरफ हो जाए, तो आश्चर्य तो होगा ही। वे इंसानों के डॉक्टर तो नहीं बन पाए लेकिन खेती के डॉक्टर बनकर किसानों का भला कर रहे हैं। उनका मल्टीलेयर खेती प्रोजेक्ट से न जाने कितने किसानों के लिए मददगार साबित हो रहा है।
आकाश चौरसिया बताते हैं कि थोड़ी बहुत सावधानी और जागरूकता के साथ मल्टीलेयर खेती की जा सकती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे किसान आज तक करते आए हैं। मल्टीलेयर या बहुस्तरीय पद्धति में एक ही जमीन में कई ऊचांईयां बनाकर फसलें उगाई जाती हैं। जैसे फरवरी में अदरक की बुवाई करी तो उसके ऊपर वाली लेयर में चौलाई बोई जाती है। कुछ दूरी पर पपीते के पेड़ भी लगा दिए जाते हैं।
खेत के बीच बीच में कुछ बांस लगा दिए जाते हैं, जिन पर कुंदरू की बेल चढ़ाई जाती है। ताकि पांच से दस साल तक कुंदरू की उपज होती रहे। एक ही खेत में कई तरह की फसलें लगाने की पद्धति को ही मल्टीलेयर या बहुस्तरीय पद्धति कहते हैं। मल्टीलेयर खेती में आकाश केवल देशी बीजों का प्रयोग करते हैं।
इन बीजों के इस्तेमाल के पीछे उनका मानना है कि देशी बीज जलवायु में होने वाले परिवर्तन का सामना बिना किसी नुकसान के कर लेते हैं। इन बीजों के उपयोग से कीड़े लगने की संभावना भी न के बराबर हो जाती है। खासकर बुंदेलखंड में जिस तरह के सूखा प्रभावित क्षेत्र होते हैं उनमें तो देशी बीजों का उपयोग ही लाभदायक होता है। इनसे पानी की बचत भी कम होती है। मल्टीलेयर या बहुस्तरीय खेती की यही खासियत इसे सस्टेनेबल मॉडल बनाती है।
पॉलीहाउस का प्रयोग
कई लोग पॉलीहाउस लगाकर मल्टीलेयर खेती करते हैं। इसमें बांस और घास की मदद से मंडप बनाया जाता है। एक बार बनाने के बाद यह मंडप लगभग पांच सालों तक चलता है। यह मंडप फसलों को प्राकृतिक आपदाओं जैसे बारिश, ओले और तेज धूप से बचाता है। लेकिन आकाश की मानें तो पॉलीहाउस की आवश्यकता नहीं होती। आकाश इसे फिजूलखर्ची बताते हैं।
मल्टीलेयर खेती के लिए जरूरी सावधानियां
- जब अदरक की बुवाई की जाए, उसके बाद जो भी फसल लगाएं उसे ऊपर की ओर से लगानी चाहिए।
- कोई भी सब्जी लगाएं। उसको लगाने के 10 से 15 दिनों के भीतर जमीन पूरी तरह से ढक जाती है। इस कारण जमीन में घास नहीं उग पाती।
- जब फसलों के साथ घास उग जाती है, तो उसमें कीड़े लग जाते हैं। मल्टीलेयर पद्धति में घास नहीं उगती इसलिए फसलें कीड़ों से होने वाले नुकसान से बच जाती हैं।
- ऊपर की लेयर की सब्जी तैयार हो जाने पर उसे जड़ सहित ही निकालें। यदि आप सब्जी को काट लेंगे तो दो इंच नीचे जो अदरक लगा है उसकी जड़ें कमजोर हो जाएंगी।
- यदि आप लगाई गई सब्जी की निदाई-गुणाई करेंगे तो यह फसल के लिए फायदेमंद साबित होगी।
- मल्टीलेयर फसल को खुले में नहीं किया जा सकता। इसके लिए बांस और घास से छत तैयार की जाती है।
वर्मीकंपोस्ट भी बन सकता है कमाई का साधन
आकाश के पास पांच गाय हैं। जिनसे मिलने वाला मूत्र और गोबर दोनों की वे इस्तेमाल करते हैं। वे मूत्र से जैविक कीटनाशक तो तैयार करते ही हैं साथ ही वर्मीकंपोस्ट भी बनाते हैं। इसमें 75 प्रतिशत गाय का गोबर और 25 प्रतिशत रॉक फॉस्फेट होता है।
मल्टीलेयर खेती से आकाश की लगभग 15 लाख तक की कमाई हो रही है साथ ही वे वर्मीकंपोस्ट और गाय का दूध बेचकर भी कमाई कर लेते हैं। यदि देश का हर किसान इस तरीके को अपना ले तो खेती को कई तरह के फायदे मिल सकते हैं।