रेगिस्तान का नाम सुनते ही हमारी आंखों के सामने कोसों दूर तक रेत के टीलों का चित्र उभर कर सामने आ जाता है जिसमें खेती करना मुश्किल सा प्रतीत होता है। लेकिन ऐसी बात नहीं है, राजस्थान में रेगिस्तान होने के बावजूद यहां आधुनिक तकनीक के जरिये रेतीली भूमि पर भी खेती की जा रही है। यहां केला, सेब, संतरा, आंवला और खजूर जैसे फलों की खेती की जाती है। इससे यहां के किसानों की आय में बढ़ोतरी हो रही है। खास बात यह है कि अब यहां ताइवानी अमरूद की खेती भी हो रही है। इस किस्म के अमरूद की खेती करने वाले एक ऐसे किसान लिखमाराम भी है जिन्होंने यू-ट्यूब से ताइवानी अमरूद की खेती से जुड़ी जानकारी लेकर इसकी खेती शुरू की और इससे उन्हें आज काफी अच्छा मुनाफा मिल रहा है। इन्हें देखकर अन्य किसान भी ताइवानी अमरूद की खेती करने लगे हैं।
आज हमआपको राजस्थान के किसान लिखमाराम द्वारा रेतीली भूमि पर ताइवानी अमरूद की खेती से बेहतर मुनाफा कमाने की कहानी साझा कर रहे हैं, तो आइये जानते हैं, इस किसान की सफलता की कहानी।
किसान ने कैसे शुरू की ताइवानी अमरूद की खेती
नागौर के खींवसर क्षेत्र के किसान लिखमाराम ने अपने कठिन परिश्रम से रेतीली भूमि पर अमरूद की खेती करके सबको चौंका दिया। उन्होंने ताइवानी पिंक अमरूद किस्म का सुंदर बाग लगाया है। इससे उन्हें हर साल बेहतर कमाई हो रही है। उन्होंने यह ताइवानी पिंक अमरूद का बाग साल 2020 में लगाया था जब कोरोना संक्रमण की बीमारी चल रही थी। इनके खेत की मिट्टी रेतीली होने के कारण इसमें अमरूद की खेती करना कोई आसान काम नहीं था, ऊपर से पानी की कमी भी। लेकिन इसके बावजूद किसान लिखमाराम ने हार नहीं मानी और रेतीली भूमि पर ताइवानी अमरूद के पौधे लगा दिए और उनकी सही से देखभाल करते रहे। उनकी मेहनत रंग लाई और आज वे इस अमरूद के बाग से काफी अच्छी कमाई कर रहे हैं।
कहां से की अमरूद के पौधों की खरीद
किसान लिखमाराम के मुताबिक उन्होंने साल 2020 में ताइवानी पिंक अमरूद की खेती शुरू करने के लिए लखनऊ से अमरूद की इस किस्म के पौधों की खरीद की। वे वहां से अमरूद के करीब 200 पौधे खरीद कर लाए। एक पौधे की कीमत 140 रुपए आई थी। इन दो पौधों में से 150 पौधे सही से विकसित हो पाए जो आज पेड़ बन गए हैं और इससे लिखमाराम को हर साल बेहतर आमदनी मिल रही है।
अमरूद के बाग से कितनी हो रही है कमाई
किसान लिखमाराम ने पिछले साल एक अमरूद के पेड़ से 3 किलो अमरूद प्राप्त किए थे। लेकिन इस साल एक पेड़ से 10 किलो अमरूद मिले है। इस तरह उन्होंने इस साल करीब 1500 किलोग्राम अमरूद बेचकर अच्छी कमाई की है। किसान के अनुसार आने वाले सालों में ताइवानी पिंक अमरूद का उत्पादन और बढ़ेगा जिससे उन्हें इससे भी जल्दा इनकम होगी।
क्या है ताइवानी अमरूद की खासियत
यह अमरूद पकने बाद गुलाबी रंग का हो जाता है इसलिए इसे ताइवानी पिंक अमरूद कहा जाता है। इस प्रजाति का अमरूद खाने में स्वादिष्ट होता है। इस किस्म के पौधे पर एक फीट की ऊंचाई में ही फल लगने शुरू हो जाते हैं। खास बात यह है कि इस प्रजाति के अमरूद के पौधे में 12 महीने फल लगते हैं। इसका पौधा एक साल में तीन बार फल देता है। यदि पैदावार की बात करें तो ताइवानी पिंक अमरूद की किस्म के एक पेड़ से साल में करीब 30 से 40 किलो तक फल की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
क्या है बाजार में ताइवानी अमरूद का भाव
यदि बात की जाए ताइवानी पिंक अमरूद के भाव की तो इसके भाव बाजार में साधारण अमरूद के मुकाबले अधिक मिल जाते हैं। बाजार में ताइवानी अमरूद का 70 से लेकर 125 रुपए प्रति किलोग्राम तक भाव मिल जाता है। इस हिसाब से किसान इसकी खेती से काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।
अमरूद की खेती के लिए कितना मिलता है अनुदान
सरकार की ओर से फूल व फल की खेती के लिए भी सब्सिडी दी जाती है। यदि बात की जाए बिहार सरकार की तो यहां अमरूद की खेती के लिए एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) योजना के तहत सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाता है। यहां किसानों को लागत का 60 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। बिहार सरकार की ओर से अमरूद की खेती लिए एक लाख रुपए की लागत निर्धारित की है। इस पर किसान को 60 प्रतिशत सब्सिडी देने का प्रावधान है। ऐसे में किसान को अमरूद की खेती के लिए 60 हजार रुपए की सब्सिडी दी जाती है। यह अनुदान किसानों को तीन किस्तों में दिया जाता है। इसमें पहले चरण में 60 प्रतिशत अनुदान जिसमें 36,000 रुपए, दूसरे चरण में 20 प्रतिशत अनुदान के हिसाब से 12,000 रुपए और तीसरे और अंतिम चरण में शेष राशि यानि 12,000 रुपए का अनुदान दिया जाता है। वहीं राजस्थान में किन्नू, खजूर व अमरूद सहित अन्य फलदार पौधों का बाग लगाने के लिए किसान को 75 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। यहां उद्यान विभाग की ओर से किसानों को अमरूद का बाग लगाने के लिए प्रथम वर्ष 60 प्रतिशत और दूसरे और तीसरे साल 20-20 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। इस तरह यहां अमरूद की खेती के लिए किसानों को प्रति हैक्टेयर 30 हजार रुपए का अनुदान दिया जाता है।