अब आम के हरे पेड़ों की छटाई-कटाई की परमिशन के लिए वन विभाग के ऑफिस का चक्कर लगाना नहीं पड़ेगा

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ज़्यादातर आम के पेड़ 40-50 वर्षों तक फल देते हैं, जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है उत्पादन क्षमता भी घट जाती है; ऐसे में किसान उनकी छटाई-कटाई करके एक बार फिर बढ़िया उत्पादन ले सकते हैं। इसके लिए वन विभाग से परमिशन लेनी पड़ती है; लेकिन अब किसान बिना किसी परमिशन के भी कटाई कर सकते हैं।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश और केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने मिलकर ये फैसला लिया है कि अब इसके लिए विभाग से परमिशन लेने की ज़रूरत नहीं होगी। आम के बाग में प्रति हेक्टेयर 15 टन उत्पादन होता है; लेकिन 40-50 साल पुराने पेड़ों का उत्पादन घटकर 07 टन प्रति हेक्टेयर हो गया है। ऐसे में एक बार फिर किसान बढ़िया उत्पादन ले सकते हैं।

क्या है आम की जीर्णोद्धार तकनीक कटाई-छटाई की इस विधि को जीर्णोद्धार तकनीक कहा जाता है। इस तकनीक के बारे में केन्द्रीय बागवानी और उपोष्ण संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ के वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार शुक्ला बताते हैं, ”लखनऊ के मलिहाबाद से लेकर दूसरे क्षेत्रों में आम के बाग बहुत पुराने हो गए हैं, जो अब फल भी नहीं देते हैं। ऐसे में इस तकनीक से किसान लाभ पा सकते हैं।” वो आगे कहते हैं, ”इस तकनीक में पेड़ों की कुछ शाखाएँ काट दी जाती हैं, जो सबसे ज्यादा ऊँचाई पर हो। ऐसा करने पर कुछ समय में वहाँ पर नयी शाखाएँ निकल आती हैं, लेकिन पेड़ की शाखा को काटते समय ये ध्यान देना चाहिए कि पेड़ की छाल न कटे, इसलिए मशीन से चलने वाली आरी को प्रयोग करना चाहिए।”

ऐसे करें पुराने पेड़ों का जीर्णेाद्धार जीर्णोद्धार करने के लिए पेड़ों की चुनी हुई शाखाओं पर जमीन से 4-5 मीटर की ऊँचाई पर चाक या सफेद पेंट से निशान लगा देते हैं। शाखाओं को चुनते समय यह ध्यान रखें की चारों दिशाओं में बाहर की तरफ की शाखा हो। पौधों के बीच में स्थित शाखा, रोगग्रस्त व आड़ी-तिरछी शाखाओं को उनके निकलने की स्थान से ही काट दें। शाखाओं को तेज धार वाली आरी या मशीन चालित आरी से काटते हैं। ऐसा करने से डालियों के आस-पास की छाल नहीं फटती है। कटाई के तुरंत बाद कटे भाग पर फफूंदनाशक दवा (कॉपर आक्सीक्लोराइड) को करंज या अरंडी के तेल में मिलाकर लगा देते हैं। कटे भाग पर गाय के ताजे गोबर में चिकनी मिट्टी मिलाकर भी लेप कर सकते हैं। इससे कटे भाग को किसी फफूंदयुक्त बीमारी के संक्रमण से बचाया जा सकता है । कटाई के बाद पौधों के तनों में चूने से पुताई कर देते हैं। ऐसा करने से गोंद निकलने और छाल फटने की समस्या कम हो जाती है। डॉ. सुशील कुमार शुक्ला बताते हैं, ”कटाई के बाद पौधों में थाला बना कर गुड़ाई करके फरवरी से मार्च के महीने में सिंचाई करनी चाहिए।

50 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद को अच्छी तरह मिलाकर नाली विधि से दें। इस विधि में खाद देने के लिए पौधों के तनों से 1.5 मी की दूरी पर गोलाई में 60 सेमी चौड़ी तथा 30-45 सेमी गहरी नाली बनाएं। इस नाली को खाद के मिश्रण से भरकर इसके बाहर की तरफ गोलाई में मेड़ बना दें। एक किग्रा यूरिया को अक्टूबर माह में थाले में डालकर अच्छी तरह मिला दें। अंतिम बरसात के बाद अक्टूबर माह में थालों में धान के पुआल बिछा दें, जिससे लम्बे समय तक नमी संरक्षित रह सके।” पेड़ों में 70-80 दिनों में कल्ले निकलने लगते हैं। आवश्यकतानुसार प्रत्येक डाली में 8-10 स्वस्थ और ऊपर की ओर बढऩे वाले कल्लों को छोड़कर बाकी सभी कल्लों को काट दें। इस प्रक्रिया को विरलीकरण कहते हैं। नए कल्लों के विरलीकरण के बाद दो मिग्रा कॉपर आक्सीक्लोराइड) एक लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए।

जीर्णोद्धार किए गए आम के पौधों में तीसरे वर्ष से बौर लगने लगते हैं। सभी पौधों में बौर सुनिश्चित करने के लिए दूसरे वर्ष के सितम्बर महीने में पौधों को 12 मिली कल्तार (पैक्लो ब्यूट्राजाल) प्रति पौधे के हिसाब से एक लीटर पानी में मिलाकर मुख्य तने के पास उपचारित करें। यह भी प्रक्रिया तीसरे-चौथे वर्ष दोहराते रहना चाहिए। कर सकते हैं सब्जियों की खेती जीर्णोद्धार के बाद बगीचे की काफी जमीन खाली हो जाती है, इसमें दूस