मैनपुरी में बिना मिट्टी के घर में केसर  की खेती

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उत्‍तर प्रदेश के मैनपुरी में 64 वर्षीय गृहिणी शुभा भटनागर बिना मिट्टी के एरोपोनिक तकनीक से खेती कर रही हैं. उन्‍हाेंने पिछले साल अपने परिवार की मदद से एक एग्री स्‍टार्टअप की शुरुआत की है. खेती में रुचि और गांव की महिलाओं के जीवन में कुछ अच्‍छे बदलाव लाने की इच्छा के चलते उन्‍होंने स्टार्टअप की शुरुआत की. आज उन्हें इसका फायदा मिल रहा है. साथ ही उनके फार्म में लगे लोगों को भी फायदा मिल रहा है. आइए शुभा भटनागर की कोशिशों के बारे में जान लेते हैं. 

भारत में कश्मीर में केसर की पारंपरिक खेती होती है, लेकिन शुभा ने जलवायु जैसे जोखिम और चुनौतियों के बावजूद उत्तर प्रदेश में इनडोर केसर की खेती करने का निर्णय लिया. इस काम में उनके पति संजीव ने बेसिक इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर में मदद की. बेटे अंकित और बहू मंजरी ने तकनीकी और सेटअप को चलाने में मदद की.

‘स्टार्टअप पीडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक, शुभा ने कहा क‍ि भारत में केसर के उत्पादन में गिरावट आई है और इसका बड़े पैमाने पर आयात किया जा रहा है. यही वजह थी कि वह उत्तर प्रदेश की विपरीत जलवायु के बावजूद केसर की खेती करने के लिए प्रेरित हुईं. शुभा ने केसर की खेती में कामयाबी से शुभावनी स्मार्टफार्म्स बनाए जिसमें एरोपोनिक तकनीक के जरिए केसर की खेती की जाती है. इसमें बिना मिट्टी के नियंत्रित वातावरण में पौधे उगाए जाते हैं. यह प्रणाली कश्मीर में केसर की खेती से जुड़ी पारंपरिक जलवायु सीमाओं के इतर गर्म जलवायु में केसर की खेती में सहायक है.

स्‍टोर रूम को खेती के लिए तैयार किया

शुभा ने अपने घर के 560 वर्ग फीट के स्‍टोर रूम को केसर की खेती के लिए कोल्ड रूम में तब्दील किया है. इसमें केसर की खेती के अनुकूल वातावरण बनाने के लिए चिलर, ह्यूमिडिफायर, CO2 सेंसर और लाइट की खास व्यवस्था की गई है. उन्‍होंने खेती के लिए कश्मीर के पंपोर से केसर के बल्ब मंगाए हैं, जिनकी क्‍वालिटी बहुत अच्‍छी है. उन्‍हें 1000 किलोग्राम बल्बों से लगभग 800 ग्राम से 1 किलोग्राम केसर की पैदावार मिल रही है.

खेती की फसल आने में लगभग 3-4 महीने लगते हैं. शुभा ने कहा कि हम कहीं भी नियंत्रित वातावरण में केसर की खेती कर सकते हैं. इससे हमारी अफगानिस्तान और ईरान से भारत में केसर की बड़ी मात्रा में आयात पर निर्भरता दूर होगी. शुभा का फार्म अभी इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप के जरिए सीधे उपभोक्ताओं को केसर बेचता है, जिसकी कीमत 750 रुपये प्रति ग्राम है. शुभा अब अक्टूबर में ई-कॉमर्स साइट्स पर भी बिक्री शुरू करने की योजना बना रही हैं. 

बढ़ रही केसर की मांग

शुभा ने बताया कि हेल्‍दी गिफ्ट्स और कई कार्यक्रमों में केसर भेंट करने का चलन बढ़ा है. ऐसे में उनकी कंपनी के केसर की डिमांड काफी बढ़ गई है. उनकी कंपनी अभी मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे भारत के प्रमुख शहरों में केसर बेचती है और भविष्य में विस्तार के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में केसर बेचने के लिए मार्केट खोज रही है.

गृहिणी से कृषि उद्यमी बनी शुभा हिंदी में पोस्‍ट ग्रेजुएट हैं. उन्‍होंने खेती के लिए कोल्ड रूम बनाने के लिए लगभग 26 लाख रुपये का निवेश किया है. पहले साल में ही उनकी कंपनी ने लगभग 10 लाख रुपये मूल्य का केसर बेचा है. अब केसर की अगली खेप अक्टूबर में तैयार होगी. साथ ही वे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपनी खेती के क्षेत्र को दोगुना करने का प्‍लान बना रही हैं. शुभा भटनागर ने कहा क‍ि शुरू में जब उन्‍होंने केसर की खेती करने का आइडिया परिवार को बताया तो सबकी यही चिंता थी कि यह सफल होगा या नहीं, लेकिन सौभाग्य से सब अच्छा हो रहा है.

दिल्‍ली में मिल चुका अवार्ड

शुभा ने बताया कि फिलहाल उनकी कंपनी में लगभग 22 ग्रामीण महिलाएं काम कर रही हैं. शुभा भटनागर का कहना है कि भारत के युवा ग्रामीण इलाकों में कुछ नया करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं, रोजगार पैदा कर पलायन को रोक सकते हैं.