वर्तमान समय में पशुपालन एक अच्छा व्यवसाय है। पशुपालन से किसानों को नुकसान का सामना बहुत कम करना पड़ता है। पशुपालन में देखा गया है कि लोग गाय, भैंस, बकरी से अधिक दूध प्राप्त करने के लिये टीके या इंजेक्शन का सहारा लेते हैं। यह कारगर तो साबित होता है लेकिन ज्यादातर इसके विपरीत प्रभाव भी पड़ सकते हैं। इस परेशानी से निजान दिलाते हुये आज हम पशुओं के लिये दूध की क्षमता बढ़ाने का ऐसा रामबाण घरेलू उपाय बतायेंगे जो गाय और भैंस का दूध अधिक प्राप्त करने में कारगर साबित हो सकता है।
कैसे करें उपयोग
गाय या भैंस को मेथी व गुड़ को अच्छे से पका लें, फिर उसमें नारियल को पीसकर डालें इसके बाद थोड़ी देर ठंडा होने देना चाहिए। इसके बाद पशु को खाने के लिये दे सकते हैं।
बनाई गई सामग्री को सिर्फ 2 माह तक सुबह खाली पेट ही खिलाना चाहिए।
गाय बच्चा देने से डेढ माह पहले मेथी गुड़ नारियल आदि को पीसकर देना चाहिए और बच्चा देने के डेढ माह बाद तक देना चाहिए।
20-25 ग्राम अजवाईन व जीरा गाय के बच्चा देने के बाद केवल तीन दिन ही देना चाहिए, इस प्रकार गाय और भैंस के दूध देने की मात्रा बढ़ जायेगी और यह घरेलू चीजें पशुओं के स्वास्थ्य के लिये भी लाभकारी हैं।
बच्चा जन्म देने के 21 दिन तक गाय को सामान्य खाना जैसे- भूसा के साथ खरी, चुनी और उबाली दलिया देना चाहिए।
भारत की गाय-भैंस की प्रमुख नस्लें:
- गिर- इस नस्ल को भदावरी, देसन, गुजराती, काठियावाड़ी, सोरथी और सुरती भी कहा जाता है। त्वचा का मूल रंग गहरे लाल या चॉकलेट-भूरे तथा दूध की पैदावार प्रति स्तनपान 1200-1800 किलोग्राम तक होती है।
- साहीवाल – यह नस्ल लोला, मुल्तानी, मोंटगोमरी, तेली के नाम से भी जानी जाती है। यह लाल मटमैला रंग तथा इस नस्ल की औसत दूध उपज 1400 से 2500 किलोग्राम प्रति स्तनपान के बीच है।
- मुर्रा – भैंसों की सबसे महत्वपूर्ण नस्ल जिनका निवास स्थान हरियाणा के रोहतक, हिसार और सिंध, पंजाब के नाभा और पटियाला जिले और दिल्ली राज्य के दक्षिणी भाग हैं। घुमावदार सींग इस नस्ल का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। भारत में सबसे कुशल दूध और मक्खन वसा उत्पादक।
- नीली रवि – यह नस्ल पंजाब के फिरोजपुर जिले की सतलज घाटी साहीवाल (पाकिस्तान) में पाई जाती है। भारी भरकम यात्रा के काम के लिए बैल अच्छे होते हैं। दूध की पैदावार 1500-1850 किलोग्राम प्रति स्तनपान है।
गाय-भैंस का दूध बढ़ाने के उपाय: दुधारू गाय व भैंस का दूध बढ़ाने के लिए 250 से 300 ग्राम सरसों का तेल, 200 ग्राम गेहूं का आटा लेकर दोनों को मिला दें। इसे शाम के समय पशु के चारा तथा पानी देने के बाद खिलायें। लेकिन इसे खिलाने के बाद पशु को पानी पीने के लिए और दवाई नहीं देना चाहिए अन्यथा पशु को खांसी हो सकती है। पशुओं को हरा चारा और बिनौला का खुराक देते हैं।