क्या चीन के चक्रव्यूह में फंसे भारत के पड़ोसी? पाकिस्तान, श्रीलंका अब बांग्लादेश

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शेख हसीना अब ढाका छोड़ चुकी हैं, मगर उन्हें बांग्लादेश की सत्ता से हटाने की पटकथा एक महीने पहले से लिखी जाने लगी थी. शेख हसीना का चीन दौरे पर जाना और उसे अधूरा छोड़कर लौट आना इस बात का संकेत था की बांग्लादेश में कुछ बड़ा हो सकता है. बेशक शेख हसीना हिंसा की वजह से देश छोड़ने को मजबूर हुईं, लेकिन इसके पीछे चीन की साजिश मानी जा रही है. इससे पहले पाकिस्तान और श्रीलंका को भी ड्रैगन अपने चक्रव्यूह में फंसा चुका है.

चीन में प्रस्तावित चार दिनी दौरे को बीच में छोड़कर ढाका लौटी शेख हसीना गुस्से से इतना तमतमायी थीं कि उन्होंने बीजिंग को खरी खोटी सुना दी थीं. शेख हसीना ने यहां तक कह दिया था कि तीस्ता परियोजना में भारत और चीन दोनों की दिलचस्पी है, लेकिन वह चाहती हैं कि इसे भारत पूरा करे. इसके बाद से ही ये माना जाने लगा था कि चीन चुप बैठने वाला नहीं. पहले ही ड्रैगन इस बात का सबूत दे चुका था कि वह बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता चाहता है, शेख हसीना के बयान ने चीन को उकसाया और वह चीन का शिकार होने वाला तीसरा देश बन गया.

चीन दौरे पर आखिर क्या हुआ था?

शेख हसीना 10 जुलाई को चार दिन के लिए चीन दौरे पर गईं थीं, सब कुछ ठीक था. शेख हसीना ने अपने चीनी समकक्ष ली किया से मुलाकात की और 21 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. रोहिंग्या मुद्दे, वाणिज्य और निवेश पर चर्चा हुई. द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने की वकालत हुई. सब अच्छा चल रहा था, लेकिन अचानक 13 जुलाई को शेख हसीना ढाका लौट आईं, जबकि उन्हें 14 जुलाई को लौटना था. दुनिया भर में यह खबर सुर्खियां बनीं. शेख हसीना ने स्पष्ट तौर पर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन बताया गया कि चीन ने हसीना को 5 बिलियन डॉलर मदद का आश्वासन दिया था, जबकि सिर्फ 1 बिलियन डॉलर मदद का ऐलान किया गया. शेख हसीना को ये नागवार गुजरा और लौट आईं.

टाइमलाइन से समझिए कैसे किया चीन ने खेल

13 जुलाई को शेख हसीना ढाका लौटती हैं. अब तक हल्के-फुल्के तौर पर चल रहे विरोध प्रदर्शन अचानक तेज हो जाते हैं, 16 जुलाई को ये हिंसा में बदल जाते हैं और यूनिवर्सिटी में छात्रों और पुलिस के बीच ऐसी झड़प होती है, जिसमें 6 छात्रों की जान चली जाती है. शेख हसीना शांति की अपील करती हैं, लेकिन वह खारिज होती है और हिंसा और बढ़ जाती है. और हालात ऐसे बन जाते हैं कि उन्हें देश छोड़ना पड़ता है. जमात-ए-इस्लामी इसका जरिया बनता है.

दरअसल भारत के पड़ोसी मुल्कों में बांग्लादेश ऐसा अकेला मुल्क था जहां की अर्थव्यवस्था पटरी पर थी. इसलिए चीन वहां अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास कर रहा था. शेख हसीना उसकी नजरों में इसलिए चुभ रही थीं क्योंकि उनका झुकाव भारत की तरफ है. इसीलिए उसने शेख हसीना को 5 बिलियन डॉलर का भरोसा दिया और फिर शेख हसीना को बुलाकर ठेंगा दिखा दिया. इसका एक पक्ष ये भी है कि जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की एक राजनीतिक पार्टी है, जो कट्टरपंथी मानी जाती है, इस बार वह चुनाव में भी हिस्सा नहीं ले सकी थी. इस राजनीतिक पार्टी को आईएसआई से मदद मिलती रही है. बांग्लादेश की हिंसा को भी चीन पाकिस्तान में खूब ट्रेंड किया गया.

पाकिस्तान भी हो चुका है शिकार

ज्यादा दिन नहीं बीते जब पाकिस्तान में आटे की लूट के वीडियो वायरल हुए थे. महंगाई को लेकर हिंसक प्रदर्शन हो रहे थे. इसका जिम्मेदार भी चीन ही था. पहले चीन ने कर्ज बांटा और जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमराई तो कर्ज वापस मांग लिया. हालात यहां तक पहुंचे थे कि अमेरिका के मंत्री माइक पोंपियो तक ने खुलेआम ये कहा था कि चीन की वजह से ही ऐसा हो रहा है. पाकिस्तानी अखबार की एक रिपोर्ट ने भी इस बात बात का जिक्र किया था कि चीने पाकिस्तान से 30 करोड़ डॉलर का कर्ज वापस मांग लिया है. इसके बाद हालात और बिगड़ गए थे और पाकिस्तान को आईएमएफ की शरण लेनी पड़ी थी.

श्रीलंका को भी फंसाया था

चीन ने श्रीलंका के साथ भी कुछ ऐसा ही किया था, जहां महंगाई के विरोध में प्रदर्शनकारी इतना बेकाबू हुए थे कि राष्ट्रपति भवन में घुस गए थे. विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका था. इसका कारण भी कर्ज को ही माना गया था, दरअसल श्रीलंका पर कर्ज का बहुत बड़ा हिस्सा चीन से लिया था. इस कर्ज के बदले में चीन जाफना में अपने प्रोजेक्ट बढ़ाता रहा. इसके अलावा उसने मैरीटाइम सिल्क रोड में भी हिस्सा मांगा. श्रीलंका फंसा और चीन की तरफ और कर्ज के लिए देखा. चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री ने कोलंबो का दौरा भी किया, मगर मदद नहीं दी. बाद में भारत ने अपने पड़ोसी देश की मदद कर हालात सुधारे.