सूखा और बाढ़ का बढ़ता कहर, मजबूत नीतियों की जरूरत

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सूखा और बाढ़ की बढ़ती समस्याएं न केवल आज की चुनौतियां हैं बल्कि भविष्य की समस्याओं का संकेत भी हैं. इन समस्याओं का स्थायी समाधान केवल मजबूत नीतियों, उचित योजना और जन जागरूकता के माध्यम से संभव है. सरकार, समाज और सभी हितधारकों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सके और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सके.

हाल के वर्षों में सूखा और बाढ़ दोनों की स्थिति देशभर में गंभीर होती जा रही है. दिल्ली से लेकर अन्य राज्यों तक, गर्मी के मौसम में पानी की कमी और बरसात के मौसम में बाढ़ की समस्याएं बढ़ गई हैं. दिल्ली से लेकर देश के कई राज्यों में गर्मी के मौसम में पानी की कमी को लेकर हाहाकार मच रहा है और बरसात के मौसम में दिल्ली, बंबई सहित मेट्रो शहरों और अब तो संसद और विधानसभा में पानी घुसने की खबरें आने लगी हैं. ये घटनाएं नीति निर्धारकों और पॉलिसी बनाने वालों को भी चेता रही हैं. इसके प्रभाव से कोई नही बच पाएगा. इसलिए, सूखा और बाढ़ की समस्याओं को सुलझाने के लिए जरूरी है कि हम न केवल आपातकालीन उपाय करें, बल्कि दीर्घकालिक समाधान पर भी ध्यान दें. इसके लिए नागरिकों, सरकार और पर्यावरण संगठनों को मिलकर काम करने की जरूरत है. केवल ऐसी ठोस और व्यापक योजनाओं के माध्यम से ही हम इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम कर सकते हैं और भविष्य के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित कर सकते हैं. 

खतरों से बचने के लिए कदम उठाना जरूरी

सूखा और बाढ़ की समस्याओं से निपटने के लिए केवल अलर्ट जारी करना पर्याप्त नहीं है. इसके लिए हमें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरणीय नियमों का पालन करते हुए ठोस और स्थायी उपाय अपनाने की जरूरत है. यह जिम्मेदारी सरकारों से लेकर आम नागरिकों तक की है कि वे मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें और भविष्य के खतरों से बचने के लिए सक्रिय कदम उठाएं. सूखा और बाढ़ दोनों के खतरनाक प्रभाव बढ़ते जा रहे हैं. दिल्ली से लेकर देश के अन्य राज्यों तक, गर्मी के मौसम में पानी की कमी और बारिश के मौसम में बाढ़ की स्थिति गंभीर हो गई है. हाल ही में दिल्ली में पानी भरने के कारण तीन IAS परीक्षार्थियों की मौत और  वायनाड में केरल में भारी बारिश से लैंडस्लाइड जैसी घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनो से छेड़छाड़ करना कितना भारी हो सकता है. मौसम घटनाओं के प्रति सतर्क रहना कितना जरूरी है.

सूखे की बढ़ती अवधि और बारिश की तीव्रता में तेजी

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण वाष्पीकरण में वृद्धि हो रही है, जिससे वातावरण में अधिक नमी उत्पन्न हो रही है. इससे बारिश की तीव्रता बढ़ जाती है. मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि हाल के वर्षों में औसत बाऱिश में ज्यादा कमी नहीं आई है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश की अवधि कम हुई है और उसकी तीव्रता तेज हुई है. इससे एक समय पर अधिक बारिश हो रही है और लंबे समय तक सूखा हो रहा है. विशेषज्ञों के अुनसार, साल 2023 का सालभर का औसत तापमान  सामान्य से 33.8 डिग्री फारेनहाइट अधिक रहा और  एक डिग्री फारेनहाइट तापमान वृद्धि से वायुमंडल में 4 फीसदी अधिक पानी वाष्प बनता हैऔर वायुमंडल में अधिक नमी और बादल बनते हैं. इससे अचानक एकाएक अधिक बारिश होती है.

इन कारणों से समस्याएं अधिक बढ़ गईं

पानी के प्राकृतिक स्रोतों नदी, नालों और निचले एरिया में अधिक निर्माण और बेतरतीब ढंग से निर्माण हुए और अपार्टमेंट बनाए गए. शहरीकरण ने प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली को बाधित कर दिया है. निर्माण कार्य से बारिश का पानी सतह पर अवशोषित नहीं हो पाता है. पानी अपना रास्ता बनाते हुए दूसरी जगह पर भी पहुंच रहा है. इससे बाढ़ जैसी समस्या पैदा हो रही है. वहीं दूसरी ओर तीव्र बारिश से पहाड़ों और उंचे स्थानों पर जहां पेड़ों की कटाई कर घर और निमार्ण कार्य हुए हैं, वहां भूसस्खन होता है. विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन और बढ़ती जनसंख्या ने पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ दिया है. यह भी बाढ़ की संभावना को बढ़ाता है.

सूखा और बाढ़ के समाधान के प्रभावी उपाय

सूखा और बाढ़ जैसी समस्याओं से निपटना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. इन समस्याओं का समाधान कई पहलुओं पर निर्भर करता है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा, सही नीति निर्माण और तकनीकी उपाय शामिल हैं.

वनों की रक्षा और वृक्षारोपण: वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना चाहिए और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए. इससे मृदा संरक्षण में मदद मिलेगी और बाढ़ की संभावना कम होगी. पेड़-पौधों की कमी के कारण मिट्टी की अवशोषण क्षमता कम हो जाती है, जिससे बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है. वनों की कटाई और शहरीकरण के कारण प्राकृतिक जल प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है.

प्राकृतिक जलस्रोतों का संरक्षण: तालाबों, पोखरों और नदियों के प्राकृतिक जलस्रोतों को संरक्षित किया जाना चाहिए. नए निर्माण कार्यों के स्थान पर जल पुनर्भरण प्रणालियों को लागू किया जाना चाहिए. विकास के नाम पर निर्मित इमारतें, सड़कें, और अन्य संरचनाएं बारिश के पानी को अवशोषित नहीं होने देतीं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है.
 
मृदा क्षरण  और पानी की गति को रोकना: जड़ वाले पौधों की खेती को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे मृदा का कटाव कम हो सके. गुल्फ स्टफिंग तकनीक से नालियों, गड्डों या चैनलों में लकड़ी और वनस्पति सामग्री डालने से पानी की गति धीमी हो जाती है, जिससे बाढ़ की संभावना कम होती है.

तटीय क्षेत्र संरक्षण: समुद्र के तट पर तटीय झाड़ और पेड़ लगाना चाहिए, जिनकी घनी जड़ें और तने लहरों की ऊर्जा को कम करते हैं और तूफान के मलबे को फंसाते हैं.

पर्यावरणीय नीतियों का अनुपालन: राज्य और केंद्र सरकारों को पर्यावरणीय नीतियों का सख्ती से पालन करना चाहिए और निर्माण गतिविधियों की निगरानी करनी चाहिए, ताकि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित हो सके.

सूखा और बाढ़ की समस्याओं से निपटने के लिए केवल अलर्ट जारी करना पर्याप्त नहीं है. इसके लिए हमें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरणीय नियमों का पालन करते हुए ठोस और स्थायी उपाय अपनाने की आवश्यकता है. यह जिम्मेदारी सरकारों से लेकर आम नागरिकों तक की है कि वे मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें और भविष्य के खतरों से बचने के लिए सक्रिय कदम उठाएं.

मानसून सक्रिय होने के बाद से सावन की झड़ी पूरे उत्तार भारत में लगी, लेकिन कुछ ऐसे भी क्षेत्र रहे जहां पानी का ‘अकाल’ रहा। पिछले कुछ दिनों से हो रही बारिश ने लगभग सभी राज्यों को तर किया लेकिन झारखंड, बिहार और उत्तार प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बादल दगा दे गए। एक ओर जहां उप्र की अधिकांश नदियां खतरे के निशान पर पहुंच गई हैं और दर्जनों गांव बाढ़ की चपेट में हैं, वहीं झारखंड और बिहार के कई जिलों में सूखे की स्थिति बन रही है। इस बीच गुरुवार को भी उत्ताराखंड में केदारनाथ यात्रा थमी रही, जबकि बदरीनाथ, गंगोत्री, हेमकुंड पर पैदल श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में भी बारिश हुई, लेकिन राजधानी दिल्ली की उम्मीदों पर एक बार फिर बादल ही छाए रहे।

पहाड़ों पर खराब मौसम के चलते चारधाम यात्रा में बार-बार विघ्न पड़ रहा है। जोशीमठ व गोविंदघाट के बीच बदरीनाथ हाइवे दोपहर में भूस्खलन के बाद बंद हो गया। मार्ग के शुक्रवार तक खुलने की उम्मीद है। गुरुवार को 160 यात्री बदरीनाथ, 90 यात्री हेमकुंड के लिए रवाना हुए। भूस्खलन के कारण गंगोत्री व यमुनोत्री हाइवे सुबह करीब दो घंटे बंद रहने के बाद खोल दिया गया। गंगोत्री में 250 तो यमुनोत्री में 64 यात्री पहुंचे। कुमाऊं में कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग नौवें दिन भी नहीं खुल सका। राजधानी दिल्ली में गुरुवार को बादल छाए रहे और तापमान में कुछ गिरावट आई लेकिन आद्रता 88 प्रतिशत पहुंचने से उमस बरकरार रही और लोग पसीने में भीगे रहे।