चना और मसूर की नई किस्में 3 साल में होंगी तैयार, रिसर्च के लिए मध्‍य प्रदेश सरकार ने जारी किया करोड़ों का फंड

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मध्‍य प्रदेश की सरकार ने उन किसानों को एक बड़ी राहत की खबर दी है जो पारंपरिक खेती से जुड़े हुए हैं. पर्यावरण में बदलाव केचलते किसानों को पारंपरिक फसलों के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाला समय बदलते पर्यावरण और जलवायु में मांग को पूरा करने के लिए कम पड़ रहा है. ऐसे में मध्‍य प्रदेश में अब स्‍पीड ब्रीडिंग केंद्रों की मदद इन मुश्किलों को दूर करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं.

मध्‍य प्रदेश की सरकार ने उन किसानों को एक बड़ी राहत की खबर दी है जो पारंपरिक खेती से जुड़े हुए हैं. पर्यावरण में बदलाव केचलते किसानों को पारंपरिक फसलों के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाला समय बदलते पर्यावरण और जलवायु में मांग को पूरा करने के लिए कम पड़ रहा है. ऐसे में मध्‍य प्रदेश में अब स्‍पीड ब्रीडिंग केंद्रों की मदद इन मुश्किलों को दूर करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. इन केंद्रों पर पहली बार चना और मसूर के बीज तैयार किए जाएंगे.

जारी हुआ करोड़ों का फंड 

अखबार नई दुनिया की रिपोर्ट की अनुसार यह सेंटर राजमाता विजयाराजे सिंधिया एग्रीकल्‍चर यूनिवर्सिटी सीहोर में बनाया जाएगा. इसके मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से एक करोड़ 35 लाख रुपये का फंड भी जारी कर दिया गया है. बताया जा रहा है कि स्पीड ब्रीडिंग केंद्र में बीज को तेज गति से तैयार करने के लिए आर्टिफिशियल यानी कृत्रिम वातावरण तैयार किया जाएगा. इससे नई-नई किस्म के बीज कम समय में किसानों के लिए मुहैया कराए जा सकेंगे. शुरुआत में चना और मसूर के लिए ब्रीडिंग सेंटर बनाया जाएगा. इसके बाद सोयाबीन और अरहर के लिए भी ऐसा ही सेंटर तैयार किया जाएगा. 

क्‍या होगा इसका फायदा 

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो नई किस्मों को विकसित करने में लंबा समय लगता है और साथ ही मौसम भी एक बड़ी बाधा है. रैपिड जनरेशन एडवांस (आरजीए) टेक्‍नोलॉजी का प्रयोग करके स्पीड ब्रीडिंग के जरिये तेजी से किस्म का विकास किया जा सकेगा.  देरी से आने वाला और अनिश्चित मॉनसून, सूखा या बहुत ज्यादा बारिश की वजह से भी फसल चक्र पर असर पड़ रहा है. ऐसे में नए कीड़ों और बीमारियों को पैदा होने के मौके मिल रहे हैं. इस नए उपाय से इन मुश्किलों पर जीत हासिल की जा सकेगी.

कैसे काम करेगा ब्रीडिंग सेंटर 

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रक्रिया को शुरुआत में वातावरण की स्थितियों में बदलाव करके लंबी और निर्धारित दिनों वाली फसलों के लिए अपनाया गया था. जैसे कि फूल आने और बीज पैदा करने के समय को कम करने के लिए रोशनी का समय बढ़ाना. लेकिन आज, यह टेक्‍नोलॉजी कम दिन वाली फसलों में भी विकसित की जा रही है. ब्रीडिंग सेंटर में बीज डेवलप करने के लिए तापमान, नमी, रोशनी को कंट्रोल्‍ड किया जाएगा. इससे फसल के लिए अनुकूल मौसम का वातावरण 365 दिन बनाकर रखा जा सकेगा.