कश्मीर में लंबे समय से सूखे और जलवायु बदलाव की स्थितियों ने दुनिया के सबसे पसंदीदा मसाले केसर की फसल को बुरी तरह प्रभावित किया है. केसर उगाने वाले किसान घटते उत्पादन से होने वाले नुकसान के चलते सेब और सरसों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं.
लंबे समय से सूखे की स्थिति और जलवायु में बदलाव के चलते केसर के उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है. कश्मीर घाटी में केसर की खेती करने वाले किसान मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. कई किसान अपने खेतों में केसर की बजाय सेब की खेती के लिए पौधे लगा रहे हैं तो कई सरसों की खेती शुरू कर रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1990 में 15.95 टन केसर का उत्पादन होता था जो 2023-24 में घटकर 2.6 टन पर आ गया है.
जून की शुरुआत से ही कश्मीर घाटी में भीषण गर्मी पड़ रही है और तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. 3 जुलाई को कश्मीर में तापमान 35.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो पिछले 25 सालों में सबसे अधिक है. पिछले कई सालों में जलवायु बदलाव के चलते तापमान में यह बढ़ोत्तरी केसर की खेती को बुरी तरह प्रभावित कर रही है. पुलवामा और बडगाम जिलों में हजारों हेक्टेयर में केसर की खेती की जाती है.
रिपोर्ट के अनुसार 60 वर्षीय किसान अली मोहम्मद रेशी श्रीनगर से 22 किलोमीटर दक्षिण में पुलवामा के लेथपोरा इलाके में केसर की खेती करते हैं. उन्हें तापमान की बढ़ोत्तरी को लेकर खेती पर पड़ रहे असर ने चिंता बढ़ा दी है. लंबे समय से चल रहा सूखा और जलवायु बदलाव दुनिया के सबसे पसंदीदा मसाले केसर की उनकी फसल के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है.
केसर की बजाय सेब और सरसों उगाने लगे किसान
किसान अली मोहम्मद रेशी के अनुसार उनके सात कनाल के खेत में कभी 1,100 से 1,200 ग्राम केसर की पैदावार होती थी, लेकिन हाल के वर्षों में यह घटकर कुछ सौ ग्राम रह गई है. किसान ने कहा कि 2022 में उत्पादन घटकर 100 से 150 ग्राम रह जाएगा. अनियमित मौसम पैटर्न ने कई किसानों को अपने केसर के खेतों को सेब के बागों में बदलने या ऐसी फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया है, जो उन्हें लगता है कि बदलती जलवायु के लिए बेहतर हैं. पंपोर के केसर किसान मोहम्मद अशरफ ने कहा कि उन्होंने सरसों की खेती शुरू कर दी है.
दो दशक में तेजी से गिरा केसर का उत्पादन
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले दो दशकों में केसर के उत्पादन में 65 फीसदी की गिरावट आई है. 1990 में 15.95 टन केसर उत्पादन होता था जो 2023-24 में घटकर 2.6 टन पर आ गया है. इसी तरह केसर की खेती के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जमीन 1996-97 में 5,707 हेक्टेयर से घटकर 2019-20 में घटकर 2,387 हेक्टेयर रह गई है.
बर्फबारी और बारिश में कमी ने चिंता बढ़ाई
कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि पिछले कई सालों में कम बर्फबारी और बारिश की कमी ने केसर के उत्पादन को प्रभावित किया है. पुलवामा के मुख्य कृषि अधिकारी मोहम्मद इकबाल खान ने बिजनेसलाइन को बताया कि अगर अगस्त तक सूखा जारी रहा तो फसल पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अगस्त में मिट्टी को नमी की जरूरत होती है, क्योंकि किसान इस समय खेतों की जुताई करते हैं.